ऋषभ, आप दिल्ली यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी हैं, सबसे पहले शिक्षा के बारे में बताएं?
आज कल मेरी क्लास ऑनलाइन लगती है जो मैं यहाँ से ही लगाता हूँ और फिर मंच पर चला जाता हूँ। यहाँ पर अच्छे अच्छे बुलारे और खेती के साथ जुड़े वैज्ञानिक भी आते हैं, उन से भी बहुत कुछ सीखने मिलता है। लीडर भी अपने विचार रखते हैं। मैं सबको सुनता हूँ और खुद भी बोलने की कोशिश करता हूँ, जो मैं एक छात्र के तौर पर अपने सुझाव दे सकूँ। जो मेरे से बोला जाता है, वो मैं बोलता हूँ।
वैसे पढ़ाई तो सरकार ने एक तरह से खत्म ही कर दी है। इस सरकार ने लॉकडाउन को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया है पढ़ाई को खत्म करने के लिए। अब ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है। पेपर भी नहीं होते और बच्चों का शिक्षकों के साथ कोई तालमेल ही नहीं रहा। हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसी हो गई है कि विद्यार्थियों को न इतिहास पता है और न ही राजनीति पता है फिर वह करेंगे क्या? रोज़गार कोई मिल नहीं रहा।
किसान आंदोलन में आपने क्या देखा यां सीखा?
यहाँ मैंने सबसे पहले संस्कृति को देखा है, हमारे इतिहास को जाना है। मैंने यहाँ महसूस किया कि कैसे भगत सिंह का रक्त आज भी हमारी रगों में दौड़ रहा है। एक क्रांति का एहसास होता है यहाँ, जो बहुत अच्छा एहसास है। जब हम घरों के अंदर रहते हैं तो बाहर का कुछ पता नहीं चलता। जो टीवी दिखाता है उस पर हम विशवास कर लेते हैं, जैसे कि हिन्दू सिख यां मुसलमानों के बीच भेदभाव हैं। पर यहाँ आकर पता चला कि सब एक दूसरे के साथ कितना प्यार से रहते हैं। टीवी के अंदर जो औरतों के विचार हैं वह उनके अंदर ही सिमट के रह जाते हैं। मगर यहाँ पर महिलायें भी नारे लगाती हुई देखी जाती हैं और यह देखना एक अच्छा एहसास है। लगता है कि इस देश में अभी भी उम्मीद बची है। मैं जो भी टीवी पर देखता था वो धर्म के नाम पर एक दूसरे से भेड़ थी, मैंने यहाँ आकर महसूस किया कि ध्रातल पर स्थिति अलग है, वह सब हवाई मुद्दे हैं जो कुछ राजनीतिक दलों द्वारा उछालते जाते हैं लोगों को अलग करने के लिए। ये सरकार लोगों पर डिवाइड एंड रूल का फार्मूला लगा रही है, जैसे अंग्रेजों ने किया था। और ये वह लोगों को असल मुद्दों से भड़काने के लिए कर रहे हैं। सरकार मीडिया, अखबारों और अपने आईटी सैल के ज़रिये लोगों को भड़का रही है।
आपके मुताबिक यहाँ पर होने से आपकी राजनीतिक समझ में क्या बदलाव आया है?
राजनीति के बारे में मैं ज्यादा कुझ नहीं जानता था। राजनीतिक शास्त्र का छात्र होने के चलते जो किताबों में बताया गया बस वही पड़ा था। यहाँ पर आकर पहली बार पार्टी यां किसी विचारधारा का प्रैक्टिकल रूप देखा। समाजवाद क्या है?, कैसे क्रोनी कैपिटलिज्म (याराना पूँजीवाद) पूरी तरह से हावी होता जा रहा है? और कैसे आज भगत सिंह के दिखाये रस्ते पर चल के समाजवाद लाने की जरूरत है? क्यूँकि आज उद्योगपति और पूँजीपति धीरे-धीरे हमारी जमीनों और जन-जंगल पर कब्ज़ा करने में लगे हैं। आप देख रहे होंगे कि जो गाँव में उपले बनते हैं वो भी आज अमेज़ॉन (Amazon) पर बिकने लगे हैं, जिसका दाम भी बहुत ज्यादा है। आप बाजरे का दाम देखिए। जो किसान को ऍम.अस.पी मिलती है वो दो-डाई हज़ार रुपए क्विंटल के करीब मिलती है और जब वही बाजरा बड़े-बड़े मॉल के अंदर पैक होकर आता है तो चार पाँज हज़ार रुपए क्विंटल के भाव बिकता है। अभी तो यह कानून लागू नही हुए हैं, तो सोचिए कि लागू होने के बाद क्या होगा। अब तो पानी भी बोतलों में बिकने लगा है, यह एक बहुत बड़ा परिवर्तन है हमारे समाज में।
आपने आंदोलन शुरू होने के बाद अपने आसपास के माहौल में किस किस्म का बदलाव देखा है?
आसपास के गांव का माहौल तो बहुत अच्छा है, गांव के लोग पूरी मदद करते हैं आंदोलन की। मैं ब्राह्मण परिवार से संबंध रखता हूँ। मेरा परिवार इन बिलों को नहीं समझता क्यूँकि उनको लगता है कि उनका कोई लेना देना नहीं है इनके साथ। वो जो आरएसएस-बीजेपी की हिंदुत्व की विचारधारा है उसको समर्थन करते हैं। इस लिए जो भी कोई सरकार के विरुद्ध जाता है, प्रोटेस्ट करता है, वो चाहे किसी से भी सम्बंधित हो, वो उसे बुरा समझते हैं। मेरे परिवार का कोई सहयोग नहीं है इस आंदोलन में। मैं मानता हूँ कि मुझे तो पढ़ाई ने बचाया है, मैंने समाज को देखा है यहाँ पर आकर। शायद मैं भी न आता, सारा दिन उस टीवी को देखता रहता और उन जैसा ही बन जाता। आज के समय में टीवी लोगों को पूरी तरह डाइवर्ट करने में लगा है। लोग बाहर का समाज नहीं देखना चाहते। जब लॉकडॉन लगा उस समय ज्यादातर लोगों ने बाहर नहीं देखा कि लोग सड़कों पर भटक रहे हैं, भूख से मर रहे हैं क्योंकि टीवी ने उन्हें ये सब दिखाया ही नहीं। टीवी ने सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम दिखाया। लोग वहीँ तक सीमित हैं। यह सारा कुछ सोचा समझा है। मेरी दादी के साथ बात होती है, पर इन मुद्दों पर नहीं। वो कहते हैं पढ़ाई करो और अपना कमाओ। सब से बड़ी चीज, इस आंदोलन में रह कर मेरे अंदर राजनीतिक जागरूकता और एकता आई है। जब मैं यहाँ पर आया था मैंने कुछ सोचा नहीं था। मैं पार्ट टाईम काम करके अपना खुद का खर्चा चलाता था। सिविल सर्वेंट बनने का सपना था मेरा। पर यहाँ आकर लगता है कि सिविल सर्वेंट, आई पी एस सभ चुप हैं ऐसे मुद्दों पर। तो अगर सरकार की ही गुलामी करनी है तो पढ़ाई करके उस फील्ड में क्यों जाएँ। पढ़ाई का इस्तेमाल गुलामी खत्म करने के लिए भी तो किया जा सकता है।