20 सितंबर 2020 को केंद्र सरकार ने तीन खेती बिल राज्यसभा में पास करवा लिए। राज्य सभा का क़ायदा यह है कि अगर एक भी सांसद बैलेट की माँग करता है तो वोट कराना ज़रूरी होता है। विपक्षी सांसदों की माँग को स्पीकर ने नहीं माना। उस समय सदन में सरकार बहुमत में नहीं थी। इस अलोकतांत्रिक रवैये से देश भर के किसानों में भारी नाराज़गी हुई। पंजाब में इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू हो गया। और 26 नवंबर 2020 लाखों किसान दिल्ली के लिए निकले जिन्हें दिल्ली की सीमा पर रोक लिया गया। और तब से सिंघु, टीकरी व ग़ाज़ीपुर बॉर्डरों पर कई किलोमीटर लंबे धरने चल रहे हैं।
केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए तीन काले कृषि कानूनों से मात्र किसान ही प्रभावित नहीं होंगे बल्कि भूमिहीन मजदूर,खेत मजदूर, छोटा व्यापारी, व्यवसायी, उपभोगता सहित समाज का हर वर्ग प्रभावित होने जा रहा है इसलिए समाज के प्रत्येक वर्ग को किसान आंदोलन के साथ आना चाहिए। काले कानूनों से जो मजदूर खेतों में काम करते हैं वह भी प्रभावित होंगे ।खेत मज़दूर ज़्यादातर दलित और पिछड़ा वर्ग से आते हैं। हमारे देश में सामाजिक व्यवस्था के तहत किसान वर्ग जहां खेती करके अपना जीवन यापन करता है वही मजदूर वर्ग भी विभिन्न प्रकार से किसानों पर निर्भर है। जैसे हमारे बहुत से छोटे किसान एक या दो बीघे में सब्जी आदि की खेती कर अपने कस्बे के पास की ही सब्जी मंडी में बेचता है ।यहां पर उसको वाजिब दाम मिलता है और साथ ही जो लोग उस सब्जी को मंडी से खरीदते हैं व गांव के हाट बाजार में ठेला फड़ आदि लगाकर उस सब्जी को बेचते हैं जिससे दोनों को लाभ होता है। साथ ही उपभोक्ताओं को सब्जी भी उचित दर पर मिल जाती है। यदि यह मंडियां बंद होती हैं तो ना तो सब्जी बेची जा सकेगी और ना ही कोई वहां से खरीद कर हाट बाजार में बेच सकेगा। यह सब्जियां सीधी बड़ी-बड़ी कंपनियों की गोदामों में जाएंगी और कंपनियों द्वारा संचालित मॉल या दूकानों पर ऊँचे दामों पर बेची जाएँगी। ऐसा होने से छोटे किसान व सब्जी के कारोबारी बुरी तरह से प्रभावित हो जाएंगे और उनका रोजगार खत्म हो जाएगा।
नंबर दो हमारी खेती की व्यवस्था में बहुत से परिवार अधिया चौथाई आदि बटाई के हिसाब से किसानों से भूमि लेकर खेती करते हैं और उस खेती में अपना पूरा परिवार लगाते हैं। जिससे उनको पास के ही खेत में काम मिलता है और साल भर का अनाज भी मिल जाता है। इसस उनका रोजगार चलता है। यदि किसानों की जमीनें बड़ी-बड़ी कंपनियों ने ले ली तो अधिया बटाई पर काम करने वाला मजदूर वर्ग भी प्रभावित हो जाएगा और उसकी रोजी-रोटी भी मुश्किल में पड़ जाएगी।
नंबर 3 हमारे देश में बहुत से भूमिहीन परिवार अपनी आजीविका चलाने के लिए पशु पालते हैं। उन पशुओं के लिए चारा आदि किसानों के खेत से ले आते हैं और पशु पालकर गांव में दूध बेचकर अपना रोजगार चलाते हैं। यदि किसानों के खेत बड़ी कंपनियों के हवाले हो गए तो इन भूमिहीन मजदूरों को खेतों से घास लाना भी संभव नहीं हो पाएगा और पशुपालन भी असंभव होगा इससे यह भूमिहीन वर्ग भी प्रभावित हो जाएगा।
नंबर 4 आज किसान जब खेती करता है तो खेती में पडने वाली दवाइयां या अन्य खेती में प्रयोग होने वाले छोटे उपकरण, छोटे व्यापारियों की छोटी छोटी दुकानों खरीदता है। जिससे छोटे दुकानदारों का भी कारोबार चलता है। यदि बड़ी कंपनियां जमीनों को लेकर बड़े फार्म बनाएंगी तो खेती में प्रयोग होने वाली बीज,दवाइयां व अन्य उपकरण भी बड़ी कंपनियों से ही सीधे खरीदेंगे, जिससे छोटे दुकानदारों और व्यापारियों का कारोबार भी चौपट हो जाएगा।
नंबर5 देश का एक बड़ा ग़रीब तबक़ा राशन की दुकान से सरकारी योजना में राशन प्राप्त करता है। यह राशन एफसीआई FCI के गोदामों से मिलता है। जिसे सरकार किसानों से अनाज खरीद कर FCI में रखती है। यदि यह गोदाम भी बड़ी कंपनियों के पास चले गए और सरकार ने सरकारी खरीद बंद कर दी तो राशन की दुकानों पर राशन मिलना भी संभव नहीं होगा। जिससे हमारे निर्धन व गरीब वर्ग का उपभोक्ता वर्ग बहुत प्रभावित होगा जो बेहद चिंता का विषय है क्योंकि कुपोषण में हमारा देश आज भी ऊपरी पायदान पर है।
पेट्रोल,डीजल,रसोई गैस, अनाज, दाल, खाने का तेल सहित सभी वस्तुओं के दामों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है जबकि स्वयं सहायता समूह को दिए गए कर्ज, छोटे किसानों के कर्ज माफ ना करके बड़े-बड़े उद्योगपतियों के कर्ज माफ किए जा रहे हैं। पूरे देश में भाजपा की सरकार तानाशाही कर रही है लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई जा रही है।
यह किसान आंदोलन समाज के प्रत्येक वर्ग का है और हर उस उपभोक्ता का है जो किसानी के उपजाए हुए अन्न या वस्तुओं का उपयोग करता है। इसलिए समाज के प्रत्येक वर्ग को इस आंदोलन के साथ आना चाहिए। भारत सरकार द्वारा जो अदानी अंबानी की आधुनिक ईस्ट इंडिया कंपनी तैयार की जा रही है उनके चुंगल से बचना चाहिए और अपनी स्वतंत्रता व स्वाभिमान को सुरक्षित रखना चाहिए।