
इंक़लाब की वाणी
हमने उन्हें सुनानी हैं जो
इंक़लाब की वाणी हैं
पिंड से निकली लहरों को
दिल्ली तक पहुँचानी हैं
हमने उन्हें सुनानी हैं जो
इंक़लाब की वाणी हैं
पिंड से निकली लहरों को
दिल्ली तक पहुँचानी हैं
जय किसान आंदोलन के संस्थापक योगेंद्र यादव के द्वारा चलाए जा रहे अभियान #MSPLootCalculator तहत 20 मार्च को जारी बयान में बाजरा की फसल पर एमएसपी (MSP) के सरकारी दावों की पोल खोलते हुए कहा कि यदि प्रधानमंत्री मोदी या भाजपा के प्रवक्ता ताल ठोक कर कहते हुए मिलें कि ‘एमएसपी थी,
गुरमुख सिंह, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के खैरीगढ़ गांव से हैं और किसानी परिवार से हैं। किसानों के साथ ही वे पहली बार ग़ाज़ीपुर मोर्चे पर आए। 26 नवम्बर को उत्तराखंड के रुद्रपुर से वे 400 किसानों के साथ निकले लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें आगे नहीं जाने दिया। उन्होंने दो रातों तक नानकपुरी तांडा के गुरुद्वारे के लंगर में सेवा दी।
नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों के हौसले ना सिर्फ बुलंद हैं, बल्कि वे दोगुने उत्साह के साथ केंद्र सरकार से मोर्चा लेने के लिए तैयारियां कर रहे हैं। शाहजहांपुर खेड़ा बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन को सौ दिन पूरे हो गए हैं, लेकिन उनकी हिम्मत और हौंसले कमजोर नहीं हुये है।
किसानों से डरी सत्ता
बॉर्डर पर खाइयां कीले, कटीले तार दीवार
बहुपरत की सीमेंटेड बेरिकेडिंग
सर्मथक, आवश्यक सुविधाओं की पहुंच
बाधित
शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस 23 मार्च, के दिन भाकपा (माले) लिबरेशन और इसके सभी सम्बद्ध संगठनों ने आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम में तीन खेती कानूनों और वाईज़ैग स्टील प्लांट के निजीकरण के विरोध में एक जन संसद का आयोजन किया।
जलवायु बदलाव का संकट तेजी से विश्व के सबसे बड़े पर्यावरणीय संकट के रूप में उभरा है। जीवन के विभिन्न महत्वपूर्ण पक्षों के संदर्भ में इस संकट को समझना जरूरी हो गया है। भारत में आजीविका का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत कृषि व इससे जुड़े विभिन्न कार्य हैं।
इतिहास के कई पेचीदे पड़ावों से गुजरते हुए मेक्सिको के किसानों ने औपनिवेशिक ताक़तों से ले कर साम्राज्यवादी मगरमच्छों तक का डट कर सामना किया है। इस लम्बे और संघर्षशील इतिहास की एक झलक हमें तब देखने मिलती जब 1990 के बाद हुए कृषि सुधारों का जिक्र आता है, जिसका खामियाजा मेक्सिको के किसान अभी तक भुगत रहे हैं।
सरकार की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए? पैसे बचाना या लोगों की जानें? इस तरह से कोई पूछे, तो शायद ही कोई होगा जो चाहेगा कि सरकार अपने खर्च बचाने के लिए लोगों की जानें दांव पर लगा दे। बावजूद इसके सरकारें इस तरह के प्रस्ताव रखती हैं और समाज का एक हिस्सा इसे समझदारी भी मानता है।
देश के हजारों गरीब आदिवासियों, मेहनतकशो, और वंचितों के कुर्बानी गगनभेदी नारे और डूबती जिंदगियों के गीतों का असर अब शहरो कस्बो में दिखाई पड़ने लगा है। फासिस्ट सरकार खादी+खाकी वर्दी सरकारी हथियारों के बल प्रयोग से जन संघर्ष को कैद करने की कितनी भी साजिश कर ले, ऐसी क्रूर व्यवस्था को उखड़ना ही होगा
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