सांस्कृतिक जन जागरण का केंद्र बनता शाहजहांपुर खेड़ा बॉर्डर

सांस्कृतिक जन जागरण का केंद्र बनता शाहजहांपुर खेड़ा बॉर्डर

संदीप मील

शाहजहांपुर खेड़ा बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन ने सांस्कृतिक रूप से जन जागरण का स्वरूप अख्तियार कर लिया है। इस आंदोलन में हरियाणवी, राजस्थानी और केरल सहित देश के विभिन्न हिस्सों की सांस्कृतिक मंडलियों ने अपनी जन जागृति की प्रस्तुति दी। एक पूरा दिन तो सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का ही रखा गया था। यहां की कमेटी ने तय किया कि उस दिन भाषण नहीं होंगे बल्कि  सांस्कृतिक रूप से किसानों के संघर्ष की बातों को सामने लाया जाएगा। करौली और सवाई माधोपुर के लोक कलाकारों ने अपने लोक कला की प्रस्तुति दी। इसी तरह से राजस्थान के अन्य हिस्सों के कलाकारों ने हरियाणा के कलाकारों ने और केरल के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी।

पिछले दिनों राजस्थान के पूर्वी हिस्से ने साहस से उठकर शाहजहांपुर खेड़ा के किसान आंदोलन को मजबूत किया है। इस इलाके में सवाई माधोपुर, करौली और दौसा में किसान महापंचायतें हुई और उन महापंचायतों के प्रभाव से हजारों हजार लोग किसान आंदोलन में उमड़ पड़े। यह लोग आंदोलन को पूरी तरीके से समर्थन दे रहे हैं और यहां के सारे किसान खुद जाकर गांव के दूसरे किसानों को जगा रहे हैं। इसलिए अभी राजस्थान में जिस तरीके से टोल फ्री का अभियान चलाया गया है, उसमें पूर्वी राजस्थान से लेकर सुदूर पश्चिम राजस्थान की सीमा तक, राजस्थान की उत्तरी सीमा से लेकर दक्षिण में गुजरात की सीमा से लगे डूंगरपुरबांसवाड़ा तक फैल गया है। अभी पिछले दिनों दौसा और सुनहरा में हुई महापंचायतों ने यह संदेश दे दिया है कि पूर्वी राजस्थान का किसान अब इस आंदोलन से कंधे से कंधा मिला चुका है।उन्हें किसी तरह की जातधर्म के बंटवारे की राजनीति इस किसान आंदोलन से दूर नहीं कर सकती। आप देखेंगे कि इस तरीके से बॉर्डर के आंदोलन का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप बनता जा रहा है। एक तरफ आप मेवाती ढाबे पर मेवाती चाय पी रहे हैं, फिर हनुमानगढ़ के लंगर में आप जलेबी खा रहे हैं या बाबा के लंगर का हलवा खा रहे हैं। इसमें पूरे तरीके से किसानी संस्कृति ने अपने अपना स्वरूप अख्तियार किया है। इस मोर्चे पर अलगअलग हिस्सों से लोग अपना समर्थन और सहयोग दे रहे हैं। जिसमें पिछले दिनों राजस्थान के बहुत से हिस्सों सीकर, गंगानगर, हनुमानगढ़ के वकीलों ने किसान आंदोलन का पुरजोर समर्थन किया और सहयोग किया। इसी तरीके से किसान आंदोलन अपने स्वरुप को बढ़ाते हुए  आदिवासियों को भी अपने आंदोलन में शामिल कर पा रहा है। आदिवासी अधिकार मंच ने भी किसान आंदोलन को पूरा समर्थन दिया और जन विरोधी कानूनों के खिलाफ संघर्ष के मैदान में उतरने का वादा किया।

इस आंदोलन का विस्तार राजस्थान के गांव गांव में करने के लिए किसानों की टोलियां और किसानों के जत्थे गांवकस्बों में जा रहे हैं।स्थानीय स्तर पर जिस तरीके से टोलों पर छोटेछोटे धरने लग रहे हैं वे धरने आपको सीकर से लेकर हनुमानगढ़ गंगानगर सहित राजस्थान के तमाम इलाकों में मिल जाएंगे। जहां  किसान अपने टेंट और तंबू लगाकर बैठे हैं और गांव से लोग उनके लिए खाना ला रहे हैं। उनका समर्थन कर रहे हैं। इससे किसान आंदोलन को गांवगांव तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। गांवों में पर्चे बांटे जा रहे हैं और लोग इससे जुड़ते जा रहे हैं।

इसी तरीके से शाहजहांपुर बॉर्डर पर अभी हाल ही में राजस्थान के सभी जिलों से छात्रों का एक जत्था स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के नेतृत्व में मोर्चे पर अपना शिविर लगाया है जिसमें किसानों के लड़के और लड़कियां शामिल हैं जो विद्यार्थी हैं। वे अब इस आंदोलन में यहां पर अपना सहयोग भी करेंगे और अपनी पढ़ाई के साथ संघर्ष सीखेंगे। जो बातें किताबों में लिखी गई हैं उन संविधान की बातों पर हमला होता है तो उनको जब दबाया जाता है, हमारे अधिकारों को पर हमला किया जाता है तब शांतिपूर्ण तरीके, लोकतांत्रिक तरीके से लोकतंत्र और संवाद को बचाने के अभ्यास को सीखा जाए। वे अब यहां सिद्धांत और व्यवहार के संगम में आए हैं जहां से वे बहुत समृद्ध अनुभव लेकर जाएंगे और ये आने वाले राजस्थान की युवा पीढ़ी को एक नया रास्ता दिखाने में कामयाब होंगे।

यहां पर जो लोग बहुत दिनों से आंदोलन में थे, वे जब घर जा रहे हैं तो गांव से दूसरे लोग उनकी जगह वहां पर रहे हैं। इसलिए मोर्चा लगातार सिर्फ स्थाई रूप से टिका हुआ है बल्कि समृद्ध और मजबूत हो रहा है। इसका सबसे बड़ा प्रभाव किसानों की चेतना की समृद्धि में देखा जा सकता है। उनकी समझ में विस्तार देखा जा सकता है। मोर्चे पर जिस तरीके से लोग पढ़ रहे हैं, एकदूसरे से बात कर रहे हैं। राजस्थान और भारत के किसान के इतिहास पर बातें हो रही हैं। किसान की संस्कृति पर बात हो रही है। लोक संगीत और  लोक कथाओं पर चर्चा हो रही है। इसी तरीके से दुनिया में हुए किसान आंदोलनों पर संवाद होता है। भारत में होने वाले किसान आंदोलनों की परंपरा को समझ रहे हैं। लोग होली में गाए जाने वाले धमलों की नया सर्जन कर रहे हैं जो पूरी तरह से किसान आंदोलन पर केंद्रित हैं।

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