पिछला एक हफ्ता काफी मुश्किल रहा, आप में से कईयों के लिए और साथ में हमारे लिए भी । फोन और इंटरनेट से बचने की कोशिश के दौरान बार-बार पिछले मैसेज खोल के पढ़े, फोन पर अलग-अलग लोगों से हुई बातचीत को याद किया और कई दफा रो भी दी। अपने आप को ऐसे कटघरे में खड़ा पाया जहां सिर्फ इल्ज़ाम लग रहे थे और लग रहा था जैसे कोई भी खुले दिल से मेरा पक्ष सुनने तक को तैयार ही नहीं है। उससे भी बड़ा सवाल था कि मैं कहाँ गलत थी? सोचा, कई दिन तक सोचा! दिमाग में कई सवाल थे और जवाब भी, मगर सोशल मीडिया पर कुछ लिखने की हिम्मत नहीं कर पाई। आज यहां लिखने की कोशिश कर रही हूँ।
2020 के दिसंबर महीने के आखरी हफ्ते में पहला कॉल आया था मुझे वरुण के बारे में और फिर एक जनवरी और फरवरी के आखिरी हफ्ते में। हर कॉल एक जैसी थी, जिनमें मुझ से पूछा गया कि क्या आप वरुण को जानती हैं जो आपके साथ ट्रॉली टाइम्स में काम करता है? मेरे हाँ बोलने पर मुझे बोला गया कि वो एक प्रेडेटर है, महिलाओं का शोषण करता है। एक कॉलर का कहना था कि बेशक उन्होंने खुद उसका उत्पीड़न नहीं सहा पर वो इस बारे में जानती हैं और बाकी दो को किन्हीं और लोगों ने मेरे तक यह बात पहुंचाने के लिए बोला था। मैंने उन सब को धैर्य से सुना और किसी की एक भी बात पर संदेह नहीं किया। राजनीतिक इंसान हूं और खुद महिला भी, बखूबी जानती हूं कि ऐसी स्थिति में न तो सर्वाइवर की पहचान जानने का मुझे हक है जब तक कि वो खुद न सामने आना चाहे, और न ही घटना को साबित करने की जिम्मेदारी सर्वाइवर पर है। इसलिए न तो किसी से सबूत मांगा और न पहचान पूछी। तीनों से पूछा कि क्या आप या जिन्होंने आप को कहा है वे (बिना नाम बताए), कुछ लिखित में दे सकते हैं? किसी भी तरह की शिकायत, मैसेज कर दें यां बिना पहचान बताए ईमेल कर दें। कोई शिकायत नहीं आई। और ऐसा हरगिज़ नहीं था कि शिकायत की गैरमौजूदगी में मैं चुप रही।
ट्रॉली टाइम्स एक वॉलंटरी कलेक्टिव उधम हैं जो हमने किसान आंदोलन के दौरान ही दिसंबर 2020 में शुरू किया था। हम में से बहुत सारे लोग दिसंबर से पहले एक दूसरे को नहीं जानते थे, शुरू के दिनों में एक्टिव 8-9 लोगों में से वरुण को तो कोई भी नहीं जानता था। सिंघू बॉर्डर पर मौजूद एक और छात्र संगठन की महिला मित्र ने उसे मेरा नंबर दिया था। वो आया टिकरी मोर्चे पर, मुझे मिला, बोला काम बताओ और किसान आंदोलन में बाकी कईयों की तरह धीरे धीरे टिकरी पर हो रहे कई कामों का खुद से हिस्सा बन गया। इतना ही नहीं उसने सबसे दोस्ती कर ली, मेरा पूरा परिवार जो पहले दिन से मोर्चे का हिस्सा है उसने उन सबसे भी भावनात्मक रिश्ता बनाया। वो अपने आपको मेरा बड़ा भाई बोलता था जबकि मैं कतई इस किस्म के सर्कल्स में भाई बहनों के रिश्ते बनाने के हक में नहीं। पर मुझे लगा कि अगर किसी और इंसान की इस प्रकार की भावना है तो वो एकदम रखे, मैं उसकी इज्जत करती हूं जब तक वो मेरी जिंदगी में किसी किस्म का कोई दखल नहीं देता।
