मोरचे में सेवा

मोरचे में सेवा

जसप्रीत कौर

रोज़ की तरह आज भी मोरचे में सेवा करते कुछ बुजुर्गों ने पुकार कर बिठा लियाबेटी दूध पीती जा, दूध नहीं पीना तो गुड तो खा ले। इसी बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया। सरकार के साथ मीटिंग तो गोल रही और आगे की मीटिंग के रास्ते भी बंद हो गए तो मैंने पूछा बाबा आगे क्या होगा। बाबा बोले बेटा पहले दिन से बैठे हैं आगे भी बैठे रहेंगे, 24-25 को लाखों और जुड़ जाएँगे, गणतंत्र दिवस जो मनाना है। दूसरे बाबा बोले, बेटा ऐक बात के लिए तो हम इस सरकार के एहसानमंद हैं, के इसने हम सब तिरंगे के रंगो को इकट्ठा कर दिया है। यहाँ हर धरम, जात, प्रांत के अमीर और ग़रीब लोग सब बंद मुठी की तरह ऐकजुट हैं। हम जो ऐक ही मिट्टी के बर्तन हैं, सालों से अलग हुए बैठे थे, उसी का फ़ायदा उठा सरकारें हमें तोड़तीं चली गयी। पर अब की बार हमारे मन की बात पूरी होगी। सविधान में जो लिखा है – “हम भारत के लोगमिल कर ये देश का त्योहार मनाएँगे। जिस भारत की रचना हमारे बजुर्गो ने की थी वही दिखता है इस मोर्चे में, केसरिया रंग बहादुरी और हिम्मत का जो पंजाब से चल कर देश के कोने कोने तक पहुँच गया, सफ़ेद शान्ति का प्रतीक, इस धरने से बेहतर इसकी मिसाल कहाँ मिलेगी, हरा रंग तो हमारी ज़मीनो की ख़ुशहाली का रंग है, इसे हमसे बेहतर कौन पहचानता है। इस देश के जवान भी हम और किसान भी हम तो गणतंत्र दिवस भी हमारा।

pa_INPanjabi

Discover more from Trolley Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading