हेमलता सिंह
मेरा गांव ह्यूण है, जो हिमाचल प्रदेश के शिमला में बसा हुआ है। मेरे पिताजी सरकारी नौकरी के साथ–साथ घर पर खेतीबाड़ी भी करते है। इसीलिए मैं किसान और किसानी को समझती हूं। पर बाहर की दुनिया टीवी पर कुछ और होती है और असल जिंदगी में हकीकत कुछ और होती है। मैं पंजाब और हरियाणा आयी तो मैं काफ़ी खुश थी। मेरे साथ मेरी मैम थी उन्होंने मुझसे पूछा – जगह पसंद आई तो मैंने कहा मुझे यह जगह काफी पसंद आई। एक शहर में जो भी सुविधाएं होनी चाहिए, वह सारी यहाँ मौजूद है। यह मैदानी इलाका है। जगह–जगह पर होटल, रिसॉर्ट, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल है। इतने बड़े ट्रक को देखकर मैं बहुत खुश हुई। पर करनाल की हवा काफी प्रदूषित थी। अब मुझे समझ में आया। मेरी शिक्षिका मुझसे सवाल पूछकर क्यों मुस्कुरायी। मेरे गांव की हवा काफी साफ–सुथरी है और वहाँ खेती प्रकृति पर निर्भर ज्यादा है।
खैर 26 जनवरी को दोपहर 3 बजे घर से बाहर अपनी मैम के साथ निकली। शाम के 7 बजे शम्भू लंगर पर रुके, यहां पर किसानों का एक जत्था दिल्ली की ओर कूच कर रहा था। वहाँ हमने कई किसानों से बात की। उन्होंने बताया – कंपनी हम से 18 रुपये किलों गेंहू खरीदकर और पालिश कर 60 रुपये बाजार में बेचती है। इन कानूनों के लागू हो जाने से किसानों की स्थिति और दयनीय हो जाएगी। आज किसानों की स्थिति सामन्तवाद के दौर जैसी है। किसान अपने हक और अपनी जमीन को कंपनी के अधीन नहीं करना चाहते है। पर केंद्र सरकार तीन काले कानूनों के द्वारा मंडी की व्यवस्था खत्म करना, बेहिसाब अनाज की स्टॉक की छूट और किसानों की कोर्ट जाने की छूट को खत्म करना चाहती है। इसी कारण से कृषि बिलों का विरोध किसान कर रहे है। वे 26 नवंबर से दिल्ली बॉर्डर पर टिके हुए है। पर केंद्र की भाजपा सरकार इन बिलों को लेकर अपना अड़ियल रुख साफ कर चुकी है। जब हम बॉर्डर पर हरियाणा के द्वार पर पहुँचे तो वहाँ लंगर चल रहे थे। किसानों ने हमसे मीडिया समझ कर बात की और मुख्यधारा की मीडिया को झूठा बताया। वहां पर हमारी मुलाकात रिटायर्ड फौजी कुलविंदर से हुई जो मीडिया के एक धड़े द्वारा किसानों को खालिस्तानी और उग्रवादी बोले जाने से आहत थे। जो किसान खेतों में खून– पसीना बहाते है। उन्हें मीडिया और सरकार द्वारा ऐसा कहना अमानवीय है। हमारी प्रार्थना किसानों के साथ है।
जय जवान जय किसान !