राजनैतिक होना छात्र की ज़िम्मेदारी है

राजनैतिक होना छात्र की ज़िम्मेदारी है

रामा नागा, दिल्ली 

इस बात का बड़ा भारी शोर सुना जा रहा है कि पढ़ने वाले नौजवान (विद्यार्थी) राजनीतिक या पॉलिटिकल कामों में हिस्सा लें….” “हम यह मानते हैं कि विद्यार्थियों का मुख्य काम पढ़ाई करना है, लेकिन क्या देश की परिस्थितियों का ज्ञान और उनके सुधार सोचने की योग्यता पैदा करना उस शिक्षा में शामिल नहीं? यदि नहीं तो हम उस शिक्षा को भी निकम्मी समझते हैं…” क्रांतिकारी भगत सिंह ने यह दोनों बातें 1928 में अपने लेखविद्यार्थी और राजनीतिमें लिखी थी और यह बात ऐतिहासिक रूप से सिद्ध है कि किसी भी देश के निर्माण की कल्पना वहां के  युवाओं और विद्यार्थियों के बिना सक्रिय योगदान के नहीं की जा सकती है। इस बात का गवाह भारत का स्वतंत्रता संग्राम, इस देश का आपातकाल और समय समय पर इस देश को दशा और दिशा देने वाले सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन रहे हैं, जहाँ पर विद्यार्थियों ने इस देश के शोषण के खिलाफ लड़ा, लोकतंत्र को बचाया और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आंदोलन किया। भगत सिंह ने इस देश के विद्यार्थियों की कल्पना कभी भी ऐसे रूप में नहीं की थी जिसकी शिक्षा का लक्ष्य सिर्फ जीवन यापन हो। उनका मानना था कि विद्यार्थियों का काम व्यावहारिक राजनीति में हिस्सा लेकर अन्याय और शोषण के खिलाफ लड़ते हुए लोकतंत्र को बचाये रखने का भी है। भगत सिंह के आदर्शों को मानते हुए इस देश का युवा हमेशा से उनके दिखाए हुए रास्ते पर चला है। ऐतिहासिक घटनाओं के साथ साथ अगर इस सरकार की बात करें तो इस सरकार के तानाशाही और फासीवादी चरित्र को पहचान कर इस देश को बचाने के लिए इस देश का विद्यार्थी ही सबसे पहले मैदान में उतरा और इसलिए हम देख पाते हैं कि विद्यार्थियों के ऊपर सरकार ने किस बर्बरता से ज़ुल्म ढाये। 

इस सरकार के पहले ही कार्यकाल में आई.आई.टी. मद्रास में विद्यार्थियों के द्वारा चलाये जा रहे अम्बेडकरपेरियार स्टडी सर्किल को बैन किया गया। इसके बाद तो जैसे सरकार ने स्टूडेंट्स के दमन का एजेंडा ही तैयार कर लिया। इस कड़ी में हैदराबाद यूनिवर्सिटी के दलित छात्र की सांस्थानिक हत्या तक कर दी गयी और सरकार विश्वविद्यालय दोनों ये साबित करने पर तुले रहे कि रोहित वेमुला दलित ही नहीं था, ठीक वैसे ही जैसे आज सरकार ये साबित करने पर तुली है कि आंदोलन करने वाले किसान, किसान ही नहीं हैं। इस कड़ी में सबसे ज्यादा दमन की वार इस देश की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जे.एन.यू. को सहना पड़ रहा है। यह यूनिवर्सिटी अपनी शैक्षणिक गुणवत्ता और इस देश को सबसे ज्यादा आई..एस. देने के लिए जानी जाती है। यह यूनिवर्सिटी अपने सस्ती फीस के कारण गरीब और किसानों के बच्चों के लिए भी यहाँ पर विश्वस्तरीय शिक्षा उपलब्ध है। लेकिन सरकार ने इस यूनिवर्सिटी को जैसे अपना दुश्मन ही मान लिया है और इस यूनिवर्सिटी को बर्बाद करने के लिए चौतरफा मोर्चा खोल रखा है क्यूँकि यहाँ के छात्रछात्राएं हमेशा से देश के गरीबों के पक्ष में बोलने, सस्ती शिक्षा के लिए लड़ने और लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए बोलने के लिए जाने जाते है। दमन का आलम तो ये है कि यहाँ के छात्रछात्राओं को आये दिन जेल तक भेजा जाता है और उनके खिलाफ एफ.आई.आर. तो अब आम बात है। स्थिति तो यहां तक पहुंची कि हथियारबंद लोगों की मदद से पुलिस और प्रशासन की स्थिति में वहां के अध्यापकअध्यापिकाओं छात्रछात्राओं पर खुले आम हमले कराए जाते हैं। 

जिस तरफ आज आंदोलन कर रहे किसानों को सरकार द्वारा आतंकवादी, खालिस्तानी और जाने क्या क्या नाम दिए जा रहे हैं ठीक उसी तरह यहाँ के स्टूडेंट्स को भी कभी एंटीनेशनल तो कभी आतंकवादी बोला गया। क्या बी.एच.यू., क्या जामिया हर जगह छात्रछात्राओं ने सरकार का दमन सहा, लाठियां खाई लेकिन भारत का स्टूडेंट्स भगत सिंह के सपने का भारत बनाने के लिए आज भी लड़े जा रहा है और इस देश के लोकतंत्र को बचाए रखने के संघर्षरत है। इस देश का इतिहास रहा है कि यहाँ का स्टूडेंट्स हमेशा से गरीबों और मजलूमों के लिए खड़ा रहा है और वह आज भी इस जिम्मेदारी को समझता है। 

आज जब इस समय कृषि के बाजारीकरण के खिलाफ इस देश और दुनिया का सबसे ऐतिहासिक आंदोलन चल रहा है तब छात्रआंदोलन भी अपने समय में ऐसे संघर्षो में हैं।

सरकार हर तरफ से इस कोशिश में लगी हुई है कि किस तरह से इस देश की शिक्षा को कॉर्पोरेट घरानो के हाथों नीलाम कर दिया जाए। सरकारी प्राइमरी स्कूलों की दुर्दशा हमारे सामने है और अब नज़र उच्च शिक्षा पर है। सरकार की ये प्रयास साफ़ नज़र आता है कि किस तरह से इस देश के किसान और गरीब के बच्चों को शिक्षा से दूर किया जाए और उनको सिर्फ एक मजदूर भर बना के रख दिया जाये जो कॉर्पोरेट के नौकर भर रह जाए इस लिए जो भी संस्थान, यूनिवर्सिटी गरीबों के पढ़ने की जगह है उनको बर्बाद किया जा रहा है, वजीफा खत्म किया जा रहा है और आरक्षण को खत्म किया जा रहा है और जो भी इन अन्याय के खिलाफ बोलेगा उसको सरकार के दमन का शिकार होना पड़ रहा है, ठीक उसी तरह जैसे कृषि कानूनों का विरोध करने पर किसान नेताओं को एन.आई.. का नोटिस दिया जा रहा है।  

आज जब हम एक ऐतिहासिक किसान आंदोलन के गवाह है हम सीधेसीधे देख पा रहे है कि आज इस देश में सब कुछ कॉर्पोरेट के हाथों में बेच देने की तैयारी है, क्या शिक्षा और क्या कृषि। हम सीधे सीधे देख पा रहे है कि छात्रों और किसानों की समस्याओं और लड़ाइयों का आधार बिलकुल अलग नहीं है। सारे अधिकारों को छीन कर हमें कॉर्पोरेट का गुलाम बनाने की तैयारी की गई है वो चाहे किसान को उसकी जमीन से बेदखल करने का मामला हो या फिर शिक्षा का बाजारीकरण करके उसको गरीबों और किसानों के बच्चों से दूर कर देने का मामला हो अब हर तरफ से दमन है। इस किसान आंदोलन के परिणाम पर पूरे देश के आंदोलनों की नजर है और इसके परिणाम से छात्रआंदोलन भी अछूता नहीं रहेगा। किसान आंदोलन का परिणाम छात्र आंदोलन के लिए आने वाले समय में प्रेरणा स्त्रोत बनेगा क्योंकि दोनों की लड़ाई एक है।

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