देश के राजनीतिक हालात दिन–ब–दिन बद से बदतर होते जा रहे हैं और मुमकिन है कि स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों से हासिल अल्प लोकतांत्रिक सहूलियतें भी वर्तमान शासकों द्वारा जबरन छीन ली जाएं। जनता में अपना विश्वास गंवा बैठी सरकार के अपने राजसुख की आयु वृद्धि के लिए एकमात्र विकल्प है कि सरकार अपने लोकतांत्रिक आचरण का चोला उतार दे और लोकतांत्रिक व्यवस्था को बूटों तले कुचले, जनता के प्रति जवाबदेही से बचें। सरकार पर जनदबाव बढ़ने के साथ ही सरकारी निरंकुशता बढ़ती जाएगी। जिससे एक ऐसी परिस्थिति का निर्माण होगा जिसमें जनता के लिए ‘ क्रांति ‘ ही एकमात्र विकल्प बचा रह जाएगा। भारतीय परिवेश में क्रांति के मूल वाहक युवा और मजदूर होंगे जिनका मजबूत और व्यावहारिक लेकिन अटूट अनुशासित व संयमित मेल दुनिया में एक नई पहचान कायम करेगा। भारत को एक बेहतर प्रशासन देने के साथ आर्थिक तौर पर सम्पन्न भी बनाएगा।
भारत में क्रांति किसी एक राजनीतिक पार्टी द्वारा संपन्न हो इसकी कामना तो की जा सकती है लेकिन सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है। हाँ, एक बात निश्चित ही कही जा सकती है कि जनता द्वारा निर्मित ‘क्रांतिकारी मोर्चे’ में कई पार्टियां शामिल होकर अपनी भागीदारी करें। इस सूरत में उन्हें अपने राजनैतिक एजेंडे को ‘क्रांतिकारी मोर्चे’ के एजेंडे से पीछे रखना होगा। हम जिस दौर की तरफ बढ़ रहे हैं जनता के इस ‘क्रांतिकारी मोर्चे’ के निर्माण के लिए जनता को प्रेरित करने के साथ–साथ युवाओं और मजदूरों को एक–दूसरे से नजदीकी बढ़ाने में लग जाना चाहिए।
क्योंकि उस मोर्चे की मूल शक्ति युवा और मजदूर होंगे तो हमें इसका नाम ‘ राष्ट्रवादी युवा और मजदूर मोर्चा ‘ रखना होगा क्योंकि भारतीय जनमानस विशेष रूप से युवा और मजदूर को अपने राष्ट्र से प्रेम होता है और ‘राष्ट्रवाद ‘ शब्द उनके बीच सबसे ज्यादा प्रचलित है जिसका हम बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं ताकि वह इस मोर्चे की आधारभूत संकल्पनाओं को सहज ही ग्रहण कर सकें।
जो लोग अपने – अपने तरीकों से भारतीय जनमुक्ति का स्वप्न देखते आ रहे हैं उन्हें इसे अपना कार्यभार समझकर पहल तेज करनी चाहिए। पार्टी को इस पर पहल के लिए जरूरी रायशुमारी शुरू करनी चाहिए.