नवकिरण नत्त, पटना
बिहार की राजधानी पटना में 18 मार्च 2021 को गेट पब्लिक लाइब्रेरी के मैदान में हजारों की गिनती में राज्य के कोने कोने से किसान मजदूर इक्ट्ठा हुए। उन्होंने दिल्ली की सरहदों पर चल रहे किसान आंदोलन को समर्थन देते हुए कहा कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए किसान व देश विरोधी तीनों कृषि कानून न केवल हमारी खेती को काॅरपोरेटों का गुलाम बना देंगे बल्कि खाद्य सुरक्षा, जनवितरण प्रणाली, पोषाहार सरीखी योजनाओं को भी खत्म कर देंगे। इनकी भारी मार गरीबों–मजदूरों पर भी पड़ेगी। किसान–मजदूरों की इस महापंचायत ने तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने तथा बिहार विधानसभा से इनके खिलाफ प्रस्ताव पास करने की मांग की।
मोदी सरकार के क्रूरतम हमलों व किसान आंदोलन को सत्ता के द्वारा लगातार बदनाम करने की साजिशों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए देशव्यापी किसान आंदोलन ने चैथे महीने में प्रवेश कर लिया है। सरकार नहीं चाहती है कि गैर–खेतिहर नागरिक व किसानों के बीच कोई एकता निर्मित हो। किसान आंदोलन को अलगाव में डालने के इरादे से सरकार तमाम संवैधानिक कायदे–कानूनों का उल्लंघन करके किसानों के साथ–साथ उनके आंदोलन के समर्थन में उतर रहे नागरिक आंदोलनों के कार्यकर्ताओं के भी दमन पर तुली है। महापंचायत ने मोदी सरकार के इस तानाशाही रवैये की कड़ी आलोचना की और किसान आंदोलन सहित न्याय व अधिकार के आंदोलन में जेल में बंद तमाम लोगों की रिहाई की मांग की।
2006 में सत्ता में आते ही नीतीश सरकार ने एपीएमसी एक्ट को खत्म कर बिहार के किसानों से सरकारी मंडियां छीनकर उन्हें बाजार के हवाले कर दिया। यदि सरकारी मंडियों को खत्म कर देने से किसानों का भला होता तो आज सबसे अच्छी स्थिति में बिहार के किसान होते, लेकिन हालत ठीक उल्टी है। बिहार में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान अथवा अन्य फसलों की खरीददारी बेमानी है। यहां के किसान 900-1000 रु. प्रति क्विंटल की दर से धान बिचौलियों व व्यापारियों के हाथों बेचने को मजबूर हैं। किसानी की बुरी हालत के कारण राज्य से गरीबों का पलायन बदस्तूर जारी है। धीरे–धीरे करके व्यापार मंडल, एफसीआई, एसएफसी आदि सभी संस्थाएं निष्क्रिय व कमजोर कर दी गई हैं। इन कानूनों के असर को झेल रहे बिहार के किसान मजदूरों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा देने, कृषि बाजार समितियों को पुनर्जीवित करने तथा एपीएमसी एक्ट की पुनर्बहाली की मांग ज़ोरदार तरीके से उठाई।
महापंचायत ने बिहार में भूख से लगातार होती मौतें पर चिंता व्यक्त की। बिहार के कसबे सुपौल में पिछले दिनों आर्थिक तंगी के कारण एक ही परिवार के 5 लोगों ने सामूहिक आत्महत्या की। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 117 देशों की सूची में 103 वें स्थान पर होने के बावजूद मोदी सरकार द्वारा खाद्य पदार्थों से इथेनाॅल जैसे अखाद्य पदार्थों का निर्माण भूख से जूझती देश की जनता को मार देने की साजिश के अलावा कुछ नहीं है। बिहार सरकार भी खद्य पदार्थों से इथेनाॅल बनाने का फैसला ले चुकी है। और ऊपर से तीनों नए कृषि कानून ला कर, जितनी भी खाद्य सुरक्षा थी उसे खत्म किया जा रहा है। महापंचायत ने बिहार सरकार से ऐसे गरीब विरोधी व भूख के दायरे को बढ़ाने वाले निर्णयों को राज्य में लागू न करने की मांग की।
आखिर में महापंचायत ने संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर 26 मार्च को आयोजित भारत बंद का पुरजोर समर्थन किया और उसे एक ऐतिहासिक बंद में तब्दील कर देने का प्रण लिया। बिहार के लोगों का मानना है कि शहीद–ए–आजम भगत सिंह के पंजाब से उठ खड़ा किसान आंदोलन, स्वामी सहजानंद सरस्वती – रामनरेश राम जैसे किसान नेताओं की सरजमीं बिहार में नया आवेग व विस्तार पा रहा है।