याद आते हैं
मुझे वे दिन
जब धान काटते हुए
थक जाने पर
शर्त लगा लेता था अपने आपसे
कि पूरा खेत काटने पर ही उठूँगा
नहीं तो खो दूँगा
अपनी कोई प्यारी चीज़
मैंने भयवश दम साधकर
बचाई कितनी ही चीज़ें
डर आज भी है
कुछ चीज़ें खो देने का
मन आज भी है
कुछ पा लेने का
दम आज भी है
शर्त खेलने का
कुछ नहीं है तो वे खेत…