
ग्रामीण भारत की बिगड़ती स्थिति देश की नीतियों और राजनीतिक रणनीतियों के लिए एक जटिल चुनौती के रूप में उभर कर आयी है। कोविड-19 से पहले भी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था गंभीर संकट से जूझ रही थी। कोविड-19 के फैलने और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बाद, प्रवासी मज़दूरों के पैदल घर लौटने के दयनीय दृश्यों ने इस विशाल मानवीय संकट की तरफ देश का ध्यान आकर्षित किया है।
मेक्सिको में, किसानों के संघर्ष का एक लम्बा इतिहास रहा है और अनेक बार उन्होंने सत्ता के ख़िलाफ़ स्मरणीय विद्रोहों का नेतृत्व किया है। क्रांतिकारी परिवर्तनों से भरे 19वीं शताब्दी का शुरुआती दशक, मेक्सिको के इतिहास में अहम रहा है। यह वही दौर था, जब हर तरफ़ व्याप्त असमानता ने किसानों का जीवन दूभर कर रखा था
1978 में हज़ारों अमेरिकी किसान अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में अपने ट्रैक्टरों के साथ हफ्तों तक डेरा डाले रहे। वह वहां इसलिए आए थे क्योंकि उनके अस्तित्व को खतरा था। यह विरोध “ट्रेक्टरकेड” के रूप में जाना गया, और किसानों की यही माँग थी
किसान घर से निकल कर सड़क पर बैठा शांतिपूर्ण तरीके से रोष प्रकट कर रहा है – इस बात को 26 मई 2021 के दिन पूरे 6 माह बीत गए हैं पर सरकार टस से मस नहीं हुई। पहले कड़ाके की ठंड फिर तपती गर्मी और अब आँधी- तूफानों ने किसान का हौसला परखा,
“यश वैभव सुख की चाह नहीं, परवाह नहीं जीवन न रहे; यदि इच्छा है तो यह है- जग में स्वेच्छाचार दमन न रहे।”– विजय सिंह ‘पथिक’
देश की आज़ादी के संघर्ष को जन-जन तक पहुँचाकर इसे जन-आंदोलन में बदलने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं ने निभाई।
26 मई 2021 को दिल्ली बार्डर के मोर्चों पर किसान आंदोलन के 6 महीने पूरे होने व मोदी सरकार के 7 साल पूरे होने पर देश के किसानों के साथ ही अन्य तबकों ने भी देश भर में काला दिवस मनाया। इसके साथ ही सयुंक्त किसान मोर्चा की ओर से दिल्ली के बार्डरों पर बुद्ध पूर्णिमा भी मनाई गयी।
ਸਾਡੇ ਪਰਿਵਾਰ ਉਹ ਸੀ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਤਾਲੀ ਦੇ ਵਿੱਚ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਛੱਡਿਆ ਸੀ। ਪੂਰੀਆਂ ਜ਼ਮੀਨ ਜਾਇਦਾਦ ਵਾਲੀਆਂ। ਉੱਥੋਂ ਅਸੀਂ ਉੱਖੜ ਕੇ ਆਏ ਤੇ ਸਾਡੇ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਦੇ ਅੱਜ ਤੱਕ ਪੈਰ ਨਹੀਂ ਲੱਗੇ। ਧਰਨੇ ‘ਤੇ ਆਉਣ ਦਾ ਮੇਰਾ ਇਹ ਮੇਨ ਪੁਆਇੰਟ ਐ। ਜੇਕਰ ਦੁਬਾਰਾ ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਖੋਹਣ ਦੀ ਗੱਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਗੱਲ ਦਿਲ ਤੱਕ ਲੱਗਦੀ ਐ, ਉਹ ਸਭ ਯਾਦ ਆ ਜਾਂਦਾ।
ਛੇ ਮਹੀਨੇ ਲੰਬਾ ਕਿਸਾਨ ਅੰਦੋਲਨ ਕਾਲ਼ ਖੇਤੀ ਕਾਨੂੰਨ ਰੱਦ ਕਰਵਾਉਣ, ਐੱਮ ਐੱਸ ਪੀ ਲਾਗੂ ਕਰਵਾਉਣ ਅਤੇ ਬਿਜਲੀ, ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਵਿੱਚ ਤਰਮੀਮ ਕਰਵਾਉਣ ਵਾਸਤੇ ਹੈ। ਪਰ ਇਸ ਦਾ ਅਸਲ ਖਾਸਾ ਬਰਾਬਰੀ ਦਾ ਹੈ। ਦੇਸ਼ ਦੇ ਲੋਕ ਸਰਕਾਰਾਂ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਬਰਾਬਰੀ ਦੀ ਮੰਗ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ।
ਕੱਠੇ ਹੋ ਸਭ ਮੁਰਦੇ ਬੋਲੇ,
“ਸਭ ਕੁਛ ਚੰਗਾ ਚੰਗਾ”
ਰਾਜਨ ਤੇਰੇ ਰਾਮਰਾਜ ਵਿਚ
ਲਾਸ਼ਾਂ ਢੋਵੇ ਗੰਗਾ
ਸ਼ਮਸ਼ਾਨ ਘਾਟ ਸਭ ਭਰ ਗਏ ਤੇਰੇ,
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