Day: ਮਾਰਚ 31, 2021

शाहजहांपुर खेड़ा बॉर्डर

हम शाहजहांपुर खेड़ा बॉर्डर पर पिछले 13 दिसंबर से लगातार यहां पर मौजूद है 25 जनवरी सुबह जब हम उठे और हमने देखा कि शाहजहांपुर बॉर्डर पर किसानों की लगातार बढ़ोतरी हो रही थी। किसान राजस्थान हरियाणा गुजरात उत्तराखंड केरल आंध्रप्रदेश महाराष्ट्र तमिलनाडु असम मणिपुर पश्चिम बंगाल झारखंड पंजाब

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तिहाड़ जेल में किसान

(जेल को ग्लैमराइज करने का मकसद नहीं है. जेल बहुत बुरी होती है. कैद में रहना बहुत मुश्किल है) 29 जनवरी को दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए पंजाब के पेरों गांव के 43 वर्षीय किसान जसमिंदर सिंह गीली आंखों से मेरी तरफ झांकते हैं और कहते हैं, “सरकार को क्या लगता है..

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लोकतंत्र की सड़क बहुत लम्बी है ; सरकार की कीलें कम पड़ जाएँगी !

देश को डराने की पहली जरूरत यही हो सकती है कि सबसे पहले उस मीडिया को डराया जाए जो अभी भी सत्ता की वफ़ादारी निभाने से इनकार कर रहा है। सीनियर सम्पादकों के ख़िलाफ़ मुक़दमों के साथ-साथ युवा फ़्रीलान्स पत्रकारों की गिरफ़्तारी आने वाले दिनों का वैसा ही ‘मीडिया सर्वेक्षण’ है

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कृषि संकट और आवारा पशुओं की परेड

समाजवादी पार्टी (भारत) की किसान इकाई, समाजवादी किसान सभा उन्नाव और हरदोई ज़िलों में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या और अवसर पर अपनी गोजातीय परेड की। समाजवादी किसान सभा के अध्यक्ष, अनिल मिश्रा को, 25 जनवरी, 2021 को सुबह उन्नाव ज़िले के खानपुर पीराली गाँव में उनके घर से हिरासत में लिया गया

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किसानों के संघर्ष का समर्थन करें: यह हमारा संघर्ष भी है।

केंद्र सरकार किसानों के आंदोलन को ऐसा मान रही है जैसे मानो वह देश-विरोधी हो; शहर को तार, कीलें, सीमेंटेड बैरिकेड्स और हजारों पुलिस के साथ इस प्रकार किलेबंद किया गया है, जैसे किसी आक्रमणकारी सेना के खिलाफ किया जाता है। भारत के सभी नागरिकों को किसानों का समर्थन करने की जरूरत है।

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कृषि सुधार क़ानून कैसे हों?

प्रधान मंत्री मोदी ने 25 दिसंबर को अपने भाषण में कहा था कि तीनों विवादास्पद खेती कानून, जो देश में कृषि बाज़ारों की दक्षता (efficiency) को बढ़ाने का लक्ष्य रखते हैं, पिछली सरकारों द्वारा नज़रअंदाज़ किए गए लाखों छोटे किसानों को न्याय दिलाएंगे।

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क्या मुज़फ़्फ़रनगर अभी बाक़ी है?

पिछले कुछ दिनों लोग आशंका व्यक्त कर रहे हैं और राकेश टिकैत को लेकर जगे उत्साह पर भी गुस्सा जता रहे हैं। सबसे ज़्यादा गुस्सा बीकेयू की 2013 में मुज़फ्फरनगर और शामली ज़िलों में हुई सांप्रदायिक हिंसा में गैर जिम्मेदाराना भूमिका से है। इस हिंसा में हुए पागलपन को पश्चिम यूपी में समाए साढ़े सात साल से अधिक हो गए हैं।

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पश्चिमी उत्तरप्रदेश में इत्तर खेती के मुद्दे पर लामबंदी

राष्ट्रीय किसान मजदूर मंच के राष्ट्रीय अध्यक्षमर्थन दिया, इसी सिलसिले में उनसे  टेलीफोन के जरिए बातचीत की शिवम मोघा ने।

 प्रश्न- मेरा आपसे पहला सवाल यह है कि अभी जो किसान आंदोलन के मौजूदा हालात है और जो बीते चार-पांच दिन से पश्चिमी उत्तर प्रदेश से किसानो का सहभागिता बढ़ी,

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ਭਾ. ਕਿ. ਯੂ. ਦੋਆਬਾ

ਆਗੂ – ਸਤਨਾਮ ਸਿੰਘ ਸਾਹਨੀ, ਕੁਲਦੀਪ ਕੌਰ ਰਾਏ, ਕਿਰਪਾਲ ਸਿੰਘ ਮੂਸਾਪੁਰ, ਮਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਰਾਏ

ਭਾ ਕੇ ਯੂ ਦੁਆਬਾ ਛੇ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ 2015 ਵਿੱਚ ਗੰਨੇ ਦੀ ਪੇਮੈਂਟ ਦੇ ਵਿਵਾਦ ਕਾਰਨ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈ। ਇਹ ਯੂਨੀਅਨ ਇਸ ਵਕਤ ਜਲੰਧਰ, ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ, ਕਪੂਰਥਲਾ ਅਤੇ ਨਵਾਂਸ਼ਹਿਰ ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ‘ਚ ਆਪਣੀਆਂ ਇਕਾਈਆਂ ਬਣਾ ਚੁੱਕੀ ਹੈ। ਇਸ ਦਾ ਹੈੱਡਕੁਆਟਰ ਫਗਵਾੜਾ ਵਿੱਚ ਹੈ।

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ਸਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਸਾਜਿਸ਼ਾਂ ਰਹੀਆਂ ਨਾਕਾਮ

ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਕਿ ਕਠਿਨ ਦੌਰ ਕੌਮਾਂ ਲਈ ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਵਾਂਗ ਹੁੰਦੇ ਨੇ , 26 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਲਾਲ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਜੋ ਘਟਨਾ ਵਾਪਰੀ ਉਸ ਪ੍ਰਤੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਵੱਖਰੇ ਵੱਖਰੇ ਵਿਚਾਰ ਸਾਹਮਣੇ ਆ ਰਹੇ ਹਨ। ਕੋਈ ਇਸ ਕਦਮ ਦੀ ਸਲਾਘਾ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਕੋਈ ਇਸ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਮਿਲੀਭੁਗਤ ਨਾਲ ਖੇਡੀ ਗਈ ਸਾਜਿਸ਼ ਮੰਨ ਰਿਹਾ ਕਿਸੇ ਦਾ ਮੰਨਣਾ ਹੈ ਕਿ ਦੀਪ ਸਿੰਧੂ ਨੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਿਲ ਨਾ ਕਰਨ ਦਾ ਰੋਸ ਪ੍ਰਗਟ ਕੀਤਾ ਹੈ  ।

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