सम्भावनाएँ
जब गलियों से गुज़रते हैं सैनिक,
उसी क्रम और लय में बच्चे खेलते हैं फ़ुटबॉल।
जिस दिन शहर के चौक लाल हुये हों कहीं भी,
ठीक उसी वक़्त डॉक्टरों के हाथों में होते हैं नौजन्मे।
जब गलियों से गुज़रते हैं सैनिक,
उसी क्रम और लय में बच्चे खेलते हैं फ़ुटबॉल।
जिस दिन शहर के चौक लाल हुये हों कहीं भी,
ठीक उसी वक़्त डॉक्टरों के हाथों में होते हैं नौजन्मे।
विज़न बोर्ड क्या है? भारत के प्रधान मंत्री के अधिकारिक अकाउंट द्वारा 19 फ़रवरी को किए गए ट्वीट के अनुसार प्रधानमंत्री 2047 तक इस देश को बेहतर बनाने के लिए विचारों का संकलन करने का सुझाव देते हैं, जो कि हमारे देश की 100 वर्षीय सालगिरह को एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक रूप में चिह्नित करता है।
ग़ाज़ीपुर किसान मोर्चे पर उन्हें सब प्यार से मेजर बाबा पुकारते हैं। चेहरे पर उम्र की गहरी लकीरें, आँखों में तजुर्बे की चमक और दिल में जीत का जज़्बा – इन ख़ूबियों को समेटे 94 साल के सुरेन्द्र सिंह मेजर, ग़ाज़ीपुर धरने के सबसे उम्रदराज़ आंदोलनकारी हैं।
लॉयर्स फ़ोर फ़ॉर्मर्ज़ किसानों को इस आंदोलन के दौरान कानूनी मदद देने के लिए की गई एक पहल है। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को आंदोलन के दौरान कानूनी रूप से बचाना और उन्हें उनके अधिकारों के बारे में अवगत कराना है।
उत्तर- कॉरपोरेटाइजेशन के कई मतलब हो सकते हैं खेती पहले किसान करता है वह किसान ही करता रहे लेकिन किसान अपने लिए खेती ना करें उसको कोई बताए इसको कॉर्पोरेट फार्मिंग का एक तरीका बोलते हैं वह फिर काफी सारे किसान रिक्रूट हो जाएंगे
आज़ादी के समय हमारी कृषि विकास दर शून्य थी । किसानों की हालत ख़राब थी। 1943 के बंगाल के अकाल में 30 लाख लोगों की मौत हो गयी थी । देश के बटवारे में काफी सिंचित ज़मीन भी पाकिस्तान में चली गयी थी। लेकिन आजादी के बाद खेती को एक नया जीवन मिला।
उत्तर प्रदेश के बिलासपुर ज़िले के बिशारतनगर से आने वाली 74 वर्षीय जसवीर कौर को कमेटी के द्वारा 14 जनवरी को वापस भेजा गया और 13 फ़रवरी को जसवीर कौर ग़ाज़ीपुर मोर्चे पर रुकने के लिए वापस आ गई। ‘मैं किसानी परिवार से हूँ
लिकड़ पड़ै हां घर तै कुछ लेकै जावांगे
न्यूए लड़दे रहियो साथी हम जीत कै जावांगे
ना माना दाब किसे की ना पाछै कदम हटांवां
इका मूंह ऊपर नै होर्या दिल्ली कै नाथ लगावां
विनम्र निवेदन है कि पिछले छह महीनों से देश के किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ और एमएसपी की कानूनी गारंटी सहित कुछ अन्य मांगों के लिए विभिन्न तरीकों से और विभिन्न स्तरों पर लड़ रहे हैं।
मेरा गांव ह्यूण है, जो हिमाचल प्रदेश के शिमला में बसा हुआ है। मेरे पिताजी सरकारी नौकरी के साथ-साथ घर पर खेतीबाड़ी भी करते है। इसीलिए मैं किसान और किसानी को समझती हूं। पर बाहर की दुनिया टीवी पर कुछ और होती है
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VOICE OF THE FARMERS PROTEST
58B, Professor Enclave, Patiala, Punjab, India,
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