मिट्टी सत्याग्रह यात्रा जो 12 मार्च को भारत के विभिन्न राज्यों से शुरू हुई और किसानों के समर्थन में और तीन किसान विरोधी कानूनों को निरस्त करने की मांग के साथ 5 अप्रैल को एक टुकड़ी सुबह 4-5 बजे शाहजहाँपुर-खेड़ा बॉर्डर पर पहुँची। यह यात्रा अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के संयोजक डॉ सुनीलम एवं नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटेकर के नेतृत्व में शाहजहाँपुर-खेड़ा बॉर्डर पहुँची। बॉर्डर पर यात्रा का स्वागत किया गया जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा, शाहजहांपुर-खेड़ा बोर्डर के साथी उपस्थित रहे।
मेधा पाटकर, प्रफुल्ल सामंतर, डॉ सुनीलम, फ़िरोज़ मीठीबोरवाला, लता प्रतिभा, मधुकर प्रसाद बागवे, पूनम कनोजिया, आमिर काज़ी, विमल भनोट, निश्चय म्हात्रे, तुषार भोतमांगे, मंगल निकम, बछुराम भाई, श्यामा जीजी, भारत भाई, मयाराम भाई, गोरी जीज, राजाराम भाई, पेमा भिलाला, निर्मला जीज, राजराम भाई, किशोर भाई, छोटू, राजा मंडलो, हरिओम जीजी, सजन जीजी, केसर सोमरे, नवीन मिश्रा, रामशूसील विश्कर्माट, रमेश यादव, राजेश यादव, सत्यनारायण पांचाल, सर्वेश कुमार, अतुल भाई, अली भाई, कृष्णा भाई, गुड्डी आदि यात्रा के साथी भारत के हजारों गांवों और ऐतिहासिक स्थानों से मिट्टी लेकर शाहजहांपुर-खेड़ा बोर्डर पर पहुंचे। इस मिट्टी से किसान-आंदोलन में शहीद हुए 350 से ज्यादा किसान-योद्धाओं की स्मृति में स्मारक बनाया गया है। इस स्मारक को नेशनल इंस्टीटूट ऑफ डिजाइन अहमदाबाद के लोगों द्वारा डिजाइन किया गया है।
5 अप्रैल को जहां एक तरफ़ अब तक किसान अंदोलन में शहीद हुए किसानों को श्रद्धांजलि देते हुए, मिट्टी सत्याग्रह यात्रा का स्वागत किया गया वहीं सभा को संबोधित करते हुए किसान-नेताओं ने कहा कि ये शहीदियां अजाया नहीं जायेंगी, हम जीत हासिल करके ही वापिस घर लौटेंगे। एक तरफ तो किसानों की फसल कट रही है और दूसरी तरफ सरकार किसानों की जेबें कटवा रही है। MSP के नाम पर किसानों से लूट बदस्तूर जारी है। प्रधानमंत्री कहते हैं कि MSP थी, है और रहेगी पर सरकार की खुद की वेबसाइट एगमार्कनेट के द्वारा जारी किए गये आंकड़े बताते हैं कि किसान को MSP नहीं मिल पा रही है यानी MSP कागज पर थी, है और रहेगी। सरकार जिसको खुद न्यूनतम कहती है उससे भी कम कीमत किसानों को मिल रही है और यही MSP के नाम पर किसानों से लूट हो रही है। इसलिए किसानो की प्रमुख मांग है कि तीनों काले कानूनों की वापसी के साथ MSP पर गारंटी का कानून भी बनना चाहिए और जब तक ये मांगे पूरी नहीं होती तब तक किसान इस फांसीवादी, पूंजीपतियों व कॉर्पोरेट की दलाल बीजेपी-आरएसएस की सरकार के खिलाफ व उनकी नीतियों के खिलाफ दिल्ली के आस पास तमाम बॉर्डर्स पर डटे रहेंगे।