सितंबर 2020 में पारित किए गए 3 कृषि बिलों के खिलाफ न्याय पाने के लिए पिछले एक साल से किसान दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हैं। इन विधेयकों का मुख्य उद्देश्य कृषि बाजार को कॉर्पोरेट के अधीन करना है| भारत की आधी से अधिक आबादी कृषि में शामिल है जिसमें से अधिकांश वर्ग सीमान्त किसानों का है। सामूहिक रूप से देखें तो इन तीन विधेयकों का उद्देश्य कृषि बाजार को नियंत्रणमुक्त करके भारतीय कृषि क्षेत्र के परिदृश्य को बदलना है। कृषि बिल 2020 फसलों की खरीद, बिक्री और भंडारण के नियमों को ढील देते हैं, जिससे किसानों की फसलों की खरीद बेच पर आवश्यक सुरक्षा समाप्त हो जाती है।
अधिकांश किसान अपनी फसल सरकार नियंत्रित थोक बाजारों, या मंडियों में सुनिश्चित न्यूनतम कीमतों पर बेचते हैं। नए बिलों के तहत, किसान न्यूनतम कीमतों की गारंटी के बिना सीधे निजी खिलाड़ियों को बेच सकते हैं। जबकि शुरू में निजी क्षेत्र प्रतिस्पर्धी कीमतों की पेशकश कर सकता है परन्तु किसानों को डर है कि इससे अंततः निजी क्षेत्र के हाथों शोषण का द्वार खुल जाएगा। कृषि बिल 2020 निजी क्षेत्र द्वारा वस्तुओं के भंडारण पर प्रतिबंध और अनुबंध के उल्लंघन के मामले में कानूनी विकल्पों को सीमित करते हैं।
जहां सरकार का दावा है कि ये सुधार निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाकर कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण करेंगे, वहीं किसानों को डर है कि यह उनकी आजीविका पर सीधा हमला है। सीमान्त किसानों को वैश्विक बाजार में एक मंच देने के लिए 1986 में समान विनिमय (ईकुअल एक्सचेंज) की स्थापना की गई थी। आज 35 साल बाद भी छोटे किसानों का बिचौलियों और कॉरपोरेट जगत के हाथों शोषण जारी है। यह आंदोलन छोटे किसानों को समर्पित है जो खाद्य व्यवस्था के निजीकरण के खिलाफ लोकतंत्र का प्रयोग कर रहे हैं, एक ऐसा मुद्दा जो समान विनिमय के मूल में निहित है। अंत में मैं इतना ही कहूँगा कि खेती का अंतिम लक्ष्य केवल फसल उगाना नहीं है बल्कि देश की वृद्धि और पूर्णता है।