Category: Edition 18

ਸ਼ਹਿਰੀ ਕੁੜੀ ਦੀ ਟੀਕਰੀ ਫੇਰੀ

ਪੰਜਾਬ ਨਾਲ ਮੇਰਾ ਰਿਸ਼ਤਾ ਦੁਰਾਡਿਓਂ  ਰਿਹਾ ਹੈ, ਕਿਸੇ ਅਜਿਹੇ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰ ਵਰਗਾ ਜਿਸ ਨੂੰ ਤੁਸੀਂ ਸਾਲ ਦੋ ਸਾਲਾਂ ਬਾਅਦ ਮਿਲਦੇ ਤਾਂ ਹੋ ਪਰ ਨੇੜਿਓਂ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦੇ। ਜਦੋ ਮੈਂ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਰਹਿਣ ਆਈ ਤਾਂ ਸਿਰਫ ਟੀਵੀ ਮੀਡਿਆ ਵਿਚ ਜੋ ਦੇਖਿਆ ਉਸਤੋਂ ਹੀ ਪੰਜਾਬੀ ਕਲਚਰ ਨੂੰ ਸਮਝਦੀ ਸੀ।

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ਐੱਫ ਸੀ ਆਈ, ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਸਿੱਧਾ ਭੁਗਤਾਨ ਅਤੇ ਆੜ੍ਹਤੀਏ: ਹੱਲ ਕੀ ਹੈ?

ਇਸ ਵਿਚ ਕੋਈ ਸ਼ੱਕ ਨਹੀਂ ਹੈ ਕਿ ਆੜ੍ਹਤੀਏ ਏਪੀਐਮਸੀ ਮੰਡੀ ਸਿਸਟਮ ਵਿਚ ਵੱਡੇ ਲਾਭਕਾਰੀ ਹਨ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਜਿਨਸ ਦਾ ਮੁੱਲ ਉਗਰਾਹੁਣ ਅਤੇ ਕਰਜਾ ਦੇਣ ਦੇ ਚੱਕਰ ਵਿਚ ਏਜੰਟ ਦੇ ਤੌਰ ਤੇ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਖੇਤੀ ਸਾਧਨ ਜਿਵੇਂ ਬੀਜ, ਖਾਦਾਂ, ਦਵਾਈਆਂ, ਟਰੈਕਟਰ ਅਤੇ ਖੇਤੀ ਵਸਤਾਂ ਦੀ ਖਰੀਦ ਵੇਚ ਦੇ ਬਾਜ਼ਾਰਾਂ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਹਨ; ਉਹ ਬੈਂਕਾਂ ਦੇ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰਜਾ ਸਿਸਟਮ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਛੋਟੇ ਕਿਸਾਨਾਂ

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पुश्तैनी गाँव के लोग

वहाँ वे किसान हैं जो अब सोचते हैं मजदूरी करना बेहतर है

जब कि मानसून भी ठीक-ठाक ही है

पार पाने के लिए उनके बच्चों में से कोई

गाँव से दो मील दूर मेन रोड पर

प्रधानमंत्री के नाम पर चालू योजना में 

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ग्रामीण एवं शहरी द्वंद का परिणाम है किसान आन्दोलन

भारत का किसान एक बार फिर सड़क पर आने को मजबूर है इसका तात्कालिक कारण केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानून है। इन कानूनों का विरोध वैसे तो पुरे भारतवर्ष में हो रहा है लेकिन अधिकतम प्रभाव दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान एवं पंजाब में दिख रहा है।

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दीपक हिंदुस्तानी: एक सेवादार

हरियाणा में किसान आंदोलन की अगुवाई यूनियन नहीं कर रही है। मेरे दो दोस्त आंदोलन में शामिल है। मैंने उनसे इस विषय पर बात की कि हमें यूनियन में शामिल होना चाहिए। मैं उनसे इस पर लगातार बातचीत करता रहा। पर अंततः उन्होंने मना कर दिया। पर मैंने तो ठान लिया था। सब की भलाई के लिए मुझे आंदोलन में रहना ज़रूरी है।

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गाँव की ज़मीन पर

अजनबी भी समझेगा, पिछड़ापन असल में

मैं गांव में बसता हूँ, या गांव मेरे दिल में

जहाँ ठाकुर की आवाज़ पर

सारे दलित उनकी खेतों पर 

पेट में भूख मनमें दहशत लेकर

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नए कृषि क़ानून: किसका फ़ायदा, किसका नुक़सान

न्यूज़ की सुर्ख़ियों और मध्यमवर्गीय जनता की नज़र में, किसान तब तक नहीं आते, जब तक आत्महत्या के आँकड़ों पर बहस ना छिड़ी हो। “जय जवान जय किसान” वाले देश में, जवानों पर तो खूब चर्चा होती रही है, पर ऐसे बहुत कम उदाहरण रहें हैं, जब किसानों और उनकी माँगों को, टीवी डिबेट में उचित जगह मिली हो।

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अंबेडकर की विरासत जाति-विरोधी किसानों के आंदोलन में जीवित है

ऐतिहासिक रूप से कहा जाए तो, भारत में अंबेडकर का योगदान अक्सर संगठित दलित राजनीति की स्थापना से जुड़ा है। अंबेडकर पर विद्वतापूर्ण लेखन ने काफ़ी हद तक ध्यान जातिगत सवाल और सामाजिक न्याय की राजनीति के साथ उनके सहयोग पर केंद्रित किया है। भारतीय संविधान के प्रारूपण में उनका योगदान पहले से ही व्यापक रूप से पहचाना और मनाया जाता रहा है।

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वैसाखी और जलियाँवाला बाग

13 अप्रैल को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर वैसाखी पर्व मनाया गया और जलियाँवाला बाग के शहीदों को श्रद्धांजलि दी गयी । 

 वैसाखी पर्व सिखों में बहुत महत्व रखता है क्योंकि इस दिन 1699 को सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ सजाया था। पाँच सिखों को अमृत छका कर खालसा फ़ौज में शामिल किया।

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अंबेडकर के भूमि सुधार और खेती पर लंबे समय से नजरअंदाज विचार

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान आर्थिक विकास में और ग्रामीण भारत में भूख को दूर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चाहे देश के सामयिक आर्थिक विकास में द्वितीयक (उद्योग) क्षेत्र प्रमुख है, फ़िर भी लगभग 65 प्रतिशत लोगों का जीवन अभी भी प्राथमिक क्षेत्र (कृषि) पर निर्भर है। जी.डी.पी. में कृषि की हिस्सेदारी हाल के दिनों में तेज़ी से गिरी है।

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