इस सबके दौरान पहला कॉल आया, तब वरुण अपने घर गया था। ट्रॉली टाइम्स की टीम के सब मैंबर अलग अलग मोर्चों से और कुछ घर से ऑनलाइन काम करते हैं। ऐसे में जब कॉल आई तो मैंने टिकरी मोर्चे पर मौजूद अपने तीन साथियों से इसके बारे में बात की, इसी में हमें 2-3 दिन लग गए। हम सब का किसी कलेक्टिव को मुख्य भूमिका में चलाने का पहला तजुर्बा था। हमने तय किया कि जब तक कोई लिखित शिकायत नहीं आती, हम इंतज़ार करने की बजाए वरुण से बात करेंगे। और हमारा शिकायत मांगने का उद्देश्य था कि शिकायत मिलते ही उसे उसके आधार पर निष्कासित कर सकें और आगे की प्रक्रिया शुरू हो। कोई कमेटी बना कर जांच होगी और उसकी रिपोर्ट आने पर ही उसे निकाला जाएगा, ऐसा नहीं था। न तो हम चारों में से तीन की उससे कोई दोस्ती ही थी, और वो उम्र में भी हम सबसे बड़ा था। और एक महीने से भी कम पुरानी इस जान पहचान में एक हिचकिचाहट भी थी, वो भी ऐसी स्थिति में जहां सब किसी एक संगठन यां आर्गेनाइजेशनल पृष्ठभूमि से नहीं थे। काम में न ही कोई ऊंचा था न ही नीचा, बस सब साथ में एक अनौपचारिक ढाँचे में काम कर रहे थे। फिर भी इस हिचकिचाहट से निकल कर जैसे ही वो घर से वापिस मोर्चे पर लौटा, हमने उससे बात की। उससे फ़ोन कॉल के बारे में बताया गया और पूछा गया कि तुम इस पर क्या कहना चाहते हो। उस ने हमें जो बताया, उसके मुताबिक कोई उस से जानबूझ कर बदला ले रहा था। हमें भरोसा नहीं हो रहा था। उसने कहा ठीक है लिखित शिकायत दिखाओ , जांच करो, मैं अपना डिफेंस रखूंगा। हम चारों ने तय किया जैसे ही शिकायत आएगी, उसे निष्कासित कर दिया जाएगा। तब तक हमारी कोई अथॉरिटी भी नहीं थी जो हम बहुत कुछ कर पाते। शिकायत नहीं आई। जनवरी में एक और जगह से कॉल आई, पर फिर भी कोई लिखित शिकायत नहीं आई। किसी भी कॉलर का कभी यह दावा नहीं रहा कि वो सर्वाइवर हैं और ना ही किसी ने किसी भी शिकायत की नेचर बताई। मेरे पास एक ही बात पहुंची कि वो प्रीडेटर है और लड़कियों का उत्पीड़न करता है। जो कि अपने आप में बहुत बड़ी दिक्कत की बात है मगर किसी तीसरे इंसान ने भी इसको लिख कर नहीं दिया, जो कि कम से कम जरूरत की चीज़ है ऐसे मामलों में (मुझे उमीद है कि thekaurmovement को भी कम से कम एक बेनामी मैसेज यां ईमेल, या सोशल मीडिया पोस्ट की जरूरत तो पड़ी ही होगी, इस पर बोलने के लिए)। तब तक कोई सोशल मीडिया पोस्ट भी नहीं आई थी जिसके मद्देनजर हम कार्रवाई कर सकते।
