ਲਿਖਤਾਂ

ਸਾਂਝੀਵਾਲਾਂ ਦਾ ਗਣਤੰਤਰ

ਕਿਰਤੀ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਅੰਦੋਲਨ ਵਿਚ ਬੈਠਿਆਂ ਪੰਜ ਮਹੀਨੇ ਹੋ ਗਏ ਹਨ। ਦਿੱਲੀ ਦੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਉਤੇ ਵਸੀਆਂ ਤੰਬੂਆਂ ਦੀਆਂ ਨਗਰੀਆਂ ਨੂੰ ਦੋ ਮਹੀਨੇ ਹੋ ਗਏ ਹਨ। ਸਿੰਘੂ, ਟੀਕਰੀ, ਸ਼ਾਹਜਹਾਂਪੁਰ ਖੇੜਾ, ਗ਼ਾਜ਼ੀਪੁਰ- ਜੋ ਕਿਸੇ ਸਮੇ ਦਿੱਲੀ ਦੀ ਦੇਹਲ਼ੀ ਤੇ ਵਸੇ ਕੁਝ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਸਨ – ਹੁਣ ਲੋਕ ਸੰਘਰਸ਼ ਅਤੇ ਸਾਂਝੀਵਾਲਤਾ ਦੀ ਸ਼ਬਦਾਵਲੀ ਦਾ ਅਹਿਮ ਹਿੱਸਾ ਬਣ ਗਏ ਹਨ। 

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मोरचे में सेवा

रोज़ की तरह आज भी मोरचे में सेवा करते कुछ बुजुर्गों ने पुकार कर बिठा लिया “बेटी दूध पीती जा, दूध नहीं पीना तो गुड तो खा ले। इसी बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया। सरकार के साथ मीटिंग तो गोल रही और आगे की मीटिंग के रास्ते भी बंद हो गए तो मैंने पूछा बाबा आगे क्या होगा।

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भारतीय किसान यूनियन टिकैत

1988 में बोट क्लब, दिल्ली तक में किसान आन्दोलन की धमक के बाद वर्तमान का आन्दोलन ऐसा दूसरा मौका है जब किसानी के मुद्दे पर राजधानी की सीमाओं पर किसानों का चक्काजाम हुआ है।  इस आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने आन्दोलन से एक वर्ष पहले 1987 में भारतीय किसान यूनियन की स्थापना की।

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मध्य प्रदेश में संगठित होते मक्का किसान और स्थानीय युवा

तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का ऐतिहासिक और अब तक का सबसे बड़ा किसान आंदोलन दिल्ली की बॉर्डर समेत देश भर में चल रहा है। किसानों की स्पष्ट मांग है कि नये कृषि कानून रद्द किए जाएं और फिर सभी फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने की गारंटी दी जाए या  इस पर कोई भी कानूनी बाध्यता बनाई जाए।

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अखिल भारतीय किसान सभा

अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना 11 अप्रैल 1936 में स्वामी सहजानंद सरस्वती द्वारा की गई और इसके सचिव एन. जी. रंगा रहे। अपने स्थापना की पहली कांफ्रेंस में जवाहरलाल नेहरु, सुन्दरैया और इ.एम्.एस. नाम्बूदारिपाद किसान सभा का हिस्सा थे।

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विनाशकारी तीन कृषि कानूनों के खिलाफ झारखंड में विरोध

21 दिसम्बर को जमशेदपुर में विनाशकारी तीन कृषि कानूनों के खिलाफ  देश भर में चल रहे किसान आंदोलन के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए किसान आंदोलन एकता मंच जमशेदपुर की ओर से साकची गोलचक्कर जमशेदपुर में विशाल प्रदर्शन किया गया।

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भारतीय नवजागरण का संदर्भ और मौजूदा किसान आंदोलन

हमारे देश की सबसे बड़ी आबादी खेती पर आश्रित है और हमारे इतिहास में किसान आंदोलनों की लंबी विरासत रही है। देश के भीतर किसानों की हालत चाहे जितनी दयनीय हो, कृषि क्षेत्र लूटेरी ताकतों के लिए हमेशा से एक दुधारू पशु की तरह रहा है। जब-जब इन लूटेरी शक्तियों का सत्ता और शासन-व्यवस्था पर पकड़ मजबूत हुई है

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नागरिकता क़ानून और शाहीन बाग आंदोलन: एक साल

2014 में 31% एवं 2019 में 37.36% वोट हासिल करने वाली बीजेपी सरकार भारत के  नागरिकता क़ानून को बदलकर 10 दिसंबर 2019  को, नया नागरिकता (सांसोधन) अधिनियम  लागू किया। 11 दिसंबर 2019 को भारत के राष्ट्रपति ने अधिनियम को हरी झंडी दिखा दी। इस अधिनियम में, 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफ़ग़ानिस्तान से आए

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उड़ीसा से दिल्ली: एक दुस्साहसिक-दुर्गम यात्रा!

दिल्ली की सीमाओं पर करीब दो महीने से जारी और केंद्र की आँख की किरकिरी बने अभूतपूर्व किसान आन्दोलन की ओर देश की नजरें टिकी हुई हैं। आन्दोलन को बदनाम करने के प्रयासों के बीच सत्ता पक्ष के लोग और सरकार समर्थक यह भी पूछ रहे हैं कि सम्बद्ध कृषि कानूनों से सिर्फ पंजाब और हरियाणा के किसानों को कष्ट क्यों है?

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घड़साना आंदोलन: एक भूला हुआ किसान संघर्ष

राजधानी दिल्ली के चारों और जारी किसान आंदोलन भारत में लोकतंत्र के समसामयिक इतिहास के सबसे प्रमुख घटनाओं में से एक है। ये प्रदर्शन न केवल देश में किसान, गॉंव और कृषि अर्थव्यवस्था से जुड़े सवाल हैं अपितु देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के निर्माण और उसे जीवित रखने में देश की ग्रामीण-कृषि आधारित जनसंख्या की प्रमुख भूमिका को भी दिखाते हैं।

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राजनैतिक होना छात्र की ज़िम्मेदारी है

“इस बात का बड़ा भारी शोर सुना जा रहा है कि पढ़ने वाले नौजवान (विद्यार्थी) राजनीतिक या पॉलिटिकल कामों में हिस्सा न लें….” “हम यह मानते हैं कि विद्यार्थियों का मुख्य काम पढ़ाई करना है, लेकिन क्या देश की परिस्थितियों का ज्ञान और उनके सुधार सोचने की योग्यता पैदा करना उस शिक्षा में शामिल नहीं?

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राष्ट्रगीत

राष्ट्रगीत में भला कौन वह

भारत-भाग्य-विधाता है

फटा सुथन्ना पहने जिसका

गुन हरचरना गाता है.

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