सुमबुल जहांगीर
जब पिछले साल फरवरी 2020 में डोनॉल्ड ट्रम्प के स्वागत में भारतीयों ने एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया था, तो कुछ मील दूर भारतीय राष्ट्रीय राजधानी जल रही थी। इस कार्यक्रम से पहले, सीएए का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को ट्रम्प की यात्रा के दौरान शांतिपूर्वक तरीके से विरोध करने के लिए कहा गया था क्योंकि इससे भारतीय छवि को खतरा हो सकता था। लेकिन दंगों ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींच लिया और दुनिया भर में जलती हुई राजधानी का प्रसारण किया गया। भारतीय अपने देश की प्रतिष्ठा का ध्यान रखने के लिए जाने जाते है। इसी तरह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेशी नेताओं के साथ अपने संबंधों को बनाए रखने के लिए भारी निवेश किया है। ‘नमस्ते ट्रम्प’ से ‘हाउडी मोदी’ तक मोदी ने डोनाल्ड ट्रम्प के प्रचार के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। पीएम मोदी अपने पहले कार्यकाल से ही विश्व यात्रा कर रहे हैं, नेताओं से मिल रहे हैं और गठबंधन बना रहे हैं। जिस देश की लोकतांत्रिक राष्ट्रों के बीच एक अच्छी छवि थी, उसका नाम अब सत्तावादी राज्यों में गिना जाता है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में हुईं घटनाओं को देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार इस तथ्य से बिलकुल अप्रभावित है।
यूनाइटेड नेशन की मानवाधिकार आयुक्त मिशेल बाचेलेट ने 27 फरवरी को मानवाधिकार परिषद के एक सत्र में किसानों के विरोध प्रदर्शन, पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के आरोप और सोशल मीडिया को नियंत्रित करने का मुद्दा उठाया। उन्होंने यह भी कहा कि पत्रकारों और कार्यकर्ताओं पर रिपोर्टिंग करने के लिए देशद्रोह के आरोप लगाना और सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने के प्रयास करना “आवश्यक मानव अधिकारों के सिद्धांतों से एक चिंताजनक प्रस्थान है”। बाचेलेट ने कश्मीर की स्थिति पर भी बात करते हुए कहा कि संचार और नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं पर प्रतिबंध “चिंता का विषय” है।
कृषि कानूनों के विरुद्ध हो रहे प्रदर्शन के चलते राज्य द्वारा किए गए उत्पीड़न ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, विश्व राजनीतिक नेताओं, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया और सबसे महत्वपूर्ण रूप से विदेशों में रह रहे भारतीयों को चिंतित किया है। चूंकि, यूके, यूएस और कनाडा कई भारतीयों के लिए घर हैं, तो इन देशों में हजारों भारतीय प्रवासियों और यहाँ तक कि उन देशों के मूल निवासियों ने भी किसानों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। कृषि कानूनों के खिलाफ खड़े हुए किसानों के प्रति सहानुभूति दिखा रहे भारतीय लोग अपनी सरकारों पर इन कानूनों के खिलाफ खड़े होने के लिए दबाव बना रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता जेनरल एंटोनियो गुटेरेस ने जोर देकर कहा कि भारत सरकार को किसानों को विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति देनी चाहिए क्योंकि यह उनका अधिकार है।
इन विरोध प्रदर्शनों ने मोदी के शासन में बढ़ते अधिनायकवाद के प्रति चल रही बहस को पूरी दुनिया में बढ़ा दिया है। सूत्रों के अनुसार, एक ऑनलाइन याचिका पर आए 106,000 से अधिक हस्ताक्षरों के बाद, ब्रिटिश संसद की याचिका समिति भारत में किसानों के विरोध और प्रेस स्वतंत्रता के मुद्दे पर हाउस ऑफ कॉमन्स परिसर में एक वेस्टमिंस्टर हॉल बहस पर विचार करेगी। हालांकि, कृषि कानूनों के विरोध प्रदर्शन के चलते पुलिस की बर्बरता और मानव अधिकारों के उल्लंघन की घटनाएं न तो भारतीयों के लिए नयी हैं और न ही दुनिया के लिए। कश्मीर से लेकर असम तक में घेराबंदी भारतीय लोकतंत्र पर एक सवालिया निशान है। दक्षिणपंथी भाजपा सरकार के शासन के तहत, लोकतंत्र सूचकांक में भारत के स्तर में गिरावट आई है और दुनिया इसकी गवाह है। सबसे महत्वपूर्ण रूप से, प्रेस फ्रीडम इंडेक्स है, जहाँ भारत अब 180 देशों में 142वें स्थान पर है। द न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, सीएनएन, अल–जज़ीरा और अन्य प्रकाशनों ने सरकारी गतिविधियों पर कई समाचार और अपनी राय प्रकाशित की है।
यदि सरकार देश की छवि के बारे में चिंतित होती, तो वह आलोचनाओं पर गौर करती। इसके विपरीत, सरकार ने कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को गिरफ़्तार करना और यातना देना जारी रखा है। बोलने की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के साथ–साथ, विरोध स्थलों पर इंटरनेट भी बंद कर दिया। मानवाधिकारों पर हमला करने का लंबा रास्ता तय करने के बावजूद भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा भले करता रहे लेकिन मानव स्वतंत्रता के मामले में भारत 162 देशों में से 111 वें नंबर पर आता है, रूस से सिर्फ चार देश आगे। हाल ही में मानवाधिकार समूह ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने भारत सरकार के निरंतर हमलों के बाद भारत में अपना काम बंद कर दिया है। भारत कई वर्षों से अपनी एक लोकतांत्रिक छवि बनाए हुए है, जबकि कितने ही राजनेता, कार्यकर्ता और छात्र गिरफ़्तार हैं। अब समय आ गया है कि विश्व भारत के प्रति अपना रवैया बदल ले। भारत में जाति और धर्म–आधारित नस्लवाद को दुनिया की नजरों में लाने की जरूरत है।
भारत में बहुत कुछ ऐसा चल रहा है जिससे सबसे बड़ा लोकतंत्र सत्तावाद की ओर बढ़ रहा है और इस पर पूरी दुनिया को ध्यान देना चाहिए। क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करता है। कृषि कानूनों के अलावा कई कठोर कानून सरकार की सहूलियत के अनुसार लागू किए गए जैसे नागरिकता अधिनियम, गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, और सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम आदि। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हमें इस लोकतंत्र को बचा लेना चाहिए। निस्संदेह, भारत वैश्विक स्तर पर उभरता हुआ एक ऐसा देश है जो अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को परिभाषित करने में सक्रिय भूमिका निभाता है। देश के भीतर की नीतियां सीमाओं के पार भी प्रभाव रखती हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मानवाधिकार की कोई सीमा नहीं होती। विश्व के प्रमुख देशों और संगठनों ने कई अन्य देशों में मानवाधिकारों की स्थिति में सुधार के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है किंतु भारत के बारे में उनका रुख स्पष्ट नहीं है। भारत के साथ प्रमुख देशों की द्विपक्षीय गतिविधियों का अवसर मौजूद हैं। यदि विकसित देश अपने वैश्विक प्रभाव का प्रयोग करते हुए अन्य राज्यों को मानवाधिकारों का सम्मान करने के लिए प्रेरित करता है, तो यह नागरिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहे भारत जैसे देशों में अधिक लचीली रणनीतियाँ भी ला सकता है।