हमने उन्हें सुनानी हैं जो
इंक़लाब की वाणी हैं
पिंड से निकली लहरों को
दिल्ली तक पहुँचानी हैं
बेदर्द इतिहास के पन्नों को
जज्बात– ए– दिल समझानी हैं
सत्ता के गलियारों को
गुरुवाणी हमें सुनानी हैं
प्रेम के ढाई आखर को
दुनिया तक फैलानी हैं
सबको हमें सुनानी हैं जो
इंक़लाब की वाणी हैं