भारत में जो खेती कानून लागू किए गए है, वो आस्ट्रेलिया में बहुत अरसे से लागू है। वे शायद अच्छे ही होंगे, नहीं? क्यूँकि हम आस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश की बात कर रहे है। ना सिर्फ़ आस्ट्रेलिया, बल्कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका के लगभग सभी देशों में ये कानून लागू है जहां किसान अपने उत्पादों को सीधे कोर्पोरेट्स को बेचता है।
बढ़िया! लेकिन यहां पर फँस जाते है। मैं जैसे चने के उदाहरण से समझाता हूँ। आस्ट्रेलिया में किसान चना $500-700 प्रति टन के हिसाब से कंपनियों को सीधा बेचते है। कोई बिचौलिया नहीं। ठीक ही है! लेकिन जब मैं चना खरीदने सुपरमार्केट जाता हूँ तो मैं $3-4 प्रति किलो का देता हूँ। सीधा गणित है, यह लगभग $3000-4000 प्रति टन तक में बिकता है। जैसा कि भारत सरकार दावा कर रही है कि इससे बिचौलिये खत्म हो जाएंगे तो खरीद और बेचने के मूल्य में इतना अंतर कैसे? जाहिर है कि यहाँ भी बिचौलिये है। और उन पर किसी तरह का नियंत्रण नहीं है।
पैकिंग, परिवहन, वितरण के नाम पर कम्पनियाँ मनचाहे कमीशन वसूल रही है। चूँकि इन पर किसी तरह का नियमन नहीं है इसलिए गरीबों के लिए महंगाई दर ऊँची बनी रहती है। भारत जैसे देश में, जहां देश का बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे रहता है, इस तरह के क़ानून देश को भुखमरी की तरह तेजी से धकेलेंगे।
1000 एकड़ से कम जमीन वाले किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए शहर से बाहर किसी पेड़ की छाँव या टिनशेड के तले बैठकर दिनों-हफ्तों तक इंतजार करना पड़ता है क्योंकि कंपनियों से उन्हें उचित दाम नहीं मिलता है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में किसान देश की जनसंख्या का 1-10 % हिस्सा है जिसके पास औसतन 3000-5000 एकड़ जमीन है और कुछेक के पास तो 1,20,000+ एकड़ जमीन है (अविश्वसनीय लेकिन सच)।
जबकि भारत में किसान देश की जनसंख्या का 50-55% हिस्सा है और औसतन 3-5 एकड़ जमीन के मालिक है और कुछेक के पास 100 एकड़ जमीन होगी!
इन आंकड़ों को देखकर सोचिए? क्या ये तीन खेती क़ानून भारत के किसानों के लिए अच्छे साबित होंगे?