डॉ. संजय माधव: किसान नेता, राजस्थान

डॉ. संजय माधव: किसान नेता, राजस्थान

मुकेश कुलरिया 

दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर किसान आंदोलन के शाहजहांपुर मोर्चे पर राजस्थान के किसानों का बड़ा जमावड़ा 12 दिसम्बर से है। इस आंदोलन में उत्तर पश्चिमी राजस्थान और शेखावटी अंचल से बड़ी संख्या में किसान आए हुए है। इनमें से कुछ ज़िले पंजाब सीमा से सटे होने और सामाजिक-राजनैतिक नज़रिए से पंजाब से ज़्यादा क़रीब है। यहाँ आए किसान संगठनों में से एक 52 वर्षीय अखिल भारतीय किसान सभा के पदाधिकारी डॉ. संजय माधव है, जिनका पेशेवर प्रशिक्षण एक आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में चूरु ज़िले में हुआ। राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले से आने वाले संजय के नाना स्वतंत्रता सेनानी थे जिस कारण से ननिहाल पक्ष में राजनैतिक माहौल रहा है लेकिन इनके दादा डॉक्टर और पित्ता इंजीनीयर है तथा राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। इनकी माँ कांग्रेस की नेता है। 

90 के दशक में छात्र जीवन के समय इनकी दोस्ती क्षेत्र के क़द्दावर वाम नेता कॉमरेड श्योपत मक्कासर के बेटे से दोस्ती हुई जहां वे वाम विचारधारा के सम्पर्क में आए। जिसके चलते इनका जुड़ाव वाम छात्र संगठन स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन अव इंडिया (SFI) से हुआ जिसके साथ उन्होंने लगभग एक दशक तक काम किया। इस दौरान संजय ने एसएफ़आई के राज्य सचिव और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में काम किया। 2008 के बाद वे पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में अखिल भारतीय किसान सभा से जुड़ गए। 

मोर्चे पर अपनी दिनचर्या के बारे में संजय बताते है कि रोज़ भूख हड़ताल के लिए 11 लोगों से बातचीत कर उन्हें तैयार करना, आने वाली नई जत्थेबंदियों के रहने-खाने की व्यवस्था करना और 11 बजे तक मंच के संचालन की तैयारी करना शामिल है। अखिल भारतीय किसान सभा के राज्य-सचिव होने के साथ-साथ संजय आल इंडिया किसान संघर्ष कोर्डिंनेशन कमेटी के राजस्थान राज्य के समन्वयक भी है। इस पद के चलते संयुक्त किसान मोर्चा के समय-समय पर किए गए आह्वानों को क्रियान्वित करवाना और उसे मोर्चे और राजस्थान में लागू करने की ज़िम्मेदारी भी संजय के कंधों पर है। 

शाहजहांपुर सीमा पर राजस्थान के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के किसान शामिल है। कल जम्मू-कश्मीर और केरल से किसानों का जत्था भी पहुँचने वाला है। वर्तमान में मोर्चा 4-5 किमी. तक फैला हुआ है। गंगानगर और हनुमानगढ़ से चले किसानों के पास बड़ी ट्रोल्लियाँ है बाक़ी किसानों के पास छोटी लोरियाँ है जिसमें रहना सम्भव नहीं है। इसलिए यहाँ लोग ज़मीन पर तम्बू लगाकर रह रहे है। 

भगत सिंह से प्रेरित संजय अपने दो दशकों से ज़्यादा के ज़्यादा के राजनैतिक जीवन में कई आंदोलनों का हिस्सा बने, उनका नेतृत्व किया लेकिन इस बार का आंदोलन काफ़ी अलग है। वे कहते है, “यह आंदोलन काफ़ी व्यापक है जिसमें राजनैतिक-ग़ैर राजनैतिक हर तरह के लोग शामिल है। 

1991 के बाद के उदारीकरण के बाद वाम दल जिन मुद्दों को ज़ोर-शोर से लगातार उठाते रहे, वो सब मुद्दें वाम के साथ-साथ आज आमजन भी उठा रहा है। जनआंदोलनों के लिहाज़ से यह एक ऐतिहासिक पल है। आज एक मुखर जनआवाज़ साम्राज्यवाद, सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ उठ रही है। हमें इस बात की ख़ुशी हैं कि आख़िरकार हमारे सालों के संघर्ष के मुद्दों की नज़ाकत को जनता ने पहचाना और उन मुद्दों पर आज सब एक होकर खड़े है। एक कार्यकर्ता के तौर पर ये मौक़ा मेरा वाम राजनीति पर भरोसे को और मज़बूत करता है।” 

आज़ादी के बाद के आंदोलनों में यह आंदोलन सबसे अभूतपूर्व है। अतीत के आंदोलनों के अनुभव के बारे में संजय बताते है, “ज्यादातर आंदोलनों का प्रभाव क्षेत्र काफ़ी सीमित होता है जैसे, 1996 में राजस्थान में जयपुर में बिजली आंदोलन के दौरान 8 दिन का पड़ाव हुआ। घड़साना में 2006 में पानी को लेकर हुए आंदोलन में कई किसानों की जान गई। लेकिन एक सीमा के बाहर इनका प्रभाव नहीं पड़ा। लेकिन इस आंदोलन का प्रभाव क्षेत्र पूरा देश है। और इस आंदोलन के बाद एक बात तय है कि या तो राष्ट्रीय राजनैतिक दलों को अपने तौर-तरीक़े और नीतियों में बदलाव करना होगा नहीं तो लोग उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकेंगे। ये इस आंदोलन की ताक़त और जनसमर्थन है जिसके बल पर नेता खड़े है। ये बात किसान नेता भली-भाँति जानते है कि जनता उनके हर कदम को देख रही है, और किसी भी तरह के समझौतें और गलती की बिलकुल भी गुंजाइश नहीं है।”

आंदोलनों में शामिल किसानों की राजनैतिक चेतना और मुद्दे पर जागरूकता ऐसी है कि वे किसी अर्थशास्त्री-कृषिशास्त्री से विमर्श कर सकते है। इस आंदोलन में देश में चल रही बँटवारे की राजनीति के सामने एक व्यापक जन एकता का नज़र पेश किया है जिसमें छात्र, मज़दूर, किसान, व्यापारी और आमजन को एक मंच पर लाकर एक बड़े जन आंदोलन की भूमिका तैयार कर दी है । आंदोलन कब तक चलेगा और इसकी क्या परिणिति होगी ये अभी भविष्य में पता चलेगा लेकिन एक बात तय है कि इस देश की राजनैतिक दिशा इस आंदोलन से बेहतरी की और बढ़ने वाली है।

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