समय के साथ साथ कलेक्टिव में भी कुछ जिम्मेदारियां तय होने लगी, गुरदीप डिजाइन का काम देखता, जसदीप, मुकेश और मैं संपादकीय और अजय लॉजिस्टिक्स। मुझे आए फोन कॉल के चलते वरुण को कोर कमेटी यां किसी भी फैसला लेने की हैसियत से दूर रखा गया। अलग अलग मोर्चों पर अखबार पहुंचाना उसके जिम्मे था और उसने मांग कर Instagram का जिम्मा लिया, जिस पर कई दफा बहस भी हुई। मगर बहस हर बार इस बात पर आ कर रुक जाती की कोई शिकायत आ तो रही नहीं है, ऐसी स्थिति में कैसे उसे निकालें? एक महिला होने के नाते मुझे पता है कि हम बहुत दफा अपने एब्यूजर को लेकर कश्मकश में रहते हैं, दिमाग बहुत उलझनों में रहता है सच और झूठ को लेकर खासकर जब एब्यूजर हमारा कोई करीबी हो। भरोसा करना मुश्किल होता है कि यह इंसान गलत है। इस बार एक सहकर्मी यां कहें कि एक साथी प्रदर्शनकारी को ले कर भी कई साथियों के मन में ऐसी ही कश्मकश चल रही थी। पर फिर भी वरुण को लेकर मेरी भावना यां विचार उन सब लड़कों से काफी अलग थे जिनको मैंने आंदोलन के दौरान उसकी बेइंतहा इज्जत करते देखा था। मुझे जेंडर के नजरिए से उसकी कुछ कुछ दिक्कतें नज़र आती थी, जो कि आज तक 95% मर्दों में मैंने देखी हैं। वो अपने आप को प्रोग्रेसिव सर्किल का हिस्सा कहता था, इसलिए मुझे ज़्यादा बुरा लगता था। मोर्चे पर मौजूद बहुत सारे नौजवान लड़के जाने-अनजाने हर दिन उसे वैलीडेट भी करते थे। उन में से कईयों ने बाद में सोशल मीडिया पर उसके हक में पोस्टें भी डाली, और महिलाओं द्वारा खुल कर सामने आने पर माफी भी मांग ली और बस, वो अपनी जिम्मेदारी से सुर्खरू हो गए। एक तरह से तो मैं उनके लिए खुश हूं कि उनको मेरी तरह पर्सनली निशाना नहीं बनाया गया क्यूंकि शायद वो नारीवादी होने का दावा नहीं करते और इसीलिए शायद समाज को बराबरी का समाज बनाना उनकी ज़िम्मेदारी में नहीं आता!
फरवरी के आखिरी हफ्ते में जब एक दोस्त का इसी मुद्दे पर कॉल आया, तब तक मैं अपने आप में क्लीयर थी कि जो भी हो मुझे इस मामले में कुछ करना है। मैंने एक हफ्ते तक या कहें कि जब मुझे आगे से जवाब आना बंद नहीं हो गया तब तक उस दोस्त को मैसेज/कॉल किए। मैंने उसको बहुत साफ शब्दों में बोला कि आप हमें सर्वाइवर की पहचान न बताएं, कोई सबूत नहीं चाहिए, केवल 4 लाइन की शिकायत लिख कर भेज दें, वो भी चाहें तो बेनाम। पर कुछ नहीं आया। हम सब लोग आपस में भी लंबी लंबी बहसें किए कि कुछ करना होगा, मगर एक कलेक्टिव में आप बिना शिकायत के क्या करोगे? हम उससे दूरी बनाने की कोशिश करते पर क्योंकि उसके पास ट्रॉली टाइम्स का instagram कंट्रोल था, तो वो लोगों को ये इंप्रेशन देता जैसे वो ही ट्रॉली टाइम्स का करता धर्ता है। हर कदम पर खुद पर भी शंका हो रही थी कि क्या मैं सही कर रही हूं या क्या यह काफी है? मैंने 2-3 महिला एक्टिविस्टों से भी बात की कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए । अब तक उससे एक तरह की दूरी बनानी तो शुरू कर ही दी थी, पर उनका सुझाव था कि लिखित शिकायत के अभाव में औपचारिक क़दम उठाना मशिकल है। कोई पब्लिक डोमेन में भी कह दे तब भी ठीक है, पर तब शायद यह जिम्मेदारी भी कोई लेने को तैयार नहीं था।इसलिए भी अभी की सोशल मीडिया पोस्ट पढ़ कर बुरा लगता है कि जो लोग अब एक के बाद एक स्टेटस लिख रहे हैं, तब उन्होंने ज़िम्मेदारी लेकर चार लाइनें तक भेजने से इनकार कर दिया और याद रहे मैं सर्वाइवर्स की बात नहीं कर रही हूँ। फ़रवरी में जिस दोस्त का कॉल आया मैंने उस दोस्त से पूछा भी कि आप बताएं कि ऐसी स्थिति में हमें क्या करना चाहिए? उन्होंने बोला वरुण को निकाल दें। मैंने पूछा, “बिना शिकायत के किस आधार पर निकालें?” तो उन्होंने कहा कि यही तो बात है कि आपको सर्वाइवर की बात माननी होगी। मैंने कहा कि मैं उनकी बात मानने से इनकार नहीं कर रही, उनकी बात पर पूर्ण विश्वास है। पर कोई चार लाइनें शिकायत की तो लिख दे। उन्होंने कहा कि आपको फॉर्मल ढांचे को बाईपास करना होगा। बस हमने वही नहीं किया- क्यूँकि निष्कासित करना अपने में एक फ़ॉर्मल ढाँचे का हिस्सा है।
कई लोगों ने टैग करके कहा कि शर्म नहीं आती, अपने आप को नारीवादी कहती हो और सेक्शुअल प्रेडेटर का साथ देती हो? साथ नहीं दिया, एक पल के लिए भी नहीं। मगर हां बहुत कुछ कर भी नहीं पाई, जिसके कई कारण रहे। लोगों ने फोन किया पर जिम्मेदारी किसी ने न ली। बल्कि जो कई लोग अब सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर लिख रहें हैं, उनको ये मुझसे पहले का पता था। और जहां तक मेरे नारीवादी होने की बात है, जिस नारीवाद को मैंने आज तक जाना है उसने मुझे चीजों को एक सामाजिक और राजनीतिक बदलाव लाने के लिए खड़े होना और लड़ना सिखाया है। वो मैंने किया है और आगे भी करूंगी, संगठन/कलेक्टिव के अंदर भी और समाज में भी।
मैं समझती हूं कि अपने एब्यूज पर खुल कर समाज में बात करना भी जेंडर जस्टिस की लड़ाई का एक अहम और बहुत ही कठिन हिस्सा है। इसलिए मैं उन सब सर्वाइवर्स को सलाम करती हूं जो हिम्मत करके सामने आईं। बहुत हिम्मत चाहिए अपनी व्यक्तिगत और निजी जिंदगी के हिसंक अनुभवों को खुल कर सबके सामने रखना, उसके बाद कई किस्म की मानसिक प्रताड़ना का सामना करना। पिछले सालों में शुरू हुई #MeToo मूवमेंट ने ऐसा मौका बनाया जहां हजारों ऐसी महिलाएं खुल कर सामने आईं जिनको उससे पहले शायद कभी मौका नहीं मिला ये बताने का कि उनके साथ एब्यूज हुआ है। हमें ये भी समझ में आया कि समाज में ये समस्या कितनी व्यापक है और ये भी कि ऐसे लोगों को कॉल आऊट करना कितना जरूरी है। पर मामला सिर्फ यहां तक रह जाने से कई दिक्कतें हैं। जैसा कि @thekaurmovement ने अपनी एक पोस्ट में लिखा है, कॉल आऊट करने से शायद कई सर्वाइवर्स को एक क्लोजर मिले और जिंदगी में आगे बढ़ने की हिम्मत भी। बेशक। पर नारीवादी होने के नाते जिस गले-सड़े, औरत विरोधी सिस्टम को हम पूर्ण रूप से सुधारने की बात करते हैं, उसको तो हमने उसी हाल पर छोड़ दिया। उसके लिए हमें ढांचे बनाने ही होंगे और उनका ढंग से काम करना यकीनी बनाना होगा।
मुझे नहीं लगता कि मेरा नारीवाद गलत या झूठ है, बल्कि भविष्य को लेकर नारीवादी नजरिया आप में से कईयों से थोड़ा अलग जरूर हो सकता है और उसमें भी मैं अकेली नहीं। सोशल मीडिया पर शोषक को कॉल आऊट करने के किसी के भी हक पर मैं हरगिज़ सवाल नहीं उठा रही पर हमें खुद भी जिम्मेदारी लेनी होगी इस लड़ाई को आगे तक लड़ने की। और हर संगठन/कलेक्टिव को कुछ ढांचा तो बनाना ही पड़ेगा ऐसी दिक्कतों का सामने करने के लिए और जिम्मेदारी लेनी होगी कि वो ढांचे दुरुस्त तरीके से काम करें। अगर हम ढांचों की और उनके ढंग से काम करने की बात नहीं करते तो हमारे समाज में महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा, जो सोशल मीडिया से परे है, उनके पास कोई चारा नहीं बचेगा अपने शोषक के खिलाफ आवाज़ उठाने का। हमें सब के लिए लड़ना है और सबको साथ लेकर चलना है।
इस मुश्किलों भरे माहौल से, सोशल मीडिया की बहसों से हम सब को सीख भी लेनी चाहिए। मैं भी उसी कोशिश में हूँ। इस कॉल आऊट से कई और महिलाओं को भी हिम्मत मिली और वो खुल कर सामने आई और कई मेरे जैसी शायद अभी भी कोशिश कर रही होंगी। मगर सबको अपना समय लेने का पूरा हक है। बल्कि हमारी कलेक्टिव जिम्मेदारी है एक ऐसा माहौल बनाने की, जहाँ महिलाएं खुल कर, बिना डरे बोल पाएं।
पिछले 3-4 महीनों में ट्रॉली टाइम्स ने एक टीम के बदौलत भी बहुत कुछ सीखा। इस सवाल पर अपने ग्रुप यां मीटिंगों में बहस करते समय, इकलौती महिला मैंबर के बतौर, मैंने अपने बाकी साथियों की जेंडर की समझ को बनते हुए, उनको पहले से ज्यादा सेंसटिव होते हुए भी देखा। मैं समझती हूँ कि नारीवाद एक आगे बढ़ते रहने का सफर भी है, जिसमें हम आए दिन कुछ नया सीख भी रहे हैं। हम भी उसी का हिस्सा हैं। ट्रॉली टाइम्स की हमारी कई बहसों के दौरान मुझे ये बोलने वाले मेरे साथी कि तुम ज़्यादा पैनिक कर जाती हो जेंडर के मुद्दों को लेकर, आज मुझे खुद बोले कि तुम बेझिझक अपना तजुर्बा लिखो; जहां हम ने तुम्हें नहीं सुना और हमने गलतियां की, वो भी। जहां तुम्हें हम गलत लगे, तुम हमें भी कॉल आऊट करो। ट्रॉली टाइम्स के बाकी सदस्यों ने यह बात मान ली है कि किसी जगह को जेंडर जस्ट बनाना सिर्फ महिलाओं की ज़िम्मेदारी नहीं बल्कि उनकी भी है। और शायद इसी लिए आज मैं दिमाग में चल रहे अनेकों सवालों और जवाबों में से कुछ आपके सामने लिख भी पाई हूं।