केहर सिंह ने भरे मन से बताया, “3 भाई तीन साल में चले गए, मुश्किल तो था पर एक बात जो जिंदगी में गाँठ बाँध कर चला हूँ वो यह कि कुछ भी हो जाए घबराना नहीं। पिता जी के पास 40 एकड़ जमीन थी तो चारों भाईयों के हिस्से 10-10 एकड़ आई। मैंने अभी पिछले साल ही डेढ़ एकड़ और खरीदा है तो मेरे पास अभ 11.5 है, पर भाईयों के जाने के बाद मैं और पिता जी ही थे जो सारी जमीन पर काम करते थे।” उसने पुराने दिनों को याद करते कहा कि आज की तरह तब पानी का बंदोबस्त नहीं था। टूबवेल तो सन 1987 के आस पास आया हमारे इलाके में। केहर सिंह ने बताया कि 1994 में उनके पिता जी भी चल बसे और आगे कहा, “फिर तो एक दम ही अकेला पड़ गया मैं। पर देखो तभ भी डरा नहीं और आज 30 साल बाद बड़े भाई का लड़का सर्विस कर रहा है, अच्छा कमाता है अपने लिए। मैंने एक बात हमेशा सोच कर रखी थी के ज़िन्दगी में आगे परिस्थिति जैसी भी हो जाए कभी अपने लड़कों और भाई के बच्चों में फ़र्क कते ना करुगा। आज सभी सुखी हैं। बीच वाले भाई के बच्चे साथ में खेती करते हैं। मेरा भी एक लड़का प्राइवेट सर्विस कर रहा है, यही नोएडा के पास में।”
बचपन में कबड्डी खेलने का बहुत शोक रखने वाले केहर सिंह ने बताया कि उन्हें रेड डालने और पकड़ने दोनों का काम बढ़िया आता था और यहाँ तक कि शादी के बाद भी वो कबड्डी खेलते रहे। अपने खेल के किस्से बताते हुए वो बोले कि वो खेत छोड़ भाग जाते मैच खेलने के लिए। “इतना पसंद था! मगर ज़िम्मेदारियों से भाग कर नहीं जा पाया”, भारी मगर दृढ़ आवाज़ में केहर सिंह बोले। आज भी वो उन दिनों को भावुक हो उठते हैं। उन्होंने बताया कि फिर एक दफा उनके गहरी चोट लगी, तबसे तो ताकत ना रही है कुछ भी करने की। चोट भी ऐसी कि आम इन्सान उठ ना पाए बिस्तर से महीनों तक! मगर केहर सिंह 10 दिन बाद उठ कर खेत को चल दिए थे। दरअसल एक बैल ने सींघ घुसा दिया था उनकी छाती में सन 1994 में, तीन पसलियाँ टूट गई थी। “पर एक बात वही बस कि डरना किसी चीज से नहीं। समझे के ना!”, केहर सिंह ने अपने अंदाज़ में कहा।
उन्होंने अपने जवान दिनों के किस्से सुनाते हुए बताया कि वो पानी में 30-40 फुट तक नीचे चले जाते थे और वहाँ से चीज निकाल ले आते थे। उनके गांव के पास 40 फुट गहरा पानी वाला टैंक था जिसमें अकसर लोग गिर जाते थे, तो कई बार लोगों को निकाला। एक बार उसी टैंक से उन्होंने एक मरे हुए इंसान के शरीर को बाहर निकाला। जब मैंने केहर सिंह से पूछा कि क्या आपको उस समय डर नहीं लगा? वो हस कर बोले, “डर तो ज़िंदा इंसानों से लगता है, जो मर ही गया उस से क्या डरना?” “पूरे गांव में सभ मुझको ही ढूंढते थे जब कभी ऐसा काम करना पड़ जाता।”
28 जनवरी, 2021 से केहर सिंह किसान संघर्ष के टिकरी मोर्चे पर बैठे हैं, एक बार भी घर नहीं गए। उन्होंने कहा पीछे बच्चे हैं पीछे देख भाल करने के लिए। उनके परिवार को जब उनसे मिलना होता है तो मोर्चे पर ही आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि परिवार ने गरीबी भी देखी है और अब उन हालातों से निकले भी हैं; कर्जा भी लिया और चुकाया भी। उन्होंने कहा कि कर्जा लेना भी सब के बस की बात नहीं रही। वो भी इस लिए ले पाए क्यूँकि परिवार के पास ज़मीन थी। “अभ कुछ होगा ही नहीं तो क्या ही करेंगे? बस इस लिए लड़ रहे हैं”, केहर सिंह बोले। उन्होंने पास में खेल रहे बच्चों की तरफ इशारा करके कहा कि जो ये बहादुरगड़ के बच्चे हैं, कोई भी नहीं है जो हरियाणा का है इन में से। इनके माँ बाप यूपी-बिहार से आ कर यहाँ काम कर रहे हैं। और इन में से भी कईयों को छोटी उम्र में ही काम करना पड़ता है। पिछले दिन ऐसे ही एक बच्चे से हुई बात को याद करते हुए वो बोले, “अभी कल मेरी एक बच्चे से बात हुई, बिहार का था वो। बोला उनके उधर 15 भीगे ज़मीन है, खेती करते थे पहले पर पानी नहीं है खेती का, तो यहाँ आ गए 5 साल पहले। अब पिता जी यहाँ ऑटो डाल लिए और वो खुद यहाँ एक दुकान पे लगा है।” केहर सिंह ने बहुत ही परेशान होते हुए अपनी चिंता व्यक्त की, “यहीं हाल हमारा होगा। फसल उगाई जाएगी, बिक्री होगी नहीं, दाम मिलेगा नहीं, महंगी खाद डालकर जमीन भी गलेगी और हम भी!”
केहर सिंह अभ 64 वर्ष के हो गए हैं, गुस्से में बोले, “इस उम्र में कोई आकर कहे कि यह ज़मीन जो तुम 50 साल से जोत रहे हो तुम्हारी नहीं है, यह तो नहीं सुनेंगे ना! बस इसी लिए लड़ रहे हैं। और जीत कर जायेंगे तो जायेंगे, नहीं तो यहाँ भी गुज़र गए तो कोई गम नहीं। जैसी भगवान की मर्जी! पर जायेंगे नहीं।”