अभिप्सा चौहान
ग़ाज़ीपुर किसान मोर्चे पर उन्हें सब प्यार से मेजर बाबा पुकारते हैं। चेहरे पर उम्र की गहरी लकीरें, आँखों में तजुर्बे की चमक और दिल में जीत का जज़्बा – इन ख़ूबियों को समेटे 94 साल के सुरेन्द्र सिंह मेजर, ग़ाज़ीपुर धरने के सबसे उम्रदराज़ आंदोलनकारी हैं। मेजर बाबा 6 दिसंबर 2020 से यहाँ के मोर्चे पर तैनात हैं । भीषण जाड़ा–बारिश, 26 जनवरी की घटना और फिर राकेश टिकैत की गिरफ़्तारी के लिए रचा गया व्यूह– यह सब मेजर बाबा का किसान आंदोलन से भरोसा हिलाने में कामयाब न हो सके। वह कहते हैं बिलों की वापसी के बाद ही उनकी घर वापसी होगी।
मेजर बाबा मेरठ जिले के रोहतक ब्लॉक के चिन्दौडी गाँव के रहने वाले हैं। शादी नहीं की और अपने 86 बरस के छोटे भाई के परिवार के साथ रहते हैं। उनकी 50 बीघा ज़मीन है जिस पर उनका परिवार गन्ना, गेहूँ, मक्की और ज्वार पैदा करते हैं। सन् 1960 में मेज़र बाबा सेना में भर्ती हो गये। वह जाट रेजिमेंट का हिस्सा थे और उन्होंने 1962 में भारत –चीन युद्ध, 1965 में भारत–पाकिस्तान युद्ध और 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी के लिए सेना का हिस्सा रहे। लगभग तीस बरस पहले सेना से रिटायर हुए और पैतृक खेती बाड़ी में जुट गये।
मेजर बाबा, चौधरी चरण सिंह को अपना नेता मानते हैं और उनके राजनैतिक विचारों से प्रेरित हैं। वो कहते हैं कि उन्होंने न कभी कॉंग्रेस और न ही कभी भाजपा को वोट दिया। उनका कहना है कि सब पार्टियों ने किसानों को धर्म–जाति में बाँट कर अपनी रोटी सेकी, वही चौधरी चरण सिंह किसान एकता और आपसी भाईचारे के पैरोकार थे। मेजर बाबा कहते हैं कि उन्हें बहुत दुख हुआ जब सरकार ने 26 जनवरी को किसानों को बदनाम करने की कोशिश की। उन्हें इस बात की भी नाराज़गी है कि भाजपा के लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर अपने गुंडों को लेकर किसानों को पीटने ग़ाज़ीपुर आया।
पर उन्हें इस बात की बेहद ख़ुशी है कि केन्द्र सरकार के काले क़ानूनों ने किसानों को साथ ला खड़ा किया और आज हर जाति और धर्म का किसान और खेत मज़दूर इन काले क़ानूनों के ख़िलाफ़ खड़ा है। वह प्रधानमंत्री से अपील करते हुए कहते है-“ मोदी जी, जाने से पहले अपना एक–आध वादा तो पूरा कर जाओ, जाना तो तो आपको पड़ेगा, लोग याद कर लिया करेंगे कभी कभी अगर किसी आधे अधूरे वादे को पूरा कर दोगे।”