रितिक चौधरी
शा19 दिसंबर, वो दिन जब मैं शाहजहांपुर बॉर्डर पर आया। मैं कभी किसी संगठन से नही जुड़ा, और न ही किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थक रहा हूँ। आंदोलन में आने का कारण किसानों के साथ खड़े होना, और आंदोलन को समझना था। कि किस प्रकार से इतना बड़ा आंदोलन चल रहा है। आज मुझे इस आंदोलन से जुड़े बीस दिन हो चुके है। इन बीस दिनों का मेरा अनुभव बहुत ही स्मरणीय रहा है।
शाहजहांपुर पर हरियाणा-राजस्थान बॉर्डर पर किसान 12 दिसंबर से डटे हुए है और लगातार अपने हक के लिए सरकार के खिलाफ आवाज़ को बुलंद कर रहे है। मुझे याद है जब मैं यहां आया था तो यहां लोगो की मौजूदगी इतनी नही थी। केवल 600-700 लोग उस समय यहां पर थे। लेकिन उनके हौसले बहुत बुलंद थे। जुबान पर केवल यही बात की हम अपने हक लेने आये है और लेकर ही वापिस जाएंगे।
दूसरी तरफ हरियाणा पुलिस भी अपनी तैयारी मजबूत कर रही थी। ताकि सरकारी आदेशो के अनुसार किसानों को दिल्ली जाने से रोक जा सके। जैसे-जैसे दिन गुरजते गए लोगो की तादात बढ़ती गयी। आज 20 दिन के बाद ये संख्या कई गुना हो गयी है। उस समय यहां केवल हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के कुछ क्षेत्रो के किसान ही यहां मौजूद थे। लेकिन अब यहां गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश के लोग भी यहां मौजूद है।
माहौल की बात करूँ तो यहां का माहौल में सबको भाने वाला है। एक दम अनुशाषित और लोकतांत्रिक रूप से यह आंदोलन चल रहा है। विरोध के नए-नए तरीको का प्रयोग किया जा रहा है। कविता,लेखन, गीत, चित्रकारी और न जाने कितने ही अलग-अलग तरीकों से सरकार का विरोध किया जा रहा है। न केवल किसान बल्कि मजदूर, छात्र और महिला वर्ग की भी इस आंदोलन में उतनी ही अच्छी भागीदारी है। प्रतिदिन सुबह सरसों के खेतों के बीच चाय की चुस्कियों के बीच देशभक्ति गीतों की आवाज़ कान में गूंजती है। ठंड के मौसम में हज़ारो किसान एक साथ बैठकर खाना खाते है। जहां न जाति पूछी जाती है और न धर्म। एक मंच जो बिल्कुल हरियाणा-राजस्थान की सीमा पर लगा है, हर रोज़ की तरह कार्यक्रम शुरू होता है। जहां क्रांतिकारी गीत गाये जाते है,नारे लगाये जाते है, और पूरे दिन किसानों के दिल में वैसा ही जोश दिखता है जैसा सूर्योदय के समय था।
इतने सुरक्षित माहौल के बीच किसानों को कम मुसीबतों का सामना नही करना पड़ा है। अभी कुछ दिन हुई लगातार बारिश ने किसानों को परेशान भी बहुत किया। सरकार की तरह ही कुदरत ने भी किसानों के हौसलो को तोड़ने की पूरी कोशिश की, परंतु सफल नही हो सकी। किसानों के कैम्पों में पानी घुस गया, बिस्तर भींग गए। सर्द रात में किसानों ने पूरी रात जाग कर बिताई। सरकार और कुदरत दोनों को अपनी हौसलो की मजबूती से परिचित कराया।
मेरे 20 दिन के अनुभव को शब्दों में बयान करना मुश्किल है। और जो मैंने लिखा यह शायद बहुत कम है। इस आन्दोलन में बहुत से लोगो ने अपनी जान भी गवाई, जो कि बहुत ही दुःखद है। उम्मीद है ऐसी खबरें और अधिक सुनने को न मिले। सरकार भी किसानों की मुसीबतों पर ध्यान दे और जल्द से जल्द तीनो कानूनों को रद्द करें। ताकि लाखों की संख्या में देश के अलग अलग कोने से सड़कों पर बैठे किसान जल्द से जल्द खुशी खुशी अपने घर जा सके। उम्मीद है जल्द ही यह आंदोलन एक धनात्मक परिणाम के साथ खत्म होगा।