किसान भी, जवान भी

किसान भी, जवान भी

पिछले दिनों पंजाबी गायक बीर सिंह ने बहुत भावुक मन से बापू अमरजीत सिंह की शिरकत का ज़िक्र किया। सिंघू मोर्चे पर आपको एक पचासी साल का व्यक्ति अपने सीने पर फ़ौज के मैडल लगाए घूमता हुआ दिखाई देता है, तो यह बापू अमरजीत सिंह है जो गाँव नैनकोट, जिला गुरदासपुर का निवासी है।वे 1962 के पहले चीन-भारतीय युद्ध में लड़े थे, जिसके दौरान उन्हें कैदी बना लिया गया था| चीन में नौ महीने की कैद काटकर वह भारत लौट आया, फिर 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ, जिस में ये जवान जम्मू से सतवारी तक लड़ा| फिर 1972 का युद्ध आया| बापू जी सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं| वह कहते हैं कि जवान और किसान एक दूसरे के बहुत करीब हैं, किसान के ही बच्चे देश की सेवा के लिए सरहदों पर बैठे हैं और हम किसान अपने अधिकारों के लिए दिल्ली की सीमा पर बैठे हैं।

बापू का मानना ​​है कि अगर हम आज नहीं लड़ेंगे, तो हमारी आने वाली पीढ़ियाँ हमें फटकारेंगी और इन काले कानूनों की वजह से पीड़ित होंगी। वह भावुक होकर कहते है  “देश की रखवाली करते हुए तीन लड़ाइयाँ लड़ी, मगर शहादत नहीं मिली। अब ये चौथी लड़ाई है, हमें जीत हासिल करनी होगी, नहीं तो यहीं हक़ों के लिए लड़ते हुए शहादत दे देनी है।”

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