प्रशांत भूषण
यह किसान आंदोलन, सरकार द्वारा बिना किसी विचार, बहस या अपेक्षित वोटदान के जल्दबाज़ी से संसद में अधिनियमित किए गये तीन कृषि क़ानूनों के विरोध, प्रगति में क्रांति एवं अंतर-सांस्कृतिक एकजुटता और भाईचारे का समारोह है। यह प्रदर्शन अनोखा और इस प्रकार का है जो शायद भारत की आज़ादी के बाद से ना देखा हो। किसान (प्रमुख रूप से पंजाब से) दिल्ली तक मार्च करके रामलीला मैदान में प्रदर्शन करना चाहते थे। हरियाणा और दिल्ली पुलिस ने उन्हें रोकते हुए उन पर आंसू गैस और जल तोपों का इस्तेमाल किया और प्रमुख राजमार्ग जिन पर किसान दिल्ली की ओर मार्च कर रहे थे, उनमें 10 फीट गहरी खाइयाँ खोद दीं। शांतिपूर्ण तरीक़े से इन में से कुछ बाधाओं को पार करते हुए, किसान आगे बढ़े। उन्हें दिल्ली – पानीपत राजमार्ग पर सिंघु बॉर्डर और दिल्ली – रोहतक राजमार्ग पे टिकरी बॉर्डर पर रोका गया। बजाए इसके कि वे पुलिस के साथ तकरार करते, जिससे हिंसा भी हो सकती थी, किसान समूहों ने सीमाओं पर ही बिराजमान होने का निर्णय लिया। कुछ ही दिनों में किसानों के संग उनके परिवार को ले जाने वाले ट्रैक्टर और ट्रॉलियों का ये क़ाफ़िला, दिल्ली के कई राजमार्गों पर 30-40km लम्बा हो गया। हज़ारों की गिनती में ट्रैक्टर ट्रॉली, दिल्ली की सीमाओं को घेरते हुए, ना केवल लाखों बेबाक़ किसानों को बल्कि उनके। किसान कृतसंकल्प हैं और डटे हुए हैं की ये क़ानून निरस्त होने पर ही वे पीछे हटेंगे। दिल्ली में, आस पास के सभी राज्यों के किसान, विभिन्न सड़कों और सीमाओं से मार्च करते हुए आ रहे हैं। हज़ारों की संख्या में राजस्थान सीमा और हज़ारों की संख्या में उत्तर प्रदेश की सीमा पर भी डटे हुए है।
सरकार का आरंभिक प्रयास था इन प्रदर्शकों पर दबाव डाल कर हटाना, लेकिन वे जल्द ही समझ गए की किसान प्रदर्शकारियों का यह समूह , जो मुख्य रूप से पंजाबी सिख समुदाय से है, किसी भी दबाव में आकर विचलित नहीं होंगे और यह बात सरकार को केवल उल्टी ही पड़ेगी। फिर सरकार ने उन्हें बदनाम करने के लिए गोदी मीडिया का उपयोग कर ख़ालिस्तानी, आतंकवादी, टुकड़े टुकड़े गैंग, कांग्रिस और यहाँ तक की पाकिस्तान और चीन से आए राष्ट्रविरोधी एजेंट्स भी बता डाला। सरकार को एक और झटका लगा जब किसानों ने सरकार द्वारा नियंत्रित मीडिया समूहों का विरोध कर प्रदर्शन स्थलों पर जगह-जगह उनके बहिष्कार के साइन्बोर्ड लगा दिए। किसान समूहों ने अपने स्वयं के समाचार पत्र सहत सोशल मीडिया प्लैटफ़ार्म स्थापित कर दिए हैं जिस से वे यूटूब, फ़ेस्बुक, ट्विटर आदि द्वारा स्वयं की जानकारी का प्रसार कर सकें, और चंद दिनों में लाखों लोगों को अपने साथ जोड़ चुके हैं। यह वास्तव में एक क्रांति है।
पंजाब के अधिकांश किसान यह समझते हैं कि “कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) क़ानून, 2020” प्रभावी रूप से सरकारी मंडियों (APMC) को ख़त्म कर देगा जहाँ वे सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं और चावल बेच सकते हैं, जबकि अन्य राज्यों के किसान उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य के 50-60% पर बेचने को मजबूर हैं। वे समझते हैं कि बड़ी कार्पोरेशन को यदि मंडी के बाहर सीधा किसानों से बिना मंडी शुल्क और टैक्स के फसल ख़रीदने दिया गया तो धीरे धीरे सरकारी मंडियाँ ख़त्म हो जायेंगी, सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल ख़रीदना बंद कर देगी और अंतत: किसान कोरपोरटेस के हाथ अपनी फसल को कौड़ियों के भाव बेचने को मजबूर हो जायेंगे। उनकी एजेन्सी तथा सौदेबाज़ी की शक्ति भी खो देंगे। पहले से ही, अंबानी और अडानी जैसी बड़ी कॉर्परेशन्स ने बड़े पैमाने पर कृषि क्षेत्र में घुसने की घोषणा की है। अडानी समूह ने अनुमान लगाया है कि वे कृषि समुदायों में 47% व्यापार हासिल कर पायेंगे और इसके लिए वे दुनिया की सबसे बड़ी संचयन सुविधाओं का निर्माण कर रहे हैं। आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन इसलिए किया गया है ताकि वे इन बड़ी कॉर्पोरेट कंपनी को किसी भी प्रकार के खाद्यदान को होड़ कर व्यापारी आवश्यक वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा कर उन्हें ऊँची क़ीमत पर बेच सकें। दूसरा क़ानून “मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा संबंधी किसान समझौता (सशक्तिकरण और सुरक्षा) क़ानून, 2020” इन बड़ी कॉर्पोरेट कंपनी को किसानों के साथ कॉंट्रैक्ट (अनुबंध) खेती के लिए सक्षम करती है जिसके परिणामस्वरूप किसान इन बड़ी कंपनी के बंधु मज़दूर बन जायेंगे। हालाँकि किसान स्वतंत्र रूप से इन कंपनी के साथ अनुबंध कर सकते हैं परंतु इससे संबंधित किसी भी प्रकार के विवाद को अदालत के दायरे से बाहर रखा जाएगा और इन्हें स्थानीय प्रशासन अधिकारियों द्वारा ही सुलझाया जाएगा जो कि इन कंपनी के दबाव में आ सकते हैं। हालाँकि ऊपरी स्थल पर ये क़ानून किसानों के हित में उन्हें स्वराज दिलवाते और कृषि क्षेत्र को स्वतंत्र करते दिखाई पड़ते हैं परंतु बीते अनुभवों से प्रतीक होता है की अंत में ये बड़ी कंपनी को खेती और कृषि क्षेत्र को अपने नियंत्रण में करने में सक्षम बनाते हैं। किसान इन क़ानूनों को अच्छी तरह से समझ गए हैं और वे ये भी समझ गए हैं कि अंबानी और अडानी समूह विशेष रूप से इस सरकार के मुख्य वर्ग हैं जिनके लाभ के लिए ये बिल बनाए गए हैं। इसलिए किसानों ने इन वर्गों को इस प्रकार निशाना बनाया है जिस से उन्हें हानि पहुँचे।
प्रतिदिन ये प्रदर्शन जारी होने से, ये अधिक समर्थन, क़ानूनों और उनके परिणाम की बेहतर राजनीतिक बुद्धिमत्ता, एकजुटता की भावनाएँ ना केवल कृषि समुदायों बल्कि अन्य धर्मों, क्षेत्रों और संस्कृतियों के बीच भी प्राप्त हो रही है। सरकार द्वारा अपने अहंकार में जल्दबाज़ी में बिना किसी किसान समूह से विचार सभा किए, बिना संसदीय बहस के और राज्यसभा में बिना किसी अपेक्षित वोटदान के, जहाँ सरकार अल्पसंख्यक थी, ये तीन कृषि क़ानूनों को अधिनियमित किया गया। अब तीव्रता से बढ़ते हुए प्रतिरोध के तहत, अपनी हठ में आकर सरकार का इन क़ानूनों को वापिस लेने से इनकार करना, इस देश में एक खूबसूरत और अद्वितीय अग्रणी हमारे पुन: प्राप्ति करने के लिए एक क्रांति की शुरुआत हो सकती है।
प्रशांत भूषण भारत के सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले एक जनहित के वकील हैं।यह लेख उनके अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख का अंश है।