भारत का वर्तमान किसान आंदोलन अपने कई ऐतिहासिक पड़ावों को पर करता हुआ आगे बढ़ रहा है। यह आंदोलन अब न सिर्फ किसानों का आंदोलन है बल्कि देश के आम मेहनतकशों का आंदोलन भी बनता जा रहा है। 26 मार्च का ऐतिहासिक भारत बंद इसका प्रमाण है। इस बंद को तमाम ट्रेड यूनियनों, ट्रांसपोर्ट यूनियनों, व्यापारिक संगठनों, छात्र, युवा व महिला संगठनों का भी व्यापक समर्थन था। चुनाव वाले राज्यों को छोड़ देश के तमाम राज्यों में बंद का व्यापक असर दिखा। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, जैसे राज्यों में बंद का पूरा असर दिखा। दिल्ली के बार्डरों पर भी इसका असर दिखा।
गाजीपुर बॉर्डर पर सुबह साढ़े पांच बजे से ही आंदोलनरत किसानों ने एनएच 24 को पूरी तरह जाम कर दिया। टीकरी बॉर्डर में बहादुरगढ़ रेलवे स्टेशन पर किसानों ने सुबह से ही रेल पटरियों पर डेरा डाल दिया। उत्तराखंड, हिमांचल, दिल्ली और एनसीआर में तमाम जन संगठनों ने भारत बंद के समर्थन में रैली निकाली। दक्षिण भारत में कर्नाटक में बंद का असर दिखा सैकड़ों बंद समर्थकों की गिरफ्तारी हुई। तेलंगाना, आंध्र प्रदेश में भी बड़ी संख्या में बंद समर्थक सड़कों पर उतरे। महागठबंधन के आह्वान पर बिहार में भी बंद का दिखा असर, दरभंगा में माले कार्यकर्ताओं ने ट्रेनभी रोकी।
किसानों द्वारा कानूनो की प्रतियां जलाई गई: सयुंक्त किसान मोर्चा द्वारा 28 मार्च को होलिका दहन में तीन कृषि कानूनो की प्रतियां जलाई गई। दिल्ली के बोर्डर्स पर लगे किसानों के धरणस्थलों पर किसानों ने कृषि कानूनों को किसान व जनता विरोधी करार देते हुए होली मनाई। किसानों से इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का चिन्ह मानते हुए कहा कि इन कानूनों को रद्द करना ही पड़ेगा व MSP पर कानून बनाना ही पड़ेगा। आंदोलन को दबाने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा लाए गए कानून का विरोध: गत 18 मार्च को हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद एक ऐसा विधेयक पारित किया गया है जिसका उद्देश्य आंदोलन और आंदोलन करने वालों को दबाना है। ‘हरियाणा लोक व्यवस्था में विघ्न के दौरान संपत्ति क्षति वसूली विधायक 2021’ के शीर्षक से पारित इस बिल में ऐसे खतरनाक प्रावधान हैं जो निश्चित रूप से लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध होंगे। सयुंक्त किसान मोर्चा इस कानून की कड़ी निंदा व विरोध करता है। यह कानून इस किसान आंदोलन को खत्म करने और किसानों की जायज मांगो से भागने के लिए लाया गया है।
इसके तहत किसी भी आंदोलन के दौरान कहीं पर भी किसी भी द्वारा किए गए निजी या सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई आंदोलन करने वालों से की जाएगी। आंदोलन की योजना बनाने, उसको प्रोत्साहित करने वाले या किसी भी रूप में सहयोग करने वालों से नुकसान की वसूली की जा सकेगी। कानून के अनुसार किसी भी अदालत को अपील सुनने का अधिकार नहीं होगा कथित नुकसान की वसूली आंदोलनकारियों की संपत्ति जब्त करके की जा सकेगी। ऐसा कानून उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा भी बनाया जा चुका है और इसका बड़े पैमाने में दुरुपयोग हुआ है। यह एक घोर तानाशाही का कदम है और वर्तमान शांतिपूर्ण किसान आंदोलन के खिलाफ इसका दुरुपयोग किया जाना निश्चित है। हम इसका कड़ा विरोध करते है।
5 अप्रैल को ‘एफसीआई बचाओ’ दिवस मनाएंगे किसान: सरकार द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से MSP और PDS व्यवस्था खत्म करने के कई प्रयास किये जा रहे है। पिछले कई सालों से FCI के बजट में कटौती की जा रही है। हाल ही में FCI ने फसलों की खरीद प्रणाली के नियम भी बदले। सयुंक्त किसान मोर्चा की आम सभा मे यह तय किया गया है कि आने वाली 5 अप्रैल को FCI बचाओ दिवस मनाया जाएगा। इसके तहत देशभर में FCI के दफ्तरों का सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक घेराव किया जाएगा। हम किसानों व आम जनता से अपील करते है कि यह अन्न पैदा करने वालो और अन्न खाने वालों दोनों के भविष्य की बात है इसलिए इस दिन इस विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लें।