गुरमुख सिंह, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के खैरीगढ़ गांव से हैं और किसानी परिवार से हैं। किसानों के साथ ही वे पहली बार ग़ाज़ीपुर मोर्चे पर आए। 26 नवम्बर को उत्तराखंड के रुद्रपुर से वे 400 किसानों के साथ निकले लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें आगे नहीं जाने दिया। उन्होंने दो रातों तक नानकपुरी तांडा के गुरुद्वारे के लंगर में सेवा दी। 28 की रात को प्रशासन ने दिल्ली जाने की इजाज़त दी। फिर जत्था बुराड़ी मैदान पहुँचा जहां वे 2 दिन रुके। और अंततः जत्था ग़ाज़ीपुर मोर्चे पर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बाकी किसानों के साथ मिलकर बैठ गए।
गुरमुख सिंह बताते हैं कि ग़ाज़ीपुर मोर्चे पर उन्हें अपने पड़ोसी गाँवों के लोगों से बहुत प्यार मिला। उन्हें गर्म कपड़े, कंबल, दवाइयाँ और बादाम के दूध की सेवा मिली। और मोर्चे पर लंगर सेवा भी शुरू हो गई थी। और बीच में गुरमुख सिंह अपने भतीजे की शादी के लिए गांव भी गए। और 24 जनवरी को वापसी कर मोर्चे पर फिर से डट गए। 28 जनवरी को उनकी ड्यूटी मंच के पास वाली ट्रॉली पर लगी थी। वो बताते हैं कि उस दिन पुलिस ने डिवाइडर पर लगे टेंट के पास फ्लाईओवर के नीचे बस लेकर आ गई थी। सबको सचेत कर दिया गया कि पहरा दे और अपने कंबल–बिस्तर मंच के पास ले आए। ड्यूटी वाली ट्रॉली भी लंगर के पास ले आए और लंगर की सेवा शुरू रखी।
फिर रात में टिकैत साहब ने गिरफ्तारी देने से मना करने पर तो रातों रात लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा जिससे सबका हौसला बुलंद हो गया। रात कि लगभग डेढ़ बजे पुलिस वापस चली गई और हम अपने अपने कामों में लग गए। वो रात कभी नहीं भूल सकते। सुबह महाराज की कृपा से मोर्चा किसानों से भर गया। अब मेरी ड्यूटी टेंट के पास दफ़्तर में लगी है। इस आंदोलन ने सबको इकट्ठा कर दिया है और मैं सरकार से कहना चाहता हूँ कि “ हम मोर्चे पर टिके रहेंगे और आप हमें हमारा हक़ दे दीजिए। जब तक खेती कानून वापस नहीं करेंगे, तब तक हम घर वापिस नहीं जाएँगे।