भगत सिंह-सुखदेव-राजगुरु और पाश के रास्ते पर युवा

भगत सिंह-सुखदेव-राजगुरु और पाश के रास्ते पर युवा

सिंघु बॉर्डर से एक युवा 

किसी भी आंदोलन को खड़ा करने के साथ साथ आन्दोलन को जीवित रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। दिल्ली की सीमाओं पर भले ही इसे 112 दिन हुए है पर पंजाब में 9 महीने से ज्यादा हो गए है। इस आंदोलन की एक बड़ी ताकत यह है कि युवा पीढ़ी ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है।भगत सिंह ने विद्यार्थियों के नाम लिखे पत्र में साफ साफ लिखा है कि राजनैतिक तौर पर पिछड़ेपन को दूर करना युवा की जिम्मेदारी है। उन्होंने लिखा हैनौजवानों को क्रांति का यह संदेश देश के कोनेकोने में पहुँचाना है, फैक्ट्री कारखानों के क्षेत्रों में, गंदी बस्तियों और गाँवों की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में इस क्रांति की अलख जगानी है, जिससे आजादी आएगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जाएगाभगत सिंह के इन विचारों को सार्थक करते हुए युवाओं ने इस आंदोलन में खुद को बाहरी ताकत नहीं माना और बिल्कुल अंदर रहकर उसे जिंदा रखा है। सरकार के अनेक हमले हुए। सुनियोजित हिंसक हमला, पुलिस द्वारा झूठे केस बनाकर जेल में डालना आदि। पर युवा आज भी इस आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेकर जा रहे है।

23 मार्च को शहीद भगत सिंह, राजगुरु सुखदेव की शहादत दिवस पर सिंघु बॉर्डर पर भारी संख्या में नौजवान इकट्ठे होंगे। जिस युवा को नशों में फसाने के प्रयास किये जा रहे है, जिस युवा को नव उदारवाद के गर्त में धकेला जा रहा है, जिस युवा को खेती किसानी से निकालकर सस्ते मजदूर बनाने के प्रयास किये जा रहे है, वो इंक़लाब का झंडा और हौसला लेकर सिंघु बॉर्डर पहुंच रहा है। 18 मार्च को पैदल यात्रा करता हुआ युवाओं का एक बड़ा जत्था किसानों मजदूरों को एकजुट करता हुआ पंजाब के खटकड़ कलां से शुरू होगा। एक और जत्था 18 मार्च को ही लाल सड़क हांसी, हिसार हरियाणा से शुरू होकर 23 मार्च को टीकरी बार्डर पहुँचेगा। तीसरी यात्रा मथुरा से शुरू होकर पलवल पड़ाव पर पहुंचेगी। संचार में विघ्न के कारण किसान नेताओं और नौजवानों के अंदर एक अंतर आया जो समय के साथ पूरा हो रहा है। नौजवानों ने नौजवान किसान सहयोग टीम बनाकर उन सब जिम्मेदारी को अपनाने का वादा किया है जो आज इस आन्दोलन की ज़रूरत है। जाति और जेंडर की जंजीरे तोड़ती नौजवान पीढ़ी हर एक के लिए स्पेस पैदा कर रही है जो इस आन्दोलन को सफल बना सके। नौजवान मजदूर नेताओ के निरंतर संघर्ष के कारण ही मजदुर किसान एकता ज़िंदाबाद का नारा मजबूती पकड़ रहा है। इस आंदोलन में युवा पुरुषों ने उस ऐतिहासिक अन्याय को स्वीकारने की शुरुआत की है जो वे महिलाओं पर पितृसत्ता के सुख में करते रहे है। काम में बंटवारे से लेकर निर्णय लेने में लैंगिक विभाजन खत्म करने के बीज इस आंदोलन ने गहनता से बीज दिए है। पुरुष इस आंदोलन को उन सब कामों को अपनी जिम्मेदारी समझ रहे है जो ऐतिहासिक रूप से महिलाओं पर थोपे गए है। खाना बनाना, सफाई करना, बर्तन कपड़े धोना आदि काम तो पुरुष कर ही रहे है परंतु इससे से परे जो लैंगिक समझदारी दिखाते है उन सब कामों में भी बिना किसी एहसान फरामोशी के युवा काम कर रहे है। सैनिटरी पैड्स का आसानी से उपलब्ध होना या रात में भी एक आज़ाद माहौल मिलना इस छोटे से समय में कर पाना असंभव था पर युवाओं ने क्रांति के असल मायनों को समझा है। युवाओं के इस नजरिए ने सामाजिक क्रांति खड़ी की है। चूंकि अब कटाई का सीजन रहा है तो ट्रैक्टर ट्राली दोनों आवश्यक रूप से खेतों में चाहिए इसलिए युवाओं ने अपने बुजुर्ग महिलाओं पुरुषों के लिए कच्चे घर बना लिए है। कल ही साहनेवाल के एक समाजसेवी ने 80 कूलर किसानों को गर्मी से लड़ने के लिए दिए। 4 दिन पहले कुछ लोगों ने 800 पंखे मोर्चे को दिए। सिंघु बॉर्डर पर बड़ी संख्या में ठंडे साफ पानी के लिए वाटर कूलर भी लगा दिए गए है। 

23 मार्च सिर्फ भगतसिंह, राजगुरु सुखदेव का शहीदी दिवस है बल्कि इस दिन अवतार सिंह पाश का भी बलिदान दिवस है। भगत सिंह फांसी से ठीक पहले एक क्रांतिकारी किताब पढ़ रहे होते है। अवतार पाश ने कहा है कि हमारे जवानों को उस पेज से अपनी जिंदगी शुरू करने की जरूरत है जिस पेज को भगत सिंह ने मोड़कर छोड़ा था। आज की जवानी भगतसिंह के उस विचार को अपना रही है जिसमे उन्होंने बम पिस्तौल की बजाय विचारों से क्रांति करने की बात कही है। सिंघु बॉर्डर पर बैठे युवा बाजारीकरण के दौर की बनावटी भावनाओं और इस इस आंदोलन की के जज्बे को एक कतार में खड़ा नहीं करते। आज के युवा अब अवतार सिंह पाश के जैसे खेतों की औलाद होने का एहसास करवाएगी। उन्हें व्यक्तिगत लालसा और बाजारीकरण की भाषा नहीं बोलनी। वे करेंगे तो हमेशा उस घटते एमएसपी की बात करेंगे, दलित औरत के साथ होती ज्यादती की बात करेंगे, भूमिगत जल के गिरते स्तर की बात करेंगे, वे समय बताने की उस घड़ी की बात करेंगे जो  कलाई पर बंधी हुई तो चल रही है पर हमारे बुजुर्गों की आंख में सालों से रुकी हुई है। आन्दोलन के युवा इंटरनेट परबाजरे दा सिट्टापर कोई हवाई वीडियो से बनाने की बजायबाजरे दे एमएसपीकी डिबेट कर रहे है। वें दिल्ली की सीमाओं पर मर रहे किसानों की लाशों के चेहरे देखने को अब किस्मत के फल नहीं बोलेंगे, वे अब लड़ेंगे कि खेती सेक्टर में आत्महत्या और पेस्टिसाइड से हो रही मौत प्राकृतिक मौत नहीं है, वे राज्य द्वारा किये जा रहे राजनैतिक कत्ल है।

आज जब 23 मार्च को हज़ारो की संख्या में महिला पुरुष नौजवान दिल्ली की सरहदों पर इकट्ठे होंगे तो केंद्र की हुकूमत इस बात से बौखलायेगी कि 21वीं सदी के भगत सिंह सरकार से टक्कर ले रहे है। बिना माफी मांगे अपने हको के लिए ये नौजवान विचारों और अपनी मानसिक बुद्धिमत्ता के आधार पर सरकार से लड़ने रहे है।

pa_INPanjabi

Discover more from Trolley Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading