मल्लिका, टिकरी बॉर्डर
दोपहर के सूरज का सफेद प्रकाश उसके चश्मे के पीछे उसकी आंखों को छुपा रहा था। मैंने उससे एक फोटोग्राफर के रूप में पूछा यदि वह कैमरे के लिए चश्मा हटाना पसंद करेगी। उन्नीस वर्षीय कमल मुस्कुराती हुई अनिच्छा से कहती है “वो तो मेरी पहचान है ना”। उसने कुछ देर पहले किसान मजदूर एकता के लिए किसी भी जाति–वर्ग आधारित भेदभाव पर विचार करने से इनकार किया है, यह उसके साफ़ नज़रिए को दर्शाता है जिसके साथ वह पहचान जानने की कोशिश कर रही है जो, उसकी उम्र की लड़कियों को अमूमन करना पड़ता है। पिछले तीन महीने से दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर डेरा डाले तीन कृषि कानूनों का विरोध करते हुए यह सब करना, उसकी यात्रा को एक अदभूत पड़ाव में ले जाता है। वह पंजाब स्टूडेंट यूनियन (पीएसयू) की सदस्य सुखप्रीत कौर (22) और हरवीर कौर (22) के साथ उन कुछ युवतियों में से है, जिन्होंने 27 नवंबर को वहाँ पहुँचने के बाद से टिकरी बॉर्डर मोर्चा में लगातार डेरा जमा रखा है। कमल और सुखप्रीत केवल एक बार ही वापिस गईं हैं, वह भी घर जाने के लिए नहीं बल्कि 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली के लिए पंजाब में झंडे सिलवाने के लिए। हरवीर पहले कुछ दफ़ा अपने बीएससी की परीक्षा देने के लिए घर गईं थी और फ़िर हरियाणा पुलिस द्वारा उसकी बहन, श्रमिक एक्टिविस्ट नोदीप कौर के ग़ैरकानूनी गिरफ़्तारी होने पर।
कमल, छह महीने से अधिक समय से घर नहीं गई है। जब से जून में कृषि कानून लागू किए गए और पंजाब में आंदोलन शुरू हुआ था, वह तब से इसमें शामिल है। उसके सेल्समैन पिता और गृहिणी माँ ने, जत्थों के साथ लम्बा समय देने पर आपत्ति जताई और उसे रोकने की कोशिश भी की। कमल अपना मोबाइल लिए बिना ही निकल गई और तब से उसे संगठन का समर्थन मिल रहा है। “यदि आप लोगों की भलाई के लिए काम करते हैं, तो लोग आपकी देखभाल करेंगे।” वह आश्वासन से कहती है कि अपने घर से आने के बाद से ऐसा कुछ भी नहीं नहीं है जिसकी उसे कमी महसूस हुई हो। इसके विपरीत, विरोध प्रदर्शनों में एकजुट हुए समुदायों की मदद से उसे सक्रिय रूप से अपने आप में सक्षम होने का मौका मिला है। इस विरोध प्रदर्शन के बढ़ने और इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलने पर अब उसके माता–पिता भी यह स्वीकारने लगे हैं वह वास्तव में अच्छा काम कर रही है। उसके परिवार में कोई भी ज़मीन या खेतों का मालिक नहीं है, इसलिए वह इस आंदोलन के साथ जुड़ कर सभी प्रयासों से अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं को कैसे पूरा कर रहा है? वह बड़ी तस्वीर देखना पसंद करती है। यह लड़ाई, जैसा कि वह देखती है, केवल तीन कानूनों के खिलाफ नहीं है, बल्कि बढ़ते निगमीकरण और भाजपा के फासीवादी शासन के खिलाफ है। कमल, जो पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला से राजनीतिक इतिहास में बीए॰ कर रही है, कहती है कि यह आंदोलन सामाजिक–राजनीतिक सच्चाई को जानने और नेतृत्व एवं संगठनात्मक कौशलता सीखने की बेहतरीन जगह है।
सुखप्रीत (22), अर्थशास्त्र में एम॰ए॰ कर रही है और मेट्रो पिलर नंबर 775 के नीचे अपने टेंट में से ऑनलाइन परीक्षा दे रही है। पिलर 775 के तहत आने वाले पूरे कीर्ति किसान संघ की देखरेख अभी भी उनके दिन का ज्यादातर समय ले लेती है, लेकिन लड़कियां ज़ोर देते कहती हैं कि पुरुष भी उनकी मदद करते हैं। जैसे ही सुखप्रीत को, जिसे कमल “नेता” कहती है, कुछ खाली समय मिलता है, वह टिकरी मुख्य मंच के लिए अगले चरण की योजना बनाना शुरु कर देती है। जिस दिन मैं उससे पहली बार मिला, उसने किसानों के समर्थन में निकली महिलाओं पर भाजपा–आरएसएस की ट्रोल–आर्मी द्वारा विशेष रूप से लिंगभेदी टिप्पणियों के विरोध में पूरे शिविर में एक छोटे से मार्च का आयोजन किया था। उसकी अगली कार्यसूची में “महिला सप्ताह” कार्यक्रम है जो 8 मार्च को महिला दिवस तक जाता है।
हरवीर, जिसने हाल ही में फरीदकोट में बीएससी की अपनी अंतिम परीक्षा दी है, अनुभवी कार्यकर्ताओं के परिवार से आती है। इन सभी युवतियों के परिवारों को जो डर सताता है वह पिछले कुछ हफ्तों में हरवीर के परिवार के लिए पहले ही पूरा हो चुका है। उसकी बड़ी बहन नोदीप कौर को एक महीने तक ग़ैर–कानूनी गिरफ्तारी और हिरासत में हिंसा का सामना करना पड़ा है। अब नोदीप को जमानत मिल गई है। उसके माता–पिता हरवीर को घर लौटने और पुलिस प्रताड़ना से बचने के लिए बार–बार दलील दे रहे हैं। लेकिन हरवीर इसके बावजूद मजबूती से खड़ी है। “यह पहली बार नहीं है जब हम पुलिस के इस व्यवहार को देख रहे हैं। हमने अतीत में पंजाब में लाठीचार्ज का सामना किया है। इसलिए, हमें आश्चर्य नहीं हुआ। हम उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों से आश्चर्यचकित थे।” वह नोदीप के खिलाफ हथियारों के कब्जे के बेतुके आरोप और हत्या के प्रयास के आरोप के बारे में कहती है। नोदीप, मजदूरों के वेतन के मुद्दों के लिए लड़ रही थी। “लेकिन हम भाजपा सरकार से और कुछ उम्मीद करते भी नहीं हैं।” हरवीर मुस्कुराते हुए कहती है। उसे विरोध स्थल से अपनी विज्ञान व्यावहारिक परीक्षाओं के लिए जाना पड़ता है लेकिन वह विरोध प्रदर्शन के साथ अपनी पढ़ाई को संतुलित करने की कोशिश कर रही है। वह विरोध को वर्तमान शासन से संभावित ख़तरे को देखते हुए पढ़ाई से अधिक महत्वपूर्ण समझती है। “यदि यह आंदोलन विफल हो जाता है, तो कोई भी कभी भी सरकार के खिलाफ़ होंसला बढ़ाने में सक्षम नहीं होगा।”