जैसे ही आप चंडीगढ़ से दिल्ली के लिए निकलते हैं तो लगभग हर दस किलोमीटर पर आपको किसान आंदोलन का नजारा देखने को मिल जाएगा।हर वाहन जिस पर किसान का झंडा या बैन्नर लगा है, उसे बाकायदा रोककर चाय, पिन्नी, बिस्कुट, ब्रेड आदि की सेवा से नवाजा जाता है। करनाल, घरौंडा, पानीपत में भी यह सिलसिला रुकता नहीं है।हाँ, समालखा और गनौर में थोड़ा हल्का जरूर पड़ता है लेकिन फिर से रंग में आ जाता है। जैसे ही आप राई में प्रवेश करेंगे तैसे ही आपको किसान आंदोलन का जलवा दिखाई देने लग जाएगा।सड़क के बीचों-बीच सटकर खड़े ट्रेक्टर, ट्राली, गाड़ियां एक बार आपको अचंभित भी कर सकती हैं कि ये कैसे हो गया? आप यहाँ से अपने वाहन में धीरे-धीरे रेंग सकते हैं, जैसे ही थोड़ी दूर चलते हैं और कुंडली में प्रवेश करते हैं तो किसान आंदोलन का रंग आप पर भी चढ़ने लग जाएगा क्योंकि अब आपको कहीं भी जगह देखकर अपना वाहन खड़ा करना होगा और पैदल ही चलना होगा।
मुख्य मंच तक जाने के लिए लगभग दो या तीन किलोमीटर का रास्ता पैदल तय करना होगा।जब आप इस रास्ते पर चल रहे होंगे तो आप आंदोलन के भिन्न-भिन्न रंग देखेंगे। हर सौ मीटर की दूरी पर लंगर की व्यवस्था है। साफ-सफाई का मोर्चा सेवादार युवाओं ने संभाला हुआ है। बाकायदा वाशिंग मशीनें लगाई गई हैं। कहीं आपको गन्ने का ज्युस मिलेगा तो कहीं किन्नू का। कहीं आपको वेज बिरायनी मिलेगी तो कहीं गज़क। मुंगफलीं तो आपकी रास्ते भर कई बार मिलेगी। अगर आप में खाने की कुव्वत हैं तो चाहे जितनी मर्जी खा सकते हैं। कहीं कोई लगातार पोस्टर बना रहे हैं, कहीं नारे लगाए जा रहे हैं, कहीं पर गाने भी गाए जा रहे हैं, कहीं हरियावणी पगड़ी दिखाई देगी। हुक्का भी अपनी छाप छोड़ रहा है।
मजे की बात यह है कि किसान आंदोलन की जो परिणीति हो, वो तो भविष्य बताएगा मगर जब हमने इस आंदोलन में कुछ ऐसे छोटे-छोटे बच्चों से बात कि जिनके घर इस जीटी रोड़ के आस-पास हैं, उन्होंने मुस्कुराते हुए चेहरे से कहा कि हमें तो बहुत अच्छा लग रहा है। हमने पूछा कि क्या और कैसे अच्छा लग रहा है? उनका जवाब था, “जैसा खाना हमें अब मिल रहा है, वैसा हमने कभी नहीं खाया”। यह सुनकर दिल को तसल्ली मिली कि चलिए आंदोलन से किसी का भला तो हो रहा है। आगे बढ़ने पर हमने कुछ औरतों और लोगों से बात की, उनका जवाब था कि, “भगवान करे ये गाँव यो हीं बसा रहे क्योंकि हमें अच्छा खाना मिल रहा है, वह भी सम्मान के साथ”।सच में हमारी आँखों में आंसू आ गए कि मेरे भारत देश की हालत क्या है? सच में एक बार पक्ष और विपक्ष के नेताओं को पैदल इस आंदोलन का जायजा लेना चाहिए ताकि उन्हें सच्चाई पता लग सके।
ड्रोन से देखने पर काफी कुछ दिखाई नहीं देता है। आंदोलन में बुजुर्गों की मालिश तक की जा रही है। स्वास्थ्य की जांच करने का कई जगह प्रबंध है।सर्वकर्मचारी संघ की ओर से भी मुख्य मंच के पीछे एक मोर्चा कर्मचारियों ने किसान आंदोलन में खोला हुआ है, जिसमें डिस्पेंसरी शामिल है। मजे की बात है कि यहाँ भी विभिन्न विभागों के कर्मचारी किसान आंदोलन के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद करते हैं। यहाँ जयभगवान दहिया और दिनेश छिक्कारा डटे हुए हैं। यहीं मुख्य मंच है, इसके आस-पास की सुरक्षा और प्रवेश का जिम्मा युवाओं ने बेहतरीन ढंग से संभाला हुआ है। सारा दिन यहां भाषण चलता है। जब हम यहाँ का जायजा ले रहे थे तब उत्तराखण्ड के किसान अपनी बात बोल रहे थे कि वो किसान आंदोलन के साथ हैं।
बीच-बीच में आपको ढोलक, बाजा आदि-आदि कुछ बेचने वाले भी मिल जाएंगे। कई अलग -अलग लोगों से हमने बात की तो सबका एक ही जवाब था कि इतनी जिद्द् और अहंकार सरकार को शोभा नहीं देता। कृषि कानून वापिस होने चाहिए। तमाम इंतजामात को देखकर तो ऐसा लगता है कि यहाँ लगभग छह माह तक रहने का पुख्ता प्रबंध है क्योंकि चौबीस दिन बाद किसी के माथे पर किसी भी प्रकार की कोई शिकन तक नहीं हैं। मीडिया भी घूमता हुआ यहाँ मिलेगा लेकिन पता नहीं क्यों गोदी मीडिया आपके ढूंढे से यहाँ नहीं मिलेगा।