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हर रोज नई ऊर्जा कहाँ से पाता है यह ऐतिहासिक किसान आन्दोलन

19 नवम्बर 2021 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन कर भारी मन से तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते हुए आन्दोलन के मोर्चों पर डटे किसानों से घर वापस लौटने की अपील की।

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दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को एक शिक्षक की श्रद्धांजलि

मैं एक शिक्षक हूं। मैं पिछले 25 वर्षों से हाई स्कूल के छात्रों को पढ़ा रहा हूं। क्योंकि मैं युवाओं के साथ इतना काम करता हूं, शायद इसलिए कि मैं उनके भविष्य के लिए एक ज़िम्मेदारी महसूस करता हूं, और उस देश के बारे में गहराई से चिंतित हूं जिसमें वे बड़े हो रहे हैं।

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उत्तर प्रदेश में चल रहा किसानों का विरोध और उभरती चुनावी राजनीति

19 नवंबर, शुक्रवार को प्रकाश पर्व (जो दस सिख गुरुओं में से पहले, गुरु नानक देव की जयंती है) पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते हुए कहा कि उनकी सरकार, सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, किसानों के एक वर्ग को यह नहीं समझा

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भारत में खेती और गाँव-देहात का हाल – एक परिचय

ग्रामीण भारत की बिगड़ती स्थिति देश की नीतियों और राजनीतिक रणनीतियों के लिए एक जटिल चुनौती के रूप में उभर कर आयी है। कोविड-19 से पहले भी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था गंभीर संकट से जूझ रही थी। कोविड-19 के फैलने और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बाद, प्रवासी मज़दूरों के पैदल घर लौटने के दयनीय दृश्यों ने इस विशाल मानवीय संकट की तरफ देश का ध्यान आकर्षित किया है।

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19वीं सदी में मेक्सिकन किसानों के संघर्ष का संक्षिप्त इतिहास

मेक्सिको में, किसानों के संघर्ष का एक लम्बा इतिहास रहा है और अनेक बार उन्होंने सत्ता के ख़िलाफ़ स्मरणीय विद्रोहों का नेतृत्व किया है। क्रांतिकारी परिवर्तनों से भरे 19वीं शताब्दी का शुरुआती दशक, मेक्सिको के इतिहास में अहम रहा है। यह वही दौर था, जब हर तरफ़ व्याप्त असमानता ने किसानों का जीवन दूभर कर रखा था

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किसान आंदोलन से क्या कहता है अमेरिका का इतिहास?

1978 में हज़ारों अमेरिकी किसान अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में अपने ट्रैक्टरों के साथ हफ्तों तक डेरा डाले रहे। वह वहां इसलिए आए थे क्योंकि उनके अस्तित्व को खतरा था। यह विरोध “ट्रेक्टरकेड” के रूप में जाना गया, और किसानों की यही माँग थी

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किसान आंदोलन के 6 माह – ग़ाज़ीपुर मोर्चा

किसान घर से निकल कर सड़क पर बैठा शांतिपूर्ण तरीके से रोष प्रकट कर रहा है – इस बात को 26 मई 2021 के दिन पूरे 6 माह बीत गए हैं पर सरकार टस से मस नहीं हुई। पहले कड़ाके की ठंड फिर तपती गर्मी और अब आँधी- तूफानों ने किसान का हौसला परखा,

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स्मृति दिवस विशेष- विजय सिंह ‘पथिक’: वह क्रांतिकारी पत्रकार, जिनके किसान आंदोलन के आगे झुक गये थे अंग्रेज़!

“यश वैभव सुख की चाह नहीं, परवाह नहीं जीवन न रहे; यदि इच्छा है तो यह है- जग में स्वेच्छाचार दमन न रहे।”– विजय सिंह ‘पथिक’

देश की आज़ादी के संघर्ष को जन-जन तक पहुँचाकर इसे जन-आंदोलन में बदलने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं ने निभाई।

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ऐतिहासिक रहा किसान मोर्चे का “काला दिवस” कार्यक्रम

26 मई 2021 को दिल्ली बार्डर के मोर्चों पर किसान आंदोलन के 6 महीने पूरे होने व मोदी सरकार के 7 साल पूरे होने पर देश के किसानों के साथ ही अन्य तबकों ने भी देश भर में काला दिवस मनाया। इसके साथ ही सयुंक्त किसान मोर्चा की ओर से दिल्ली के बार्डरों पर बुद्ध पूर्णिमा भी मनाई गयी।

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अन्तिम फैसला

हमारी मेहनत 

हमारे गहने हैं,

हम अपना श्रम बेचते हैं,

अपनी आत्मा नहीं,

और तुम क्या लगा पाओगे हमारी क़ीमत?

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