कपिल शर्मा, दिल्ली
जिन्होनें उम्र भर तलवार का गीत गाया है
उनके शब्द लहू के होते हैं
लहू लोहे का होता है
जो मौत के किनारे जीते हैं
उनकी मौत से जिंदगी का सफर शुरु होता है
जिनका लहू और पसीना मिट्टी में गिर जाता है
वे मिट्टी में दब कर उग आते हैं….
लहू और लोहे की ये अनवरत गाथा उठती है, चलती है, गिरती है, संभलती है और फिर उठ कर चलने के लिए तैयार होती है, लेकिन लोहे का स्वाद कौन जानता है, वो जिसने लोहा बरता है, लोहा खाया है, लोहा जिया है। लेकिन लोहे का स्वाद जानने वालों को पता होता है कि सवाल पूछना कितना बड़ा अपराध है, या हो सकता है। इंसानियत के दोस्त सवाल पूछते हुए ये नहीं सोचते कि सवालों की कीमत क्या हो सकती है, जवाबों के लिए क्या कुर्बान करना होगा…
क्या ये सच नहीं है कि सपने देखने के लिए जिगर में जज्बा होना जरूरी है, क्योंकि सपने हर किसी को नहीं आते…लोग अक्सरहां पूछते हैं कि आखिर राष्ट्रद्रोह में कौन किससे द्रोह करता है, कि सत्ता को अपनी रक्षा के लिए बार–बार टॉचर्र का, जेल का, नरसंहार का सहारा क्यों लेना पड़ता है, कि आखिर लोगों को सपने देखने के लिए उकसाने की सजा मौत क्यों होती है? वो कब पैदा हुआ, कहां पैदा हुआ, कब मरा, किसने उसे मार दिया, ये सारे सवाल बेमानी हैं। जो मानीखेज़ बात है वो ये कि उसने किसकी बात की, किससे बात की, और किससे सवाल पूछे। मानीखेज़ बात ये है कि उसने नज़रे नहीं झुकाई, उसने समझौता नहीं किया, उसने हमेशा आंखों में आंखें डालकर बात की। मानीखेज बात ये है कि उसने सवाल किए, उसने सबको सवाल पूछने के लिए उकसाया, उसने खुद खुदा से, सूरज से, सारे जहान् से सवाल किए। अपनी कविता की खूबसूरती उसे खेत की धूल में दिखती थी, हाथों में पड़े घट्टों ने उसके लफ्जों को आकार दिया था, उसने खेतों की फसलों को अपना माना था लेकिन खेतों की धूल से अपने कहे को सजाया था, हां उसने प्यार किया था…
प्यार करना बहुत ही सहज है
जैसे कि जुल्म को झेलते हुए
खुद को लड़ाई के लिए तैयार करना
या गुप्तवास में लगी गोली से
किसी गुफा में पड़े रहकर
जख्म भरने के दिन की कोई कल्पना करे
प्यार करना
और लड़ सकना….
वो प्यार नहीं कर सकते, जो जीने के लिए लड़ाई नहीं करते, प्यार करने के लिए जुल्म झेलते हुए लड़ने की तैयारी लाजिमी है, प्यार करने के लिए वफा की नजरों का होना लाजिमी है, और सबसे ज़रूरी ये कि प्यार करने के लिए तमाम अहसासों से परे प्यार करने की हिम्मत का होना लाजिमी है। प्यार करना और जीना उन्हें कभी नहीं आएगा, जिन्हें जिन्दगी ने बनिया बना दिया है। कत्ल के साये में प्यार के गीत गाने की अपनी जिद के आगे उसने कुछ नहीं देखा, उसके लफ्जों ने हर दिल को जिंदगी के टुकड़े चुनना सिखाया है, उसके हर दांव के आगे सत्ता लड़खड़ाई है। अपना सब कुछ दांव पर लगाकर महीनों से दिल्ली की सीमा पर डेरा डाले किसानों से वो पूछते हैं कि कब तक धरना दोगे, कब तक लड़ोगे? पर ये जवाब तो बहुत पहले दिया जा चुका है,
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का पेशाब पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले खुद नहीं सूंघते
कि सूजी आंखों वाली
गांव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता…..
हम लड़ेंगे तक तक
जब तक दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाकी है
हम उसी भारत के बेटे हैं, जिनके पैरों में घट्टे पड़े हों तो भी वो नंगे पैर गांव के मेलों की ओर दौड़ जाते हैं, पूरे दिन झुलसती गर्मी में धरती से सोना निकालने की कवायद करते हैं, और फिर अपने लहू को बिना किसी दाम के बनियों के गोदामों में कैद करने के लिए छोड़ने को मजबूर होते हैं। वो भारत जो हमारे सम्मान का सबसे महान शब्द है, वो भारत जिसके अर्थ खेतों के बेटों में मिलते हैं, वो भारत जो वहां मिलता है जहां अन्न उगता है, जहां सेंध लगती है…
उन्हे डर लगता है, और इसी डर के चलते वो सब कुछ करने को तैयार हैं जो इंसानियत को शर्मसार करता है, यही डर है जो उन्हे हमारे ही बेटे–बेटियों को, भाई–बहनों को हमी पर लाठियां भांजने और गोलियां चलाने के लिए मजबूर करता है, यही डर है जो हमारे ही हाथों में बंदूक देकर, अपनी रक्षा करने के लिए मजबूर करता है, यही डर है जो हमारे गांवों में, हमारे खेतों में आग लगाने की कवायद करवाता है। वो हमारे घरों, खेतों को ही नहीं, हमारे सपनों को, हमारी उम्मीदों को, हमारे भविष्य को भी जला देने की कोशिश कर रहे हैं। वो हमारे जज़्बातों को कुचल देना चाहते हैं। जब वो हमारे तरफ इशारा करके भद्दे अल्फाज बोलते हैं, जब वो हमारा मजाक उड़ाने की कोशिश करते हैं, जब वो हमे देशद्रोही बताने लगते हैं, तब समझना साथी कि हम जीत रहे हैं, तब ये जान लेना साथी कि उनका डर उनके सिर से उतर कर उनकी छाती में समा गया है, उनके दिलों को इस डर ने जकड़ लिया है, उनके खून में तुम्हारी एक–एक बोली का डर समा गया है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आज वो हमें मार सकते हैं, वो हमें जला कर राख कर सकते हैं, क्योंकि याद रखना….
मैं घास हूँ
मैं तुम्हारे हर किए–धरे पर उग आऊँगा….
हम घास हैं, हम पाष हैं,
तुम्हारे हर किए धरे पर उग आएंगे……..