शिवम बघेल, मध्यप्रदेश
तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का ऐतिहासिक और अब तक का सबसे बड़ा किसान आंदोलन दिल्ली की बॉर्डर समेत देश भर में चल रहा है। किसानों की स्पष्ट मांग है कि नये कृषि कानून रद्द किए जाएं और फिर सभी फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने की गारंटी दी जाए या इस पर कोई भी कानूनी बाध्यता बनाई जाए। मध्यप्रदेश के सिवनी जिला से युवाओं के द्वारा मई 2020 में शुरू हुए देश के पहले ऑनलाइन किसान आंदोलन “किसान सत्याग्रह” की टीम बनी जिसमें अब मध्यप्रदेश के सभी जिलों से युवा जुड़ रहे हैं और देश में भी अन्य स्थानों से युवा किसान लगातार जुड़ रहे हैं। इस मंच के माध्यम से मक्का किसानों की आवाज स्थानीय मीडिया के साथ–साथ राष्ट्रीय मीडिया तक भी पहुँचाया गया किसानों ने वीडियो बनाकर, पम्पलेट से फेसबुक व ट्विटर से अपने जनप्रतिनिधियों को चेताया और मांग किया कि मक्का MSP पर बिकना चाहिए।
किसानों के लिए 11 जून 2020 को एक दिन का “अन्नदाता के लिए अन्नत्याग” किया गया। किसान सत्याग्रह की टीम लगातार दिल्ली में चल रहे आंदोलन का भी समर्थन कर रही है। न सिर्फ ऑनलाइन जनजागृति फैलाने में बल्कि ज़मीन पर भी किसान सत्याग्रह के कई साथी समय समय पर दिल्ली पहुच कर आंदोलन का समर्थन करते रहे हैं। साथ ही दक्षिण भारत से आंदोलन के लिए दिल्ली जा रहे किसानों के जत्थों के लिए सिवनी में भोजन एवम विश्राम की व्यवस्था भी की जा रही है। ये एक सुखद अनुभूति है की जिन मुद्दों पर हमने छोटे स्तर पर आंदोलन दो साल पहले शुरू किया उसी किसानी के मुद्दे पर एक ऐतिहासिक आंदोलन खड़ा हुआ है।
जैसे कि केंद्र सरकार 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित करती है। लेकिन कुछ राज्यों की गेहूं और धान और एक्का दुक्का फसलों की खरीद बस MSP के अंतर्गत की जाती है। बाकी फसलें जो MSP पर नहीं बिकती किसान को उनमें बहुत घाटा उठाना पड़ता है। विगत वर्ष मध्यप्रदेश सरकार ने प्रारंभ में मक्के के उपार्जन हेतु पंजीयन व्यवस्था ना कराने का फैसला किया था लेकिन किसान सत्याग्रह और अन्य किसान संगठनों ने मांग की थी कि सरकार पंजीयन करना शुरू करे एवं मक्का को उस वर्ष के तय MSP 1760 रुपये प्रति क्विंटल में खरीदी सुनिश्चित करे। 2 अक्टूबर 2019 गांधी जयंती के दिन सिवनी मध्यप्रदेश में किसानों के द्वारा बड़ी रैली एवं एक दिन का धरना प्रदर्शन किया गया। परिणामस्वरूप कमलनाथ सरकार ने आंशिक रूप से इसपर सुनवाई की और मक्के का पंजीयन शुरू हुआ।
इसी बीच केंद्र में बैठी मोदी सरकार द्वारा दिसंबर 2019 में और फिर जुलाई 2020 में विदेश से लाखों टन मक्का आयात करने के लिए संबंधित कम्पनियों को छूट दे दी गई। इस फरमान के बाद बिना देरी के कंपनियों ने दिसम्बर महीने से भारतीय बाजार में मक्के का आयात शुरू कर दिया। परिणामस्वरूप देश के किसानों का जो मक्का दिसम्बर 2019 में 2100 से 2300 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बिक रहा था। वह अब जनवरी 2020 में भारी गिरावट के साथ मात्र 1200 से 1300 रुपये प्रति क्विंटल ही रह गया था। मक्के के दाम में सिर्फ 20 से 25 दिनों में यह अप्रत्याशित गिरावट थी। इसमें बहुत से छोटे व्यापारी भी तबाह हो गए। मोदी सरकार के इस फैसले से मक्का उत्पादक किसानों को भयंकर का घाटा हुआ।
मोदी के “अबकी बार, ट्रम्प सरकार” नारे के चलते अपने निजी राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए देश के किसानों को नेस्तनाबूद करने वाले ये कदम असल में भारत और अमेरिका के बीच होने वाले “त्वरित व्यापार समझौता” के अंतर्गत उठाए गए है। इसकी जानकारी देश के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल द्वारा अमेरिकी चुनाव से पहले भी दी गई है। यह पूरी प्रक्रिया ट्रंप के शासन काल में प्रारंभ हुई थी। इस फ्री ट्रेड समझौते के तहत अमेरिका भारत के बीच होने वाले आयात और निर्यात में कोई टेक्स नहीं लगेगा। अमेरिका में किसान को भारतीय किसान की तुलना 280 गुना अधिक सब्सिडी मिलती है। अमेरिका में बड़ी–बड़ी कंपनियां भी खेती करती हैं जबकि भारत में खेती बहुसंख्य लोगों की जीविका का साधन है। बाज़ारवाद के अगुआ होने के बावजूद अमरीका ने अपने कृषि क्षेत्र को भारी सब्सिडी देता है।
आज अमेरिका और भारत के कृषि और किसान में इतना अंतर है फिर भी हमारे देश की सरकार का नशीला राष्ट्रवाद उबाल मार रहा है। और इसकी आड़ में सरकार तीन कृषि अध्यादेश लाकर खुद की पीठ थपथपा कर कह रहे हैं कि किसान को आजादी मिल गई। अब किसान अपनी फसल कहीं भी ले जाकर बेच सकता है, पर यह क्यों नहीं बताया गया कि किसान देश में कहां मक्का ले जाकर बेंचे की उसे भाड़ा किराया का खर्चा निकालकर कम से कम 1850 रुपया प्रति क्विंटल MSP का दाम तो मिले।
इसके बाद मक्का किसानों को दूसरा झटका तब लगा जब कोरोना अपने पैर पसार रहा था। जिस प्रकार फरवरी में विदेशों में फैलने वाले कोरोना की खबरें चलीं तो भारत में एक अफवाह फैली की अंडा या चिकन खाने से कोरोना फैलता है। लोगों ने कोरोना के डर से चिकिन और अंडा खाना लगभग बंद कर दिया। चूंकि देश में 60% मक्के की खपत पॉल्ट्री फीड के रूप में इस्तेमाल होती है लेकिन जब मुर्गियों और अंडों की बिक्री 90 से 95% गिर गई पॉल्ट्री फार्म घाटे के कारण बंद होने लगे । देश की बड़ी मात्रा में मक्का की उपभोगी इंडस्ट्रीयाँ 3-4 महीने के अंदर समाप्ति के कगार पर पहुँच गईं। इन सभी संकटों से गुजरते हुए अब मध्य प्रदेश और देश के किसान और युवा लम्बे समय के बाद किसानी के मुद्दे पर एकजुट होकर सरकार के ख़िलाफ़ नीतिगत लड़ाई लड़ रहे है जिसमें मुद्दे की समझ और लड़ने का माद्दा दोनों के बल पर सरकार को चुनौती दी जा सही है।