आज पूरा देश कोरोना महामारी की दूसरे लहर को झेल रहा है। आज सोशल मीडिया पर हर दूसरा पोस्ट किसी के लिए मदद की गुहार के तौर पर दिखाई दे रहा है। अपने क़रीबी को ऑक्सीजन की कमी, वेंटिलेटर की कमी, बेड की कमी, दवाईयों की कमी से लोग मरते देख रहे हैं और उनको बचा पाने में अक्षम हैं। आज भारत की समूची स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल चुकी है। कोरोना संक्रमित मरीज का दर बढ़ने के साथ-साथ उनके मृत्यु का दर भी बढ़ रहा है। हमने देखा की कैसे सूरत के एक इलेक्ट्रिक शवदाह में इतनी लाशे जली की वहां की भट्ठी हीं पिघल गयी। वही हाल आज दिल्ली, मुंबई, लखनऊ और देश के तमाम हिस्सों का है। लेकिन सरकार आँखों पर पट्टी चढ़ा कर धृतराष्ट्र बन गयी है। जब लाशों से हर शहर पटा हुआ है तब इस वक़्त में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह बंगाल चुनाव में रैलियों पर रैलियां कर रहें हैं।
जब हमने कोरोना के पहली लहर को देखा था, हमने उस वक़्त भी स्वास्थ्य व्यवस्था को देखा, जिसमें कोरोना संक्रमण से लड़ने की सक्षमता न के बराबर थी! जब-जब जनता ने स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल किया तब-तब हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जनता को एक काम थमा दिया, जिसमें सबसे पहले थाली और ताली बजाने के लिए कहा गया, फिर मोमबत्ती जलाने को कहा गया, पर स्वास्थ्य सुविधा को बेहतर नहीं किया गया। जब पिछले साल कोरोना महामारी में फ्रंटलाइन वर्कर्स जिनको कोरोना वारियर्स भी कहा गया जिसमें डॉक्टर्स, नर्सेज़, वार्ड बॉयज, सफाई कर्मचारी, आशा कर्मचारी इत्यादि शामिल थे, जो अपनी जान की परवाह न करते हुए कोरोना में हमारी मदद कर रहे थें। सरकार ने जहाँ आसमान से पुष्प वर्षा करवाई वहीँ इनके लिए 50 लाख का जीवन बीमा भी शुरू करवाया। पर आज जब फिर से महामारी अपने चरम पर है और फ्रंटलाइन वर्कर्स उसी तरह से अपने जीवन को दांव पर लगाकर इस ख़राब सरकारी व्यवस्था में भी कोरोना में हमारी मदद कर रहे हैं तब सरकार ने उनको मिलने वाला जीवन बीमा रद्द कर दिया। अपनी इस नीति से सरकार ने बेशर्मी की सभी हदो को लाँघ दिया।
इसके साथ हम देखें,आज इस महामारी में पीड़ितों का एक बड़ा वर्ग छात्रों का है। जब पिछले साल भी कोरोना महामारी पुरे देश में फैली थी तब हमने देखा की कैसे छात्रों को ऑनलाइन के जंजाल में धकेल दिया गया, जहाँ छात्रों के पास इंटरनेट और डिजिटल डिवाइस के ना होने से पढाई से वंचित होना पड़ा और यूनिवर्सिटी ड्राप आउट करने वाले छात्रों की संख्यां में भारी इजाफा हुआ। यही स्थिति अभी तक बनी हुई है, जिसमें आज छात्र कोरोना के साथ साथ मानसिक तनाव से भी ग्रस्त है। सरकार इस पर भी अपनी चुप्पी लिए चुनाव में व्यस्त है। आज जब इस बात की ज़रूरत है की छात्रों को प्राथमिकता में रखकर मुफ्त वैक्सीन दिया जाए और जल्द से जल्द उनको क्लास रूम के अंदर पढ़ाया जाये। पर हर मुद्दे पर फेल सरकार यहां भी फेल साबित हुई है।
मजदूरों ने जहाँ पैदल चलकर और सरकार की बदइंतिज़ामी में अपनी जाने गँवाई थी सरकार ने उससे भी कुछ नहीं सीखा। आज जब दिल्ली जैसे शहरों में कर्फ्यू लगा है तब दिहाड़ी मजदूर फिर से राशन और रोटी के लिए मोहताज हो रहे हैं। अस्पताल में इनके लिए न बेड मिल पा रहा है न ही किसी तरह का उपचार हो रहा है। आज चाहे वो छात्र हो या मजदूर या इस देश का मध्यम वर्ग ऐसा लग रहा है कि वो अपने बस दिन गिन रहे हैं। आज अस्पतालों में बेडों की भारी कमी है, आज ऑक्सीजन सिलिंडर मरीजों को मिल नहीं पा रहें हैं, दवाइयां मुहैया नहीं हो पा रही है उस स्थिति में इस देश की जनता सरकार से भला क्या उम्मीद रखे। जिस सरकार से उम्मीद की थी उसके आला के लिए चुनाव कितना महत्वपूर्ण बन गया है?
इस मुश्किल वक़्त में लोग अपने करीबियों को बचाने में जी-जान एक किये हुए हैं। व्हाट्सप्प, फेसबुक और तमाम सोशल मीडिया में जहाँ एक तरफ दिल दहलाने वाली खबरें आ रही है जिसमें किसी की माँ, किसी के पिता या किसी के परिवार के सदस्य की मृत्यु की खबर हैं। वहीं दूसरी तरफ उसका इस्तेमाल लोग जान बचाने के लिए भी कर रहे है। सोशल मीडिया के द्वारा लोग एक-दूसरे की ज़रूरतों को शेयर कर रहें हैं जिससे उनको मदद मिल रही हैं। जनता इर्तज़ा नीशत के शेर से सरकार को रुबरु करा रही हैं,
“कुर्सी हैं तुम्हारा जनाजा तो नहीं,
कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते।”