
अभी तो लड़ना है
अभी तो लड़ना है तब तक
जब तक मायूस रहेंगे फूल
तितलियों को नहीं मिलेगा हक़
जब तक अपनी जड़ों में नहीं लौटेंगे पेड़
अभी तो लड़ना है तब तक
जब तक मायूस रहेंगे फूल
तितलियों को नहीं मिलेगा हक़
जब तक अपनी जड़ों में नहीं लौटेंगे पेड़
जनता को अफ़वाहों में उलझाना बहुत आसान है। हालिया में अफ़वाह उड़ी कि किसानों ने दिल्ली की ओर आते ऑक्सिजन टेंकर को रोक लिया। इस अफ़वाह का किसान नेताओं ने सिरे से खंडन किया।अगर आप पंडित श्रीराम शर्मा मेट्रो स्टेशन से नीचे उतरेंगे तो पाएँगे
राज्य में जनता की मांग के विपरीत हरिद्वार जनपद को जोड़ कर तत्कालीन भाजपा सरकार ने पर्वतीय राज्य की अवधारणा को ख़त्म कर दिया था। उसने इस नवोदित राज्य की संरचना को ही पूरी तरह बदल दिया। हरिद्वार का क्षेत्रफल उत्तराखंड में मात्र 5 प्रतिशत है।
केहर सिंह ने भरे मन से बताया, “3 भाई तीन साल में चले गए, मुश्किल तो था पर एक बात जो जिंदगी में गाँठ बाँध कर चला हूँ वो यह कि कुछ भी हो जाए घबराना नहीं। पिता जी के पास 40 एकड़ जमीन थी तो चारों भाईयों के हिस्से 10-10 एकड़ आई। मैंने अभी पिछले साल ही डेढ़ एकड़ और खरीदा है तो मेरे पास अभ 11.5 है,
पिछले 13 दिसंबर से लगातार मैं शाहजहांपुर खेड़ा बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में शामिल होकर नज़दीक से किसान आंदोलन की ताकत को महसूस कर रहा हूँ, कई उतार चढ़ाव आये, कई बार ऐसा लगा कि अब यह आंदोलन टूटकर बिखर जाएगा पर अगले ही पल मैंने इस आंदोलन को एक नई ऊर्जा के साथ खड़े होते देखा है।
मालूक सिंह खिंडा, 59, पुत्र स्वर्गीय मुख्तियार सिंह, ननकमत्ता, उत्तराखंड के एक किसान परिवार से हैं और न्यू लाइट स्कूल के मालिक हैं। ग़ाज़ीपुर मोर्चे के किसान आंदोलन में शामिल होकर अपना पूर्ण समर्थन दे रहे हैं। बल्कि मोर्चे में डटे रहते हुए अपने घर में साँढु के बेटे की शादी में भी शामिल नहीं हो पाए।
देश इस समय एक अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है। इसे हमारे राजनीतिक नेतृत्व की खूबी ही माना जाना चाहिए कि जो कुछ भी चल रहा है उसके प्रति लोग स्थितप्रज्ञ अवस्था को प्राप्त हो गए हैं। अर्थात असीमित दुखों की प्राप्ति पर भी मन में किसी भी प्रकार का कोई उद्वेग नहीं उत्पन्न हो रहा है। कछुए की तरह जनता ने भी अपने सभी अंगों को समेट लिया है।
आज पूरा देश कोरोना महामारी की दूसरे लहर को झेल रहा है। आज सोशल मीडिया पर हर दूसरा पोस्ट किसी के लिए मदद की गुहार के तौर पर दिखाई दे रहा है। अपने क़रीबी को ऑक्सीजन की कमी, वेंटिलेटर की कमी, बेड की कमी, दवाईयों की कमी से लोग मरते देख रहे हैं
ਜੂਨ 2020 ਵਿਚ ਕੇਂਦਰ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਤਿੰਨ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਆਰਡੀਨੈਂਸਾਂ ਨੂੰ ਪਾਸ ਕਰਨ ਅਤੇ ਸਤੰਬਰ 2020 ਵਿਚ ਪਾਰਲੀਮੈਂਟ ਵੱਲੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਤਿੰਨ ਆਰਡੀਨੈਂਸਾਂ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਲੈਣ ਲਈ ਤਿੰਨ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਬਿਲ ਪਾਸ ਕਰਕੇ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣਾਉਣ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਕਿਸਾਨ ਸੰਘਰਸ਼ ਬਹੁਤ ਹੀ ਪੱਖਾਂ ਤੋਂ ਨਿਵੇਕਲਾ ਹੈ। ਪੂਰੀ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਾਂਤਮਈ ਅਤੇ ਲੋਕਤੰਤਰਿਕ ਕਿਸਾਨ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਹੋਰ ਕੋਈ ਬਰਾਬਰ ਦੀ ਉਦਾਹਰਣ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦੀ।
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