Category: Edition 7

आज़ाद किसान कमेटी, दोआबा

हरपाल जी बताते हैं कि कई किसानों ने 50 लाख तक के आलू बोए हैं, यानि की यह एक परिपूर्ण इलाक़ा है, आत्महत्या जैसी कोई समस्या इतनी नहीं है। छोटे से छोटे किसान भी सब्ज़ियाँ आदि लगाकर अच्छी आय अर्जित करते हैं। हम इस आंदोलन में तब शामिल हुए जब हमें एहसास हुआ की हमारी ज़मीनें चली जाएँगी। 

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तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है

तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है

मगर ये आँकड़ें झूठे हैं ये दावा किताबी है

उधर जम्हूरियत ढोल पीटे जा रहे हैं वो

इधर पर्दे के पीछे बर्बरीयत है नवाबी है

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1988 और 2020: दो प्रचंड बहुमत की सरकारें और दो किसान आंदोलन

ग़ाज़ीपुर धरना स्थल (किसान क्रांति गेट) की सड़कों पे चलते जब बजुर्गों से बात करो तो इस बात का एहसास होता है के ये मोर्चा हमारे लिए नयी बात होगी, उन्होंने तो पहले भी आंदोलन किए हैं और सरकारों को झुकाया है। 32 साल पहले या जैसे वो कहते हैं

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किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी

“किसान संघर्ष कमेटी” के पीछे दो मुख्य उद्देश्य थे, पहला यह कि उनका धान नहीं बिकता था जिसकी वजह से तरनतारन में किसान स्वयं एकजुट हुए और लड़ कर इन्होंने वहाँ की मंडियों में ख़रीद आरंभ करवाई। उसके बाद, निकट की एक-दो और मंडियों में भी ख़रीद आरंभ हो गई। दूसरा, किसान इस बात से भी परेशान थे

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कौन है भारतीय किसान?

जैसे ही यह स्पष्ट हुआ कि विरोध नए साल में जारी रहेगा, किसान आंदोलन के नेताओं ने एक कार्यक्रम की घोषणा की, जिसमें 18 जनवरी 2021 को ‘महिला किसान दिवस’ निर्देश किया गया। इस दिन आंदोलन में भाग लेने वाले, भारत के कृषि क्षेत्र में काम करने वाले, किसान-मज़दूरों के लगभग आधे हिस्से के योगदान को स्वीकार करेंगे

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किसान आंदोलन की रातें

अक्सर हम आंदोलनों के दिनों के बारे में तो तमाम स्त्रोतों से देखते-सुनते रहे हैं। लेकिन आंदोलनों की रातों की बारे में शायद कम ही जानते हैं। किसान आंदोलन की रातें वैसी ही होती हैं जैसी आमतौर पर किसान की हर रात होती है।

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आखिर आप हमारी जमीनें छीनने की प्लानिंग क्यों कर रहे हैं?

आजादी के बाद एक लंबे समय तक, देश के अलग अलग हिस्सों में चले किसान आंदोलनों का नारा हुआ करता था “ज़मीन किसकी, जो जोते उसकी”। भूमिहीन मजदूरों को, जिनमें बड़ी संख्या में दलित शामिल थे, जमीन का मालिक बनाने की लंबी और ऐतिहासिक लडाइयाँ लड़ी गयी। तेलंगाना संघर्ष इनमें सिरमौर था।

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फेक न्यूज: किसान आंदोलन को बदनाम करने की साज़िश

एक तरफ जहाँ हज़ारों की संख्या में किसान नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग के साथ पिछले डेढ़ महीने से राजधानी को आती विभिन्न सड़को पर डेरा डाले हुए है, वही दूसरी तरफ सरकार और भाजपा-समर्थक ताकतें इस आंदोलन को बदनाम करने की भरसक कोशिश में लगी हुई हैं।

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किसान आत्महत्या से शमशान बने महाराष्ट्र से उठती संघर्ष की आवाज

पिछले 45 दिनों से, उत्तर भारत सहित देश भर के किसान राजधानी दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर चक्का जाम आंदोलन कर रहे हैं। 20 सितंबर 2020 को केंद्र सरकार द्वारा कोरोना लॉकडाउन अवधि का फ़ायदा उठाते हुए अन्यायपूर्ण तीन कृषि कानूनों को संसद में पारित किया गया था।

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माननीय उच्च न्यायालय, अब हमारे लिए घर लौटना मुमकिन नहीं

भारत की सर्वोच्च न्यायालय अचानक महिलाओं के प्रति गहरी चिंता से भर गई है। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने 12 जनवरी को किसान आंदोलन के संधर्ब पर चल रही बहस के दौरान कहा, “ हम यह बात रिकॉर्ड पर रखना चाहते हैं कि महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को भविष्य में विरोध प्रदर्शन में भाग नहीं लेना चाहिए।” 

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