संगीत तूर
नेता: सतनाम सिंह पन्नू, सूखविंदर सिंह सभ्रां
स्थापना: 2018, 2000 (किसान संघर्ष कमिटी)
क्षेत्र: तरनतारन, अमृतसर मुख्य, निकट के 12 ज़िले
“किसान संघर्ष कमेटी” के पीछे दो मुख्य उद्देश्य थे, पहला यह कि उनका धान नहीं बिकता था जिसकी वजह से तरनतारन में किसान स्वयं एकजुट हुए और लड़ कर इन्होंने वहाँ की मंडियों में ख़रीद आरंभ करवाई। उसके बाद, निकट की एक–दो और मंडियों में भी ख़रीद आरंभ हो गई। दूसरा, किसान इस बात से भी परेशान थे कि आढ़तियों ने प्रति क्विंटल फ़सल पर अपनी फ़ीस बढ़ा दी थी। लेकिन जब वे संगठित हो गए तो उन्हें एहसास हुआ कि जो आढ़तियों की फीस या अन्य चीज़ों में वृद्धि हो रही है, वे उसको भी वापिस करवा सकते हैं। इसी तरह जब और समस्यायें पैदा हुईं और उनके संग्रहण से समाधान निकलते गए, तो उन्होंने स्थायी रूप से अपनी समिति बना ली।
किसान मज़दूर संघर्ष कमिटी का गठन 2018 में हुआ, पर यह 2011 से ही मज़दूरों के हक़ों के लिए लड़ रहे हैं। मज़दूरों के यहाँ बिजली के बिल अधिक आने लगे थे क्योंकि उनकी नि:शुल्क 200 यूनिट बिजली वापिस ले ली गई थी, इन्होंने ब्यास मोर्चा शुरू किया और 200 यूनिट दुबारा मुफ़्त करवाए। इसी तरह इन्होंने कई सारे संघर्ष मज़दूरों के लिए लड़े और फिर मज़दूरों ने माँग की कि उनका भी नाम साथ में लिखा जाए ताकि जब वे झंडा फहरायें तो उसमें शामिल महसूस कर सकें। फिर जब हमने “किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी “ का गठन किया, तो हमें लगा कि यह नाम बहुत लम्बा हो जाएगा किंतु अब बोलने पर यह नाम बहुत प्यारा लगता है और “किसान संघर्ष मज़दूर कमेटी” का झंडा लेकर चलने पर किसान तथा मज़दूर दोनों ही बहुत गर्व महसूस करते हैं।
अब इनकी योजना किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी पंजाब की जगह भारत बनने की है क्योंकि जिस तरह की एकता और तालमेल इनको बाक़ी राज्यों के साथ, सिंघु सीमा पर बैठे देखने को मिल रहा है, वह वास्तव में बहुत बड़ी बात है। उसमें इन्हें कृषि संबंधित समस्याओं के समाधान भी मिलते हैं। इनकी समिति आने वाली समय में और विशाल हो सकती है। उन्होंने बताया की वे जब दिल्ली पहुँचे तो प्रारंभिक बैठकों में इसलिए शामिल नहीं हुए क्योंकि उन्हें हमेशा लगता था की यह आंदोलन केवल पंजाब का नहीं है और वे यह बयान नहीं देना चाहते थे कि हम पंजाब से आए हैं। हम पूरे भारत की बात करें और अन्य भारतीय संगठनों को भी वार्ता के लिए शामिल करना चाहिए था, इसलिए इन्हें लगा की उनको शामिल करना ज़रूरी भी है और वह शामिल हुए भी।
इन्होंने प्राकृतिक कृषि की बात की है जिसका मतलब है की हमें स्वयं को और अन्य लोगों को बहुत बड़े स्तर पर जागरूक करने की आवश्यकता है। हम दुबारा प्राकृतिक कृषि की ओर लौटें और जिस जगह पर जो फसल अच्छी हो, वहाँ वही उगाई जाए और सरकार को ज़िम्मेदार बनाएँ ताकि जहाँ चीज़ें ठीक चल रही हों, वहाँ सरकार ना केवल अपना स्वार्थ देखे, बल्कि यह भी देखें कि वातावरण कितना प्रदूषित हो चुका है और हमें इसे ठीक करने के लिए आज से ही प्राकृतिक कृषि का आरंभ करना होगा। अबोहर में संतरा बढ़िया होता है, मोहाली और रोपढ़ में आम, गुरदासपुर में गन्ने की फ़सल बढ़िया एवं मीठी होती है।
इस तरह उन्होंने उदाहरण दिया की जहाँ धरती जो विकसित करना चाहती है, वहाँ वो ही करें और पर्यावरण को सही संतुलन में ले जाएँ। इनके लगभग 1200 वाहन इस समय दिल्ली में हैं और 20 तारीख़ को 200 वाहन और रवाना होंगे। उन्होंने निकट भविष्य में स्वामिनाथन रिपोर्ट को लागू करने की बात कही। जिन छोटे–छोटे किंतु महत्वपूर्ण संघर्षों का सामना इन्हें करना पड़ा, उनमें धान की सही क़ीमत ना मिलना, आढ़तियों की समस्या, बिजली बिल की समस्या और डीज़ल की वृद्ध क़ीमत शामिल है।युवाओं में अनुशासन भी है। उन्होंने बताया कि जो युवा नये जुड़े हैं उनका अध्ययन चल रहा है, इस समय वे ख़ाली स्लेट हैं और अब बे संघर्ष के चलते बहुत कुछ सीख जाएँगे। वे बताते हैं कि संघर्ष ख़त्म होने के बाद वे अपने संघ के लोकतांत्रिक ढाँचे का निर्माण कर उसे और मज़बूत करेंगे। इनका अधिक काम युवकों को अपने साथ शामिल करना होगा ताकि उन्हें संगठित करने के लिए तैयार किया जा सके।
यदि वे समृद्ध भी हैं, तब भी बहुत समस्यायें आती रहती हैं जिन पर काम किया जा सकता है, जैसे कि बीज के मुद्दे – आजकल सब्ज़ी के बीज या तो महंगे हैं या संकर हैं। उत्पाद और तेल की क़ीमत भी बहुत अधिक है। सत्तवाद संरचना में भी किसान बुरी तरह फ़सते हैं। वे इसके विरुद्ध लड़ना चाहते हैं इसलिए वे युवा को अपने साथ शामिल करना चाहते हैं। इस समय उनकी 70-80 ट्रैक्टर–ट्रॉलीयाँ दिल्ली में खड़ी हैं और वे 26 जनवरी तक 200-250 ट्रैक्टर–ट्रॉलीयाँ आने की अपेक्षा कर रहे हैं। वे प्रगतिशील हैं और इनकी कोई राजनीतिक आकांक्षा नहीं है। वे किसी से भी राजनीतिक संबंध के बिना, स्वतंत्र रूप से ही काम करना पसंद करेंगे ताकि वे ज़मीन और आधार के साथ काम कर सकें और जब उनका संघ “आज़ाद किसान कमेटी, दोआबा” बड़ा हो जाएगा, तब वे इससे “दोआबा” काट कर “आज़ाद किसान कमेटी, पंजाब” कर देंगे।