प्रसेनजीत कुमार
23 मार्च, एक ऐतिहासिक दिन जब ब्रिटिश कंपनी राज के खिलाफ चल रहे आज़ादी आंदोलन को क्रांतिकारी दिशा देने वाले भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव तीन ऊर्जावान क्रांतिकारी आवाज़ों को फांसी के द्वारा खामोश करने की कोशिश हुई थी। लेकिन उस दौर में भी भगत सिंह ने जो क्रांतिकारी दिशा पूरे आजादी आंदोलन को दी उसको ब्रिटिश राज खामोश करने में असफल हुआ और भारत से उसे जाना पड़ा था।
भगत सिंह आजादी आंदोलन का एक ऐसे प्रकाश स्तम्भ हैं जिनकी ऊर्जा आजादी आंदोलन में ही खत्म नहीं हुई। आजादी के बाद भी एक समाजवादी समाज बनाने व आजादी का आभास समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए चल रहे देश के तमाम छात्र–युवा, महिला, किसान, मजदूर आंदोलनों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। आगे भी बने रहेंगे।
भगत सिंह बस एक उत्साहित, ऊर्जावान युवा मात्र ही नहीं थे जो अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए शहीद हो गए, वो एक विचार थे जो अपने दशक की सबसे बड़ी वैश्विक परिघटना रूसी क्रांति की तासीर को महसूस कर रहे थे और उस से प्रभावित हो रहे थे। जो मार्क्स, लेनिन से लेकर तमाम आधुनिक, वैज्ञानिक समाज के अग्रदूत विचारकों को पढ़ रहे थे तथा भारतीय संदर्भ में उसको सहेजने की कोशिश कर रहे थे। साथ ही भारतीय आजादी तथा उसके बाद के भारत के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक परिवर्तन के कार्यभार में छात्र युवाओं की बड़ी भूमिका निभाने की जिम्मेदारी लेने की बात कर रहे थे। वे उस दौर में भी अपने लेख ‘विद्यार्थी और राजनीति’ में इस बात पर जोर दिया कि सचमुच विद्यार्थियों का काम पूरे मन से ज्ञान अर्जित करना है लेकिन शिक्षा सिर्फ क्लर्की करने के लिए ही नही होनी चाहिए बल्कि उस शिक्षा में सामाजिक, आर्थिक, राजनीति परिवर्तन का ज्ञान और जब जरूरी लगे उसमें हस्तक्षेप करने की जिम्मेदारी भी शामिल होनी चाहिए।
आज जब हम भगत सिंह राजगुरु सुखदेव की शहादत दिवस मनाने जा रहे हैं तब देश में लगभग चार महीने से भी ज्यादा दिनों से खुले आसमान के नीचे भीषण ठंढ को झेलते हुए और अब कड़कड़ाती धूप में लाखों की संख्या में किसान दिल्ली के विभिन्न बोडरों पर अपने वाजिब मांगों को लेकर आंदोलन चला रहे हैं। उनकी प्रमुख मांग है कि तीनों कृषि बिल वापस हो और फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी हो। लेकिन मोदी सरकार पूरी तरह से अम्बानी – अडानी के पक्ष में कानून बना कर आजाद भारत में दूसरी कंपनी राज को थोप देना चाहती हैं। एक समय था जब ऐसे ही कंपनी राज को भगत सिंह जैसे नवजवानों और तेलंगाना के किसानों ने हराया था। आज का समय परिवर्तन का समय है और ऐसी घड़ी पर परिवर्तन के शहीदों को याद करना उनको ज़िंदा रखने के समान है। 1931 में जब लेनिन दिवस पर भगत सिंह और उनके साथी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ लड़ रहे हर इंसान को सलाम पेश कर रहे थे। आज किसान आंदोलन को देखकर लगता है कि भगत सिंह हमारे वक़्त को सलाम कर रहे होंगे।
किसान आंदोलन ने 23 मार्च के दिन को युवा दिवस के रूप में मनाने और आंदोलन में युवाओं को भागीदारी की अपील की है यह सचमुच उत्साहजनक हैं जिससे हम सभी छात्र – युवाओं को बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए। मोदी सरकार के इस फासीवादी नीतियों के खिलाफ़ किसान आंदोलन में शामिल होते हुए तथा उससे प्रेरणा लेते हुए शिक्षा रोजगार के संस्थानों को भी जिस तरह से निजी कंपनियों,पूंजीपतियों के हवाले कर देना चाहती हैं उसके खिलाफ आंदोलन खड़े करने की जरूरत है, नई शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से आम छात्र युवाओं को शिक्षा से दूर करने और शिक्षा को बाजार की वस्तु बना देने के खिलाफ खड़े होने और रेलवे से लेकर तमान सरकारी और संम्मानजनक रोजगार के संस्थानों में निजी हस्तक्षेप के जरिये रोजगार के अवसर को खत्म कर देने के खिलाफ़ खड़े होने की जरूरत है।
इस कोरोना आपदा के दौर में फासीवादी मोदी सरकार के खिलाफ़ किसानो, मजदूरों, महिलाओं के आंदोलनों के साथ खड़ा होते हुए शिक्षा – रोजगार की गारंटी के लिय व्यापक छात्र–युवा आंदोलन खड़ा करने के संकल्प लेना ही भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की शहादत दिवस मनाने और उनको सच्ची श्रद्धांजलि देना होगा।