आदरणीय मोदी जी

आदरणीय मोदी जी

सादर प्रणाम 

यह चिट्ठी आपके ताजे असत्य कथन कि ; “केरल में एपीएमसी की मंडियां नहीं हैं, वहां  प्रोटेस्ट क्यों नहीं होतापर है। इधर बहुत सारे लोग आपकी डिग्रियों, एंटायर पॉलिटिक्स साइंस के विषय वगैरा को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। उसे छोड़ेंजरूरी नहीं कि कोई व्यक्ति हर चीज के बारे में सब कुछ जानता ही होमगर यह छूट प्रधानमंत्री के लिए नहीं है। उनके बारे में यह माना जाता है कि वे जो कुछ कहेंगे समझबूझ कर कहेंगे। हालांकि इन दिनों तीन कृषि कानूनों को लेकर कट रहे बवाल से यह तो पता लग गया था कि मौजूदा भारत सरकार खेती किसानी और किसानो के बारे में कुछ भी नहीं जानती।  मगर अपने ही राज्य केरल के बारे में उसके मुखिया का अज्ञान इतना ज्यादा है यह उम्मीद नहीं थी।  

मान्यवर क्या आपको पता है? कि केरल देश के उन कुछ प्रदेशों में से एक है जिन्होंने कभी एपीएमसी एक्ट बनाया ही नहीं।  पूछिए क्यों ? इसलिए कि इस प्रदेश का फसल का पैटर्न और उपज की जिंसें एकदम अलहदा है। अलहदा ये कि खेती किसानी की 82% पैदावार मसालों और बागवानी (प्लांटेशन) की है। केरल की खेती का मुख्य आधार यही है सर। नारियल, काजू, रबर, चाय, कॉफ़ी, तरह तरह की काली मिर्च, जायफल, इलायची, लौंग, दालचीनी वगैरा वगैरा। अब चूंकि ये विशेष फसलें हैं इसलिए इनकी खरीदफरोख्त (मार्केटिंगका भी कुछ विशेष इंतजाम होता है।  इनके लिए विशेष बोर्ड  होते है ; जैसे रबर बोर्ड, कॉफ़ी बोर्ड, मसाला बोर्ड, चाय बोर्ड आदि इत्यादि।  किसान की फसलें इन्ही की देखरेख में नीलामी से बिकती हैं।  इनकी नीलामी की एक बहुत पुरानी आजमाई प्रणाली है।

इन उपजों का बड़ा हिस्सा निर्यात होता है और करोड़ों डॉलर की विदेशी मुद्रा कमा कर लाता है।  और सर जी, ये आज की बात नहीं हैयुगों से केरल के मसालों का स्वाद दुनिया ले रही है।  कम्बख्त वास्को डि गामा इसी लालच में आया था।  खैर ये इतिहास की बात है, आपके काम की बात यह है कि पिछली 10 साल में मसालों और औषध बूटियों (हर्ब्सका विश्व व्यापार 5 लाख टन तक जा पहुंचा है जो मुद्रा के हिसाब से 1500 मिलियन डॉलर्स  (1 डॉलर=73.55 रुपये के हिसाब से यह कितने रुपये हुए गिनवा लीजियेगा) इसमें विराट हिस्सा केरल का है।

कौन है केरल के किसानों का दुश्मन? इन उपजों में से किसी भी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) आपकी सरकार ने कभी घोषित किया? कभी नही। उस पर मुश्किल ये है कि केरल के किसानों की उपज विश्व बाजार की कीमतों के उतार चढ़ाव से जुड़ी है। अब देखें आदरणीय कि  वो कौन है जो इनकी जान के पीछे पड़ा है? ये खुद आप की ही सरकार है हुजूर!! इन बोर्ड्स कोजो आपके ही वाणिज्य मंत्रालय के अधीन हैंकमजोर किया जा रहा है। इनके ढेर सारे पद खाली पड़े हैं। डायरेक्टर्स तक की पोस्ट अरसे तक बिना नियुक्ति के रह जाती हैं। इन्हें अपने खर्चो की जरूरत के लायक भी फण्ड नही देती केंद्र सरकार ; वही जिसके प्रधानमंत्री स्वयं आप हैं।

केरल के किसानों को किसने बचाया ? उसी वाम लोकतांत्रिक एलडीएफ सरकार ने जिसे कोसने के लिए आप सरासर झूठ (सॉरी, असत्य) बोलने से बाज नही आये। 2006 में जब एलडीएफ सरकार आई तो केरल, जो पहले कभी नही हुआ, किसान आत्महत्याओं का केरल था। एलडीएफ उनके लिए कर्ज राहत आयोग लेकर आया। कर्जे माफ ही नही किये अगली फसलो के लिए आसान शर्तों पर वित्तीय मदद का प्रबंध किया इतना ही नहीं, विश्व बाजार में कीमते गिरने के वक्त उसे ढाल दी। सहकारी समितियों से खरीदा, उनके जरिये मूल्य संवर्धनवैल्यू एडिशन – (कच्चे माल की प्रोसेस कर बेहतर उत्पाद बनाना) करके उसकी आय बढ़ाने के प्रबंध किए। गैंहू होता नही और चावल या दाल की फसल इतनी तो थी नही कि उनके लिए मंडी कमेटियों का टन्डीला खड़ा किया जाता। तो क्या यूँ ही छोड़ दिया उन्हें ? जी नही। राज्य सरकार ने इनकी खरीद के लिए नियम बनाये और उनके अनुसार खरीदी के लिए थोक और खुदरा की मार्केट खड़ी की। आपको पता है मोदी सर कि केरल में धान 2748 रुपये प्रति क्विंटल खरीदा गया। आपकी तय एमएसपी से 900 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा दिया गया किसानों को।

केरल के किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी को सुनकर तो आपके होश उड़ जाएंगे सर जी!!  धान के लिए 22,000, सब्जी पर 25,000, ठंडे मौसम की सब्जी पर 30,000, दाल पर 20,000, केले पर 30,000 रुपये प्रति हैक्टेयर है यह राशि। प्रति व्यक्ति नही, प्रति हेक्टेयर !! यह आपके 6000 रुपये के संदिग्ध सम्मान निधि के दावे की तरह नकली नही असली है केरल की एलडीएफ सरकार ने अपने प्रदेश को देश का एकमात्र प्रदेश बना दिया जहाँ सब्जियों का भी आधार मूल्य तय किया गया है। कोरोना महामारी में सुविक्षा केरल योजना लागू की और 3600 करोड़ रुपये केरल की कृषि सहकारिताओं को दिए ताकि वे संकट का मुकाबला कर सकें। भारत के किसानो से युध्द सा काहे लड़ रहे हैं आप और आपकी सरकार ? यह तो जगजाहिर है कि कोरोना में सिर्फ यही थे जिनकी मेहनत के रिकॉर्ड बने, सो भी तब जब इनके भाई बहन काम छिन जाने के बाद हजारों किलोमीटर पाँवपैदल लौट कर घर आये।

झूठ दर झूठ (ओह, असत्य दर असत्य) बोलकर काहे अडानी और अम्बानी का मार्ग झाड़ बुहार रहे हैं आप उनके भर थोड़े ही है, भारत नामक देश के प्रधानमंत्री हैं आप। दिल्ली आए किसानों की बात मानिये और उसके बाद हो आइये केरल 10-15 दिन के लिए देख आइये वाम जनवादी मोर्चे का राजआपको सचमुच में वह ईश्वर का खुद का देशगोड्स ओन कंट्री लगे तो बताइयेगा।

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