सुरमीत मावी
भारत सरकार की कैबिनेट ने 5 जून, 2020 को तीन नए खेती कानून पेश किए। इन कानूनों पर विवाद शुरू हो गया। जहां पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बुद्धिजीवियों द्वारा आलोचना और किसानों के प्रदर्शन के रूप में इन कानूनों का विरोध बढ़ रहा था; वहीं 17 सितंबर को लोकसभा, 20 सितंबर को राज्यसभा और 24 सितंबर को राष्ट्रपति की स्वीकृति लेकर ये कानून लागू कर दिए गए। लेकिन किसान इन कानूनों को मानने के लिए तैयार नहीं थे और धरने–प्रदर्शनों के बाद अंतत: किसान ट्रैक्टर ट्रालियों के साथ दिल्ली आ गए और राजधानी के पाँच सीमाओं पर जम गए। उन्होंने कहा कि जब तक खेती क़ानून रद्द नहीं हो जाते तब तक यहीं जमे रहेंगे। लाठियाँ और गोलियाँ चलीं, पानी की तोपें और आँसू गैस के गोले चले लेकिन किसान तीन महीनों में टस से मस नहीं हुए हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ ये संघर्ष राजस्थान, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल होता हुआ पूरे भारत में फैल चुका है।
ये कहानी भारत की है। और भारत के किसान संगठनों को अमेरिका के 87 संगठनों ने पत्र में यह लिखकर अपना समर्थन भेजा कि “आप सही लड़ाई लड़ रहे हैं। हम ये सब 40 साल पहले देख चुके हैं और आज तक नतीजे भुगत रहे हैं।” बहरहाल अमेरिका में ये बीते समय की बात हुई। इस वक़्त दुनिया के और देशों क्या चल रहा है? जर्मनी की नयी खेती पॉलिसी के ख़िलाफ़ राजधानी बर्लिन में 26 नवंबर को हज़ारों किसानों ने 40,000 ट्रैक्टरों के साथ सड़कों पर प्रदर्शन किया। इंडोनेशिया की सरकार द्वारा बनाए गए नए कानून की वजह से वहाँ के लाखों छोटे मछलीपालकों की नाजुक आर्थिक स्थिति को इस क्षेत्र के बड़े खिलाड़ियों से और भी ज्यादा नुकसान होने वाला है। इसी के चलते जनता का विरोध उठना शुरू हो गया है। अफ्रीकी देश घाना में वहाँ लोबिया आदि फसलों के लिए जी एम (जेनेटिकली मॉडिफाइड) बीजों को सरकार द्वारा मान्यता देने के ख़िलाफ़ भी विद्रोह हो रहा है।
इन सब मसलों पर फिर कभी विस्तार से बात करेंगे, फिलहाल भारत में चल रही किसान क्रांति के संदर्भ में यह समझना चाहिए कि हम अकेले नहीं हैं। दमन दुनिया भर में हो रहा है लेकिन किसान भी अब चुप नहीं है। आशा की किरण बुझी नहीं है। स्पेन के किसानों ने वहाँ के 2013 के न्यूनतम मूल्य सम्बंधित कानूनों में संशोधन के खिलाफ फरवरी 2020 में ट्रैक्टरों पर बड़े प्रदर्शन शुरू किए और मई में सरकार से अपनी माँगें मनवाईं। इथियोपिया में 10 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन पर खेती कर रही भारतीय कृषि–व्यापार कंपनी करुतुरी ग्लोबल द्वारा लाखों छोटे किसानों के उजाड़े जाने के खिलाफ वहाँ के संगठन सरकार का ध्यान खीँच पाने में सफ़ल हुए हैं। अर्जेंटीना में रासायनिक कीड़ेमार दवाओं के बदले जैविक उपायों के समर्थन में आवाज़ मुखर हो चुकी है।
दमन और प्रतिरोध की ऐसी मिसालें दुनिया भर में उठ खड़ी हुई हैं, एक ही साथ। मसले अलग–अलग हो सकते हैं लेकिन मतलब एक ही है और वो भी साफ–साफ। बरसों से कॉरपोरेट जगत और सरकारों की मिली भगत से अनजान रहा किसान सिर्फ नींद से जाग ही नहीं रहा है बल्कि अपनी शक्ति को भी पहचान रहा है।
दुनिया के किसान को पहली विश्वव्यापी किसान क्रांति का न्योता मुबारक! सभी देशों के किसानो, एक हो जाओ!