स्पेन के किसानों के लिए आया बदलाव

स्पेन के किसानों के लिए आया बदलाव

देवेंद्र शर्मा

किसानों के कई महीनों के विरोधप्रदर्शनों के बाद स्पेन में एक ऐसा क़ानून आया है जिस के तहत उत्पादन पर आने वाली लागत से कम दाम पर भोजन की बिक्री की मनाही होगी। शॉन डाइवर आयरलैण्ड में भेड़ों का एक फ़ार्म सम्भालते हैं। फ़ार्म पर 240 भेड़ हैं। पिछले महीने भेड़ों की 55 किलो ऊन की बिक्री पर उन्हें कुल 67 यूरो मिले। उन्हें यह बहुत बुरा और ग़लत लगा क्योंकि इन 240 भेड़ों के बाल कतरने का ख़र्च 560 यूरो आता है। शॉन का मायूसी और नाराज़गी भरा ट्वीट पढ़ा तो मुझे महाराष्ट्र के ज़िला अहमदनगर के एक किसान की याद हो आई। दिसम्बर 2018 में उस ने 2,657 किलो प्याज़ 1 रुपया प्रति किलो के हिसाब से बेचा था। यातायात के ख़र्च, मज़दूरी की क़ीमत और मार्किटफ़ीस को हिसाबकिताब में लेने के बाद श्रेयस अभले के पास घर ले जाने को सिर्फ़ 6 रुपये बचे थे। श्रेयस ने किसान के साथ हो रहे बाज़ार के ज़ुल्म के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज करवाते हुए मुख्यमंत्री के नाम 6 रुपये का मनीऑर्डर भिजवाया था।

ये दो उदाहरण अपवाद नहीं हैं। अपने लिए दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए दुनिया भर के किसान संघर्ष कर रहे हैं। वे नाजायज़ दामों और बाज़ार की तिकड़मों का शिकार हैं। खाद्यपदार्थों की सप्लाईचेन के हाथों उन्हें बेरहम शोषण का सामना करना पड़ता है। अमेरिका की राष्ट्रीय किसान यूनियन मानती है किपिछले कई दशकों में नीतिनिर्माताओं ने अमेरिका के किसानों को दामों के लिए मिलने वाले सहारे को कमज़ोर किया है। नतीजे के तौर पर ज़रूरत से ज़्यादा उत्पादन और कम दामों का कभी ख़त्म होने वाला चक्र चला है जिस से लाखों छोटे और मध्यम आकार के खेत ख़त्म होने की तरफ़ धकेल दिए गए हैं।

यही वजह है कि मीडिया की ख़बरों के मुताबिक़ ऑर्गनाइज़ेशन फ़ॉर इकनॉमिक कोऑपरेशन एण्ड डिवेलप्मेंट का कहना है कि 20 बड़े खिलाड़ियों ने किसानों को 2015 और 2017 के बीच आमदनी के रूप में 475 बिलियन डॉलर की सीधी मदद दी है ताकि किसानों को क़ीमतों में कमी की भरपाई  हो जाए यही तो सब जगह के किसानों की इच्छा रही है। इन प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों के लिए बहुत ही सख़्त दण्ड क़ानूनी तौर पर लिखे गए हैं। उत्पादन की लागत से कम दाम पर बिक्री करने वाले के लिए 3,000 से 1,00,000 यूरो के बीच के दण्ड हैं जो कुछ मामलों में 1 मिलियन यूरो तक भी जा सकते हैं। इस से पहले फ़्रांस ने 75,000 यूरो जुर्माने का ऐलान किया था।   यह तो तय है कि इस क़दम की गूँज पूरी दुनिया महसूस करेगी। फ़्रांस और जर्मनी खाद्यपदार्थों की सप्लाईचेन से जुड़ी प्रक्रियाओं के दोषों की रोकथाम के लिए पहले ही क़ानून ला चुके हैं। लेकिन ये क़ानून पूरी तरह से कारगर नहीं थे। फ़्रांस में 2018 में एक अध्यादेश के ज़रिए मौजूदा क़ानून में संशोधन किया गया जिस के तहत असल दाम से कम दाम पर दोबारा बिक्री पर रोक लगी थीइस में आहार की फुटकर क़ीमतों में 10 प्रतिशत बढ़ोतरी की इजाज़त थी। लेकिन इस से किसानों की आमदनी में आशा के मुताबिक़ बढ़ोतरी नहीं हुई। 

पूरी दुनिया के नेता वह क़दम उठाने से बचते रहे हैं जिस के तहत किसान को ऐसे दाम की गारण्टी मिले जिस में उस के उत्पादन का पूरा ख़र्च निकल आए। लेकिन स्पेन ने  नेतृत्वकारी क़दम उठाया है। जिस बात के लिए किसान हमेशा से संघर्ष करते रहे हैं, स्पेन ने उसे वैधता प्रदान कर दी है।

अब तक की कोशिशों के तहत किसानों की क़ीमत पर उपभोक्ता (और उद्योग) को बचाने की क़वायद होती रही हैकिसान एक तरह से उपभोक्ताओं और कॉरपोरेट क्षेत्र का ख़र्च उठाते रहे हैं, उन्हेंसब्सिडाइज़करते रहे हैं। इस स्थिति को बदलना होगा। स्पेन के नए क़ानून के भारत के लिए भी बड़े निहितार्थ हैं। भारत की केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए नए क़ानूनों को रद्द करवाने के लिए तो किसान संघर्ष कर ही रहे हैं। इस के साथसाथ वे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी) को क़ानूनी अधिकार बनाए जाने की और यह सुनिश्चित किए जाने की मांग भी कर रहे हैं कि इस से कम दामों पर व्यापार हो। प्रभावी तौर पर इस का अर्थ यह है कि ऐसी न्यूनतम क़ीमत सुनिश्चित की जाए जिस से उत्पादन की लागत तो पूरी हो ही, बल्कि एम.एस.पी. के तहत आने वाली सभी 23 फ़सलों के लिए लाभ भी मिले। स्पेन की ही तरह यहाँ भी एम.एस.पी. को क़ानूनी जामा पहनाने का मतलब यह नहीं है कि राज्य को सम्पूर्ण उत्पादन या पैदावार की ख़रीद करनी पड़ेगी। इस से तो बस यह होगा कि किसानों के लिए दामपट्टी और ऊपर उठ जाएगी और प्राइवेट व्यापार के लिए यह सुनिश्चित करना लाज़मी हो जाएगा कि किसानों को उचित दाम मिलें। स्पेन की ही तरह, क़ानून के तहत एम.एस.पी. से कम दामों पर व्यापार करने की छूट हो तो खेती के संकट से निपटने में बहुत मदद मिल सकती है और खेती को आर्थिक दृष्टि से फ़ायदेमंद उद्यम बनाया जा सकता है।

en_GBEnglish

Discover more from Trolley Